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महानवमी होगा कन्या पूजन महानवमी को परंपरागत विधि-विधान पूर्वक मां दंतेश्वरी की पूजा अर्चना के पश्चात नौ कुमारी कन्याओं में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना कर भोग कराया जाता है एवं विभिन्न भक्तों में अपने श्रद्धा अनुसार माता को श्रृंगार सामग्रीयाँ अर्पित किए जाते हैं। उसके पश्चात नवरात्रि के 9 दिन के साधक जोगी उठाई का रस्म पूरा कर सभी को भंडारा में आमंत्रित किया जाएगा।
महानवमी होगा कन्या पूजन महानवमी को परंपरागत विधि-विधान पूर्वक मां दंतेश्वरी की पूजा अर्चना के पश्चात नौ कुमारी कन्याओं में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना कर भोग कराया जाता है एवं विभिन्न भक्तों में अपने श्रद्धा अनुसार माता को श्रृंगार सामग्रीयाँ अर्पित किए जाते हैं। उसके पश्चात नवरात्रि के 9 दिन के साधक जोगी उठाई का रस्म पूरा कर सभी को भंडारा में आमंत्रित किया जाएगा।
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तत्पश्चात निशा जागा बोना लूट के प्रसाद सहित पुजारी को उनके सहयोगी के साथ बस्तर दशहरा में शामिल होने विदा कर विदा किए जाएंगे। नवरात्रि पर्व के परंपराओं को पूर्वजों से सम्पन्न कराने वाले प्रमुख पंडित जोगी, बगड़ईत, पाँच नाईक, गायता, कुम्हार, साहू, पारधी, परिहार आदि को सम्मानित कर विदा किया जाता है। प्रतिवर्ष मंदिर में भंडारे की व्यवस्था ज्योति कलश स्थापना समिति के द्वारा किया जाता है।
तत्पश्चात निशा जागा बोना लूट के प्रसाद सहित पुजारी को उनके सहयोगी के साथ बस्तर दशहरा में शामिल होने विदा कर विदा किए जाएंगे। नवरात्रि पर्व के परंपराओं को पूर्वजों से सम्पन्न कराने वाले प्रमुख पंडित जोगी, बगड़ईत, पाँच नाईक, गायता, कुम्हार, साहू, पारधी, परिहार आदि को सम्मानित कर विदा किया जाता है। प्रतिवर्ष मंदिर में भंडारे की व्यवस्था ज्योति कलश स्थापना समिति के द्वारा किया जाता है।
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पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार मां दुर्गा एवं महिषासुर दानव का संग्राम अनावरत कई दिनों तक पृथ्वी आकाश और पाताल में चलता रहा महिषासुर दानव अपनी कपट माया से मां दुर्गा के वार से बचने यहां-वहां छिपता फिर रहा था। ईस लुका छिपी में महिषासुर दानव ईस पहाड़ में भी छुपने आया था। मां दुर्गा को इसकी जानकारी हुई तो वह भी इस दानव का पीछा करते हुए इस पहाड़ की चोटी में भयंकर हुंकार के साथ अपनी पैर रखी, इस वजह से एक भारी शिलाखंड में माँ के पदचिन्ह बन गए। इस पाहाड़ मे मां दुर्गा और महिषासुर का द्वंद युद्ध हुआ था। जो महिषाद्वंद के नाम से जाना जाता था। कालांतर में महिषाद्वंद शब्द का अपभ्रंश होते-होते क्षेत्रीय बोली में भैसादोंद कहा जाने लगा।
पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार मां दुर्गा एवं महिषासुर दानव का संग्राम अनावरत कई दिनों तक पृथ्वी आकाश और पाताल में चलता रहा महिषासुर दानव अपनी कपट माया से मां दुर्गा के वार से बचने यहां-वहां छिपता फिर रहा था। ईस लुका छिपी में महिषासुर दानव ईस पहाड़ में भी छुपने आया था। मां दुर्गा को इसकी जानकारी हुई तो वह भी इस दानव का पीछा करते हुए इस पहाड़ की चोटी में भयंकर हुंकार के साथ अपनी पैर रखी, इस वजह से एक भारी शिलाखंड में माँ के पदचिन्ह बन गए। इस पाहाड़ मे मां दुर्गा और महिषासुर का द्वंद युद्ध हुआ था। जो महिषाद्वंद के नाम से जाना जाता था। कालांतर में महिषाद्वंद शब्द का अपभ्रंश होते-होते क्षेत्रीय बोली में भैसादोंद कहा जाने लगा।