मान्यता है कि भगवान शिव द्वारा दिया गया वरदान यहां आज भी फलीभूत है. खोया गया मान—सम्मान, कीमती वस्तु दोबारा प्राप्त करने के लिए यहां खासतौर पर मन्नत मांगी जाती है. स्वास्थ्य और आयु पाने की मनोकामना भी यहां स्थित भगवान शिव पूरा करते हैं. इस मंदिर को अखंड दीपों के लिए भी जाना जाता है. मंदिर में प्रज्वलित 11 अखंड नंदा दीपों का विशेष महत्व है.
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यहां आनेवाले भक्त दीपक में घी दान करने की मन्नत करते हैं. हजारों भक्तों के घी दान में देने के कारण घी की इतनी मात्रा एकत्रित हो गई है कि इसे रखने के लिए खास जतन करना पड़ रहा है. मंदिर प्रबंधन को घी रखने के लिए दो मंजिला विशाल भवन बनाना पड़ा. अखंड नंदा दीपक से बने काजल की भी विशेषता बताई गई है. माना जाता है कि ये बुरी नजर से बचाता है.
कथा है कि च्रक महिष्मति के राजा कार्तवीर्यार्जुन ऋषि जमदाग्नि से कामधेनु गाय लाने की चेष्टा करते हैं.इसके लिए का वध कर देते हैं. पिता की हत्या से क्रोधित परशुराम राजा कार्तवीर्यार्जुन की हजारों भुजाएं काट देेते हैं. राजा के अंतिम समय में भगवान शिव उन्हें शिव रूप में पूजित होने का वरदान देते हैं.
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महेश्वर के राजा कार्तवीर्यार्जुन को भगवान विष्णु का च्रकावतारी माना जाता है. उन्हें शिव रूप में पूजित होने का वरदान मिला है. उन्हें राजाधिराज राजेश्वर के रूप में जाना जाता है. धर्मग्रंथों के मुताबिक कार्तवीर्यार्जुन ने रावण को परास्त कर महेश्वर में 6 महीने बंधक रखा था. उन्हें भगवान दत्तात्रेय से हजारों भुजाओं का आशीर्वाद मिला था जिससे वे सहस्त्रार्जुन कहलाए.