भारत उत्सवों का देश है। बंगाल उसकी सांस्कृतिक राजधानी है। जिसके मुकुट पर शांतिनिकेतन की शिक्षा, दीक्षा के साथ ही गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के अभिनव संस्कार हैं। बात होली की की जाए तो शांतिनिकेतन में रंगो के पर्व का आयोजन लाखों लोगों को अपनी ओर खींचता है।
यहां होली को बसंतोत्सव के नाम से मनाया जाता है। जिसमें विश्वभारती विश्वविद्यालय के छात्र व शिक्षक अलग अलग विधाओं से जुड़ी रंगबिरंगी प्रस्तुति देखते हैं। जिन्हें देखने के लिए देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक शांतिनिकेतन पहुंचते हैं।
लाल, पीले फूलों से सजी छात्राएं, अबीर में रंगे छात्र, गूंजता रवीन्द्र संगीत सुनकर पर्यटकों का मन फागुन हो जाता है। रंगबिरंगी साडिय़ों में सजी छात्राएं लयबद्ध नृत्यों की प्रस्तुति करती हैं। छात्र भी उनका साथ देते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा की शाम को भी रंगबिरंगे आयोजन होते हैं। शांतिनिकेतन में बसंतोत्सव की औपचारिक शुरुआत का श्रेय गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर को दिया जाता है। उस समय उनके विद्यालय के छात्र छात्राएं साल विथी यानि साल वृक्षों की छांव में चटाई बिछाकर एक लय व सुर में गीत गाते थे।
फूलों से होली खेली जाती थी। पिछले कुछ दशकों से विश्वविद्यालय में होने वाले आयोजन का हिस्सा बनने के लिए राज्यवासी बड़ी संख्या में शांतिनिकेतन पहुंचते हैं।