पुरूष ही क्यों करते हैं गरबा?
परंपरा के अनुसार, यहां गाये जाने वाले सात गरबे ही बीते सौ-डेढ़ सौ साल से गाए जा रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि, पुराने समय में महिलाएं घूंघट रखते हुए बड़े – बुजुर्गों के लिहाज और शर्म के चलते पुरुषों के साथ गरबा में शामिल होने से कतराती थीं। शायद इसी के चलते यहां सिर्फ पुरुष ही गरबा करते हैं और वही पुरानी परंपरा आज भी यहां यथावत निभाई जाती है।
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नवरात्रि में लगता है मेला
मंदिर के प्रति सभी उम्र के भक्त श्रद्धा रखते हैं। हिन्दू नववर्ष की प्रतिपदा से सालभर यहां कोई न कोई धार्मिक कार्यक्रम, अनुष्ठान, कथा पुराण, हवन होते रहते हैं। वर्ष की दोनों नवरात्रि में निमाड़-मालवा क्षेत्र के अनेक दर्शनार्थी यहां आते रहते हैं। इस मंदिर में नवरात्रि में आरती के पहले प्रतिदिन पुरुषों द्वारा सात गरबे करने की अनूठी परंपरा है। इन गरबों में मां के प्रति सच्ची आस्था देखने को मिलती है। खास बात यह है कि, यहां पुरुष श्रद्धालु डांडियों के बजाय हाथों से ही ताल से ताल मिलाकर झूमते हुए गरबे करते हैं।
कुएं से निकाली गई थी माता की पिंडी रुपी मूर्तियां
मंदिर के पूजारी रामकृष्ण भट्ट का कहना है कि, बाकी माता मंदिर अद्भुत और अद्वितीय है। क्योंकि मंदिर विराजीत माता की पिंडियां कुंए से निकाली गई। ऐसा कहा जाता है कि, मंदिर की स्थापना करने वाले भटाम भट्ट दादा को देवी मां ने सपने में दर्शन देते हुए बताया था कि, हम घर के बाहर झिरे में है, उसके बाद भटाम भट्ट दादा ने अपने नाती हाबया दादा से कुएं से मूर्तियां निकलवाई थीं और नजदीक ही स्थित पीपल की ओट से रखकर उनका पूजन अर्चन शुरू किया था। उन्होंने बताया कि माता शीतल जल से निकली हैं और तभी से मंदिर में पीपल के पेड़ के नीचे चबुतरे पर विराजित हैं।
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एक ही चबूतरे पर नौ देवियां
मंदिर में देवशक्ति स्वरूपा भगवान ब्रह्मा की शक्ति ब्राह्मी, भगवान महेश की माहेश्वरी, भगवान विष्णु की शक्ति वैष्णवी, कुमार कार्तिक की शक्ति कौमारी, भगवान इंद्र की शक्ति इंद्राणी, भगवान वराह की शक्ति वाराही और स्व प्रकाशित मां चामुंडा के साथ ही महालक्ष्मी, सरस्वती, शीतला और बोदरी खोखरी माता मंदिर की चौपाल पर प्राण प्रतिष्ठित है। 9 माताओं के साथ भगवान महाबलेश्वर, अष्ठ भैराव और राम भक्त हनुमान एक ही चबुतरे पर विराजित हैं। किसी भी माता मंदिर में ऐसा नहीं देखा गया है। श्रद्धालु माता के चबुतरे की परिक्रमा के साथ ही सभी आराध्य की भी परिक्रमा कर आशीर्वाद लेते हैं।
नवरात्र में श्रद्धालु कर सकते हैं माता के कुएं से स्नान
मंदिर में आए एक श्रद्दालु का कहना है कि, माता को जिस कुंए से निकाला गया था। नवरात्रि के दौरान श्रद्धालु तड़के 5 बजे से कुएं के शीतल जल से स्नान कर सकते हैं। श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ नवरात्रि के दौरान ही कुएं के जल से स्नान की अनुमति रहती है। स्नान का दौर तड़के 5 बजे से शुरु होकर सुबह 10 बजे तक जारी रहता है। स्नान करने के बाद श्रद्धालु गीले कपड़ों में ही माता के दर्शन कर उन्हें जल समर्पित करते हैं। इसके बाद वे उसी जल का चराणामृत के रुप में पान करते हैं। वहीं, मंदिर के पुजारी का कहना है कि, माता के कुंए के जल से स्नान करने से कई बीमारियां ठीक होती हैं। नवरात्र में माता के कुंए के जल से स्नान करने का बहुत महत्व है। नवरात्रि के दौरान रात 3 बजे से ही स्नान करने वालों की भीड़ लग जाती है।
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