कोलकाता

‘नीले रंग की लाल कहानी’ खोलेगी तीनकठिया प्रणाली का राज

बापू का कोलकाता-चंपारण यात्रा शतवार्षिकी कार्यक्रम 8 को कोलकाता में

कोलकाताApr 07, 2018 / 06:16 pm

Shishir Sharan Rahi

कोलकाता. भितिहरवा आश्रम जीवन कौशल ट्रस्ट की ओर से महात्मा गांधी के कोलकाता से चंपारण यात्रा शतवार्षिकी कार्यक्रम 8 अप्रैल को कलाकुंज में मनाया जाएगा। मुख्य अतिथि राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी उद्घाटन करेंगे। मूर्धन्य साहित्यकार पद्मश्री साहित्यकार डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र व सांसद/वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश विशिष्ट अतिथि और भितिहरवा आश्रम जीवन कौशल ट्रस्ट के अध्यक्ष शैलेंद्र प्रताप सिंह अध्यक्षता करेंगे। संचालन डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी करेंगे। कार्यक्रम संयोजक राजदत्त पांडेय ने शुक्रवार को बताया कि भितिहरवा आश्रम जीवन कौशल ट्रस्ट की ओर से निर्मित डॉक्यमेून्ट्री ड्रामा ‘नीले रंग की लाल कहानी’ का विमोचन इस अवसर पर होगा। इसके निर्देशक अरुण पाहवा हैं। इसका प्रदर्शन कोलकाता, लखनऊ , मुंबई, दिल्ली और रांची में किया जाएगा। भितिहरवा आश्रम जीवन कौशल ट्रस्ट का उद्देश्य गांधी और कस्तूरबा के साथ उनके सहयोगियों के विचारों का प्रचार-प्रसार करना है ताकि नई पीढ़ी को उनके बारे में जानकारी हो।
यह थी तीनकठिया प्रणाली
8 अप्रैल, 1917 को बंगाल की धरती से चंपारण के पंडित रामकुमार शुक्ल के आग्रह पर गांधीजी बिहार के लिए रवाना हुए थे। उस समय तत्कालीन फिरंगी सरकार की ओर से चंपारण में तीनकठिया प्रणाली लागू थी। इसमें अंग्रेज बागान मालिकों ने किसानों से एक करार कर रखा था, जिसके अंतर्गत किसानों को अपने कृषिजन्य क्षेत्र के 3/20वें भाग पर नील की खेती करनी होती थी। हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसान खाद्यान के बजाय नील और अन्य नकदी फसलों की खेती करने के लिए बाध्य हो गए थे। इसके खिलाफ गांधी ने सत्याग्रह किया और विवश होकर अंग्रेज सरकार को तीनकठिया प्रथा समाप्त करने के लिए बाध्य होना पड़ा।
यह था चम्पारण सत्याग्रह
गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में 1917-18 में एक सत्याग्रह हुआ था, जिसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में अंग्रेजों के खिलाफ यह पहला सत्याग्रह था। हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसान खाद्यान के बजाय नील और अन्य नकदी फसलों की खेती करने के लिए विवश थे। तत्कालीन अंग्रेजी सरकार की ओर से नील की खेती करने वाले किसानों पर बहुत अत्याचार हो रहा था और साथ ही अंग्रेजों की ओर से खूब शोषण हो रहा था। ऊपर से कुछ बगान मालिक भी जुल्म ढा रहे थे। महात्मा गांधी ने अप्रैल 1917 में राजकुमार शुक्ला के निमंत्रण पर बिहार के चम्पारन के नील कृषकों की स्थिति का जायजा लेने पहुंचे। उनके दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। किसानों ने अपनी सारी समस्याएं बताईं। उधर पुलिस सुपरिटेंडंट ने गांधीजी को जिला छोडऩे का आदेश दिया। गांधीजी ने आदेश मानने से इंकार कर दिया और अगले दिन गांधीजी को कोर्ट में हाजिर होना था। हजारों किसानों की भीड़ कोर्ट के बाहर जमा थी। गांधीजी के समर्थन में नारे लगाए गए और हालात की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत गांधीजी को छोडऩे का आदेश दिया, लेकिन गांधीजी ने कानून के अनुसार सजा की मांग की। चंपारन सत्याग्रह में गांधीजी ने अपने कई स्वयंसेवकों को किसानों के बीच भेजा। यहां किसानों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए ग्रामीण विद्यालय खोले गए और लोगों को साफ-सफाई से रहने के तरीके बताए गए। चंपारण के इस ऐतिहासिक संघर्ष में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ अनुग्रह नारायण सिंह, आचार्य कृपलानी, बृजकिशोर, महादेव देसाई, नरहरि पारिख आदि ने अहम भूमिका निभाई। चंपारण के इस गांधी अभियान से अंग्रेज सरकार परेशान हो उठी और मजबूर होकर एक जांच आयोग नियुक्त किया। गांधीजी को भी इसका सदस्य बनाया गया।। परिणाम सामने था। कानून बनाकर सभी गलत प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया। जमींदार के लाभ के लिए नील की खेती करने वाले किसान अब अपने जमीन के मालिक बने। इस तरह गांधीजी ने भारत में सत्याग्रह की पहली विजय का शंख फूंका और चम्पारन ही भारत में सत्याग्रह की जन्म स्थली बना।

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