CG News: अब शोध खोज समीक्षा करने की जरूरत महसूस
अधिकतर महिला समूहों के नाम पर लाखों-लाखों का कर्ज चढ़ गया है और उनका काम धंधा का कोई अता पता नहीं रह गया है। महिला समूहों के कर्ज में लदकर कर्जदार हो जाने और काम काज ठप्प पड़ जाने के मूल कारंण पर अब शोध खोज समीक्षा करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है। सरसरी निगाह से पतासाजी करने पर पता चलता है कि जिन लोगों को महिला समूह की नैय्या पार लगाने पतवार सौंपा गया था वो ही मंझधार में ले जाकर समूहों की नैय्या को डूबाने का काम करके अपना पल्ला झाड़कर किनारे हो गये। काम धंधा रोजगार के लिए सामग्री सप्लाई करने वाले और सामग्री खरिदी में अहम भूमिका निभाने वाले तथा बिचौलिया देखते ही देखते मालामाल हो गये पर समूह का भविष्य अंधकारमय हो गया। समूहों को बैंकों के माध्यम से प्रदत्त धनराशि के अदायगी और शेष कर्ज की स्थिति का अवलोकन करने से गांव ब्लाक से लेकर जिला राज्य तक समूहों के हालत का खुलासा हो जायेगा। महिला समूह की स्थिति कैसे खराब हो जाती है या प्रशासन तंत्र द्वारा कर दी जाती है।
घर में बैठ जाने को सोचने के लिए मजबूर
इसका एक उदाहरण ग्राम सिकागांव में पिछले 22 वर्ष से सरकारी सस्ते अनाज की दूकान संचालित करने वाले लक्ष्मी मां स्व सहायता समूह के महिलाओं की दास्तान से सामने आ जाता है। समूह के बारे में समूह की महिलाओं ने ही बताया कि, सन 2002 में हम ग्राम सिकागांव की 14 महिला आपस में मिल जुलकर लक्ष्मी मां स्व सहायता समूह का गठन किये। हमें उस समय के साहब लोगों ने समझा बुझाकर हमें हौंसला देते सरकारी सस्ते अनाज की दुकान का संचालन प्रारंभ करवाया था जो आजतक हम करते आ रहे हैं। परंतु तब की स्थिति अलग थी आज की स्थिति बहुत ही कष्टदायक, नुकसानदायक और मानसिक यातना प्रताड़ना दायक हो चुका है। जिसके चलते अब हम यह काम छोड़कर घर में बैठ जाने को सोचने के लिए मजबूर हो गये हैं।
महिला समूह की महिलाओं का कहना है कि हमारे दुकान में पंचायत क्षेत्र के 345 राशनकार्ड धारी हैं जिन्हें वितरण करने प्रतिमाह लगभग 125क्विंटल चांवल हमें चाहिए। आनलाइन राशन कार्ड की संख्या अब 377हो चुका है जिसके लिए अब लगभग 140 क्विंटल की जरूरत होती है। पर हमारे दुकान को राशनकार्ड की संख्या अनुसार चांवल न देकर कम चांवल दिया जाता है।
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किसानों को नहीं मिल पा रहा कोई लाभ
जब हम लोग वर्ष 2002 में राशन दुकान चलाना शुरू किए थे तब हमें शुरू में 25 प्रति क्विंटल के हिसाब से फिर उसके बाद 30/प्रति क्विंटल के हिसाब से कमीशन पैसा दिया जाता था। जिसके चलते हम समूह वालों को भी अपनी मेहनत का कुछ पारिश्रमिक मिल जाया करता था। परंतु कोरोना कल के बाद सरकार के द्वारा राशन फ्री में बंटवाना शुरू कर दिया उसके बाद से हमें मिलने वाला कमीशन भी मिलना बंद हो गया। जिसके चलते हमें लोगों को अब कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा पहले हमें अनाज का खाली बोरी देने पर पैसा मिल जाया करता था परंतु पिछले कई साल से हमसे बोरी लिया जाता है पर बोरी का पैसा नहीं दिया जाता। अधिकारी हमें बोरी धान खरीदी केंद्र में ले जाकर पहुंचा कर देने के लिए कहते हैं और हम बोरी परिवहन करके पहुंचा कर देते हैं फिर भी हमें न बोरी का पैसा दिया जाता है न परिवहन खर्च दिया जाता है। आखिर हम यह पैसा कहां से पूर्ति करें।
हमें राशन यहां पर तौल कर नहीं दिया जाता गोदाम से धर्म कांटा में तौल कर लाते हैं और यहां लाकर हमको दे देते हैं। राशन बोरी फटा होने और राशन कम रहने पर भी यह हमारी मजबूरी होती कि हमको और राशन उतरवाना पड़ता है पर जब हम दिये गये फटे बोरी को धान खरीदी केंद्र में या लेंम्पस में पहुंचाते हैं तो उनके द्वारा बोरी फटा है कह कर वापस कर दिया जाता है, तो और हम पर अधिकारियों द्वारा दबाव बनाया जाता है कि आप इतना बोरी दीजिए हमें तो कई बार बाजार से पूरी खरीद कर देना पड़ा है।