संत सिंगाजी समाधि स्थल पहुंचने के लिए गांव-गांव से श्रद्धालुओं के जत्थे रवाना हो गए हैं। शरद पूर्णिमा पर सिंगाजी के दर्शन की आस लिे भजनों के साथ पैदल चलते हुए लोगों का पहुंचना शुरू हो गया। गुरुवार को भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु झंडा चढ़ाने के लिए पहुंचे।
परंपराओं का होता है संगम
यहां लोक परंपराओं का अनूठा संगम भी देखने को मिलता है। यहां पूर्वी निमाड़, पश्चिमी निमाड़, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की संस्कृति मिलती है। यहां लोकरंग और अनेक लोक गीतों से मेले का लुत्फ लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं।
कौन थे सिंगाजी महाराज
ऋषि की संतान थे सिंगाजी मान्यता है कि श्रृगी ऋषि ने ही सिंगाजी के रूप में जन्म लिया था। संस्कृत में ‘श्रृग’ का अर्थ सींग होता है और ‘सिंगा’ भी ‘सिंग’ का ही रूप है। भजनों में भी उनकी कई कहानियां चली आ रही हैं। सिंगाजी के जन्म स्थान खजूरी की पहाड़ियों पर आज भी सफेद निशान मौजूद हैं। कहा जाता है कि यहां सिंगाजी अपने पशुओं को चराते थे और दूध दुहते थे। निमाड़-मालवा के पशु-पालक आज भी सिंगाजी को देवता की तरह पूजते हैं। पदचिन्ह के मंदिर स्थापित हैं।
डूब क्षेत्र में है समाधि स्थल सिंगाजी महाराज का समाधि स्थल इंदिरासागर परियोजना के डूब क्षेत्र में आने की वजह से उस स्थल को 50-60 फीट के परकोटे से सुरक्षित कर मंदिर बनाया जा रहा है। निर्माण कार्य चलने की वजह से भक्तों के दर्शन के लिए संत सिंगाजी महाराज की चरण पादुकाएँ अस्थायी रूप से नजदीक के परिसर में रखी गई हैं।
मेले में यह है खास
खंडवा से पहुंचना है आसान
खंडवा से 35 किमी दूर पीपल्या ग्राम में बनी हुई है, जो बीड स्टेशन के पास है। यहां पहुंचने के लिए खंडवा से हर आधे घंटे की दूरी पर है सिंगाजी। खंडवा से हर थोड़ी देर में बसें उपलब्ध हैं। खंडवा से बीड़ रेलवे स्टेशन, जो कि पीपल्या ग्राम से 3 किमी की दूर स्थित है, तक शटल ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है।