नवम्बर के दो हफ्ते बीतने को हैं पर सांतरागाछी झील में प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट नहीं सुने जाने से पक्षी प्रेमी निराश हैं। विदेशी प्रवाशी पक्षियों की जगह झील के इर्द गिर्द चीलों को मंडराते देखा जा रहा है। झील जलकुंभी से भर गई गई है।
झील पर नजर रखने वाले पक्षी प्रेमियों के मुताबिक ग्रीन ट्रिब्व्यूनल के निर्देश के बाद गत वर्ष हावड़ा नगर निगम के कर्मचारियों ने सफाई के दौरान जलकुंभियों के पूरी तरह साफ कर दिया था। जबकि झील में 20 प्रतिशत जलकुंभी रहने से उसका पारिस्थकीय संतुलन बना रहता है। पर्यावरणविद मानते हैं झील का चरित्र बदले जाने से ही हर साल आने वाले पक्षियों की संख्या गिरती जा रही है। उनका मानना है कि मानवीय गतिविधियों से जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई के लिए तुरंत कदम उठाना चाहिए। नहीं तो यहां विदेशी पक्षी आना बंद कर देंगे।
13 लाख फीट में है विस्तार कोलकाता महानगर से 20 मिनट के वाहन सफर की दूरी पर स्थित सांतरागाछी झील 13,75,000 वर्ग फीट में फैली हुई है। प्रत्येक वर्ष अक्टूबर से लेकर फरवरी तक यहां हजारों लेसर व्हिस्लिंग डक्स, उत्तरी पिंटेल, गॉडवॉल्स, लुप्तप्राय फेरुगिनस पोकार्ड, कॉमन टील, कपास पायग्मी गुज, वाटरफॉल जैसे प्रवासी पक्षी रूस, यूरोप व उत्तरी अमेरिका में पडऩे वाली भीषण सर्दी से बचने के लिए यहां आते हैं।
कम हो रही संख्या
वर्ष 2016 में झील में पहुंचने वाले 5474 विदेशी पक्षियों की संख वर्ष 2017 में घटकर 3123 पर आ पहुंची। गई। पक्षियों की संख्या में कमी की वजह से पर्यटन क्षेत्र को भी नुकसान हुआ और पक्षी प्रेमियों में निराशा देखी गई।
वर्ष 2016 में झील में पहुंचने वाले 5474 विदेशी पक्षियों की संख वर्ष 2017 में घटकर 3123 पर आ पहुंची। गई। पक्षियों की संख्या में कमी की वजह से पर्यटन क्षेत्र को भी नुकसान हुआ और पक्षी प्रेमियों में निराशा देखी गई।
मोहभंग हो रहा है
पारिस्थकीय संतुलन बिगडऩे से प्रवासी पक्षियों का झील से मोह भंग हो रहा है। झील के कुल क्षेत्रफल में से 20 फीसदी पर में जलकुंभी होनी जरुरी है। पक्षी उनपर बैठ कर आराम फरमाते हैं। जलकुंभी कम रहने से पक्षियों का खाना भी कम होता जा रहा है। आर्टिफिशल टापू बनाकर पक्षियों को आराम करने के लिए जगह उपलब्ध कराई जाती थी। निगम की सफाई के दौरान टापू का नुकसान हुआ है। झील पूरी तरह से फिर जलकुंभी से भर गई है। इसकी सफाई भी जरुरी है।
पारिस्थकीय संतुलन बिगडऩे से प्रवासी पक्षियों का झील से मोह भंग हो रहा है। झील के कुल क्षेत्रफल में से 20 फीसदी पर में जलकुंभी होनी जरुरी है। पक्षी उनपर बैठ कर आराम फरमाते हैं। जलकुंभी कम रहने से पक्षियों का खाना भी कम होता जा रहा है। आर्टिफिशल टापू बनाकर पक्षियों को आराम करने के लिए जगह उपलब्ध कराई जाती थी। निगम की सफाई के दौरान टापू का नुकसान हुआ है। झील पूरी तरह से फिर जलकुंभी से भर गई है। इसकी सफाई भी जरुरी है।
गौतम पात्रा, स्थानीय नागरिक व पक्षी प्रेमी क्या कहना है स्थानीय पार्षद का
ग्रीन ट्रिव्यूनल के निर्देश पर सांतरागाछी झील की सफाई का काम समय पर कर दिया गया। इसके बाद भी पता नहीं क्यों पक्षियों ने आना कमकर दिया है। निगम के पास पर्यावरण के विशेष जानकार नहीं है। अब से विशेषज्ञ की सलाह पर काम किया जाएगा।
ग्रीन ट्रिव्यूनल के निर्देश पर सांतरागाछी झील की सफाई का काम समय पर कर दिया गया। इसके बाद भी पता नहीं क्यों पक्षियों ने आना कमकर दिया है। निगम के पास पर्यावरण के विशेष जानकार नहीं है। अब से विशेषज्ञ की सलाह पर काम किया जाएगा।
नसरीन खातून, मेयर इन काॉन्सिल सदस्य- स्थानीय पार्षद व
तटों पर अभी भी कब्जा निगम ने झील की सफाई तो की पर उसके किनारों को कब्जा मुक्त नहीं कराया गया। पास में ही रेलवे स्टेशन है। इंजन के शोर भी विदेशी पक्षियों के लिए ठीक नहीं है। झील में अभी गंदगी फैलाई जा रही है।
सुभाष दत्त, पर्यावरणविद
तटों पर अभी भी कब्जा निगम ने झील की सफाई तो की पर उसके किनारों को कब्जा मुक्त नहीं कराया गया। पास में ही रेलवे स्टेशन है। इंजन के शोर भी विदेशी पक्षियों के लिए ठीक नहीं है। झील में अभी गंदगी फैलाई जा रही है।
सुभाष दत्त, पर्यावरणविद
क्या कहना है मेयर का झील की सफाई की गई है। अवैध कब्जा करने वाले को भी नोटिस दिया गया है कुछ को हटाया गया है। फिर से झील की सफाई की जरुरत पड़ी तो निगम पीछे नहीं हटेगा।
डॉ. रथिन चक्रवती, मेयर हावड़ा नगर निगम
डॉ. रथिन चक्रवती, मेयर हावड़ा नगर निगम