स्थानीय प्रशासन ने नहीं निकाला कोई नतीजा
समिति के बैनर तले एकजुट हुए किसानों का नेतृत्व अपनी पार्टी से नाराज स्थानीय तृणमूल नेता ही दे रहे हैं। इनमें दूधकुमार धारा शामिल हैं, जो लगभग दो दशक पहले सिंगुर ‘कृषि जमीं रक्षा समिति’ के नेताओं में से एक थे। 2011 में राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद धारा तृणमूल पंचायत समिति के अध्यक्ष थे लेकिन, पिछली बार पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। दूधकुमार ने दावा किया कि बंजर भूमि को खेती योग्य बनाया जाना चाहिए और नहीं तो उस जमीन पर उद्योग तो होगा ही। मुख्यमंत्री इसकी व्यवस्था करें। किसान पूरा सहयोग करेंगे। हम जल्द मुख्यमंत्री को इस बारे में ज्ञापन देने वाले है। अगर सरकार हमारी मांग नहीं मानी तो हम समिति के बैनर तले 30 अगस्त से सिंगूर में धरना शुरू करेंगे। समस्या के समाधान के लिए वे पहले भी स्थानीय प्रशासन से संपर्क कर चुके हैं लेकिन, कोई नतीजा नहीं निकला।
आंदोलन का कोई औचित्य नहीं: बेचाराम मन्ना
राज्य के कृषि विपणन मंत्री और सिंगूर से विधायक बेचाराम मन्ना ने कहा कि विरोध करना लोगों का अधिकार है लेकिन, इस आंदोलन का कोई औचित्य नहीं है। सिंगुर में लगभग 91 प्रतिशत भूमि खेती योग्य हो गई है। जिन लोगों ने सडक़ किनारे पेट्रोल पंप के लिए जमीन खरीदी, वे किसान नहीं हैं। वे खेती भी नहीं कर रहे हैं। आंदोलन की बात करने वाले वे लोग हैं, जिन्होंने दलाली करके सिंगुर की जमीनें खरीदी हैं। इसके अलावा जिन लोगों ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में सिंगूर आंदोलन का नेतृत्व किया था, वे इस आंदोलन में नहीं हैं।
आंदोलन ने हिला दी थी वाममोर्चा सरकार की नींव
पूर्व वाममोर्चा सरकार ने टाटा मोटर्स की नैनो कार परियोजना के लिए सिंगूर में किसानों से 1000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। जबरन जमीन अधिग्रहण करने का आरोप लगाते हुए अनिच्छुक किसानों ने आंदोलन शुरू किया, जिनकी लगभग 300 एकड़ जमीन थीं। किसानों ने आंदोलन के लिए सिंगूर कृषि भूमि रक्षा समिति का गठन किया। तत्कालीन विपक्ष की नेता ममता बनर्जी ने आंदोलन का नेतृत्व दिया। आंदोलन ने वामपंथी सरकार की नींव हिला दी थी।