टैगोर परिवार की बहू ने शुरू किया था बाएं कंधे पर साड़ी का पल्लू रखने का चलन:मोदी
– महिला संगठनों को इस पर और रिसर्च करने को कहा- रवीन्द्रनाथ टैगोर के गुजरात कनेक्शन का भी किया जिक्र
टैगोर परिवार की बहू ने शुरू किया था बाएं कंधे पर साड़ी का पल्लू रखने का चलन:मोदी
कोलकाता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर से जुड़ी कई रोचक बातें बताईं। उन्होंने टैगोर के गुजरात कनेक्शन का भी जिक्र किया। साथ ही बताया कि बाएं कंधे पर साड़ी का पल्लू रखने का चलन टैगोर परिवार की बहू ज्ञाननंदनी देवी ने शुरू किया था। पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय के 100 साल पूरे होने पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए मोदी ने महिला सशक्तीकरण संगठनों को इस पर और रिसर्च करने को भी कहा। गुजरात में पारम्परिक तौर पर महिलाएं सीधे पल्ले यानी साड़ी का पल्लू दाहिने कंधे पर ही रखती हैं। मोदी ने कहा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर अक्सर गुजरात जाते थे। वहां उन्होंने काफी लंबा समय बिताया था।
गुरुदेव के घर में आई थी गुजरात की बहू
पीएम ने कहा कि अहमदाबाद में रहते हुए टैगोर ने दो लोकप्रिय बांग्ला कविताएं भी लिखी थीं। अपनी रचना क्षुधित पाषाण का एक हिस्सा भी उन्होंने गुजरात प्रवास के दौरान लिखा था। गुजरात की एक बेटी गुरुदेव के घर पर बहू बनकर आईं। पीएम ने कहा कि इसके अलावा एक और तथ्य है जिस पर हमारे महिला सशक्तीकरण के संगठनों को अध्ययन करना चाहिए।
ऐसा आइडिया निकाला
मोदी ने बताया कि सत्येंद्र नाथ टैगोर जी की पत्नी ज्ञाननंदनी देवी जब अहमदाबाद में रहती थीं तो उन्होंने देखा कि वहां की स्थानीय महिलाएं अपनी साड़ी के पल्लू को दाहिने कंधे पर रखती थीं। अब दायें कंधे पर पल्लू से महिलाओं को काम करने में भी कुछ दिक्कत होती थी। यह देखकर ज्ञाननंदनी देवी ने आइडिया निकाला कि क्यों ने साड़ी के पल्लू को बाएं कंधे पर रखा जाए। मुझे ठीक-ठीक तो नहीं याद है लेकिन कहते हैं कि बाएं कंधे पर साड़ी का पल्लू उन्हीं का देन है।
कौन थी ज्ञाननंदनी देवी
टैगोर परिवार की बहू ज्ञाननंदनी देवी रवीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर की पत्नी थीं। वह 1863 में भारतीय सिविल सर्विस में जाने वाली पहली भारतीय थीं। दरअसल ज्ञाननंदनी देवी ने अपनी इंग्लैंड और बॉम्बे की यात्राओं के अनुभवों और पारसी गारा पहनने के तरीकों को मिलाकर साड़ी पहनने का तरीका निकाला जो आज भी भारत में प्रचलन में है। सबसे पहले इसे ब्रह्मसमाज की औरतों ने अपनाया था इसलिए इसे ब्रह्मिका साड़ी कहा गया।
आमंत्रण को लेकर विवाद
विश्वभारती के शताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आमंत्रित किए जाने को लेकर तृणमूल और विश्व भारती विश्वविद्यालय के बीच विवाद शुरू हो गया है। विश्वभारती की ओर से निमंत्रण जारी कर कहा गया था कि ममता बनर्जी को आमंत्रित किया गया था, जबकि पार्टी की ओर से कहा गया है कि ममता बनर्जी को कोई निमंत्रण नहीं दिया गया है। सीएम ने कहा कि मुझे कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने (विश्वभारती के कुलपति) ने मुझे एक संदेश भेजा था कि जब मैं 26 दिसंबर को बोलपुर जाऊं तो अगर मैं उन्हें कुछ समय दे सकूं, वह मुझसे मिलना चाहते हैं। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि आज स्थापना दिवस है , लेकिन मुझे आमंत्रित नहीं किया गया था और न ही फोन किया गया था।
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