खंडवा. यह मंदिर नर्मदा नदी में मांधाता द्वीप पर स्थित एक मनोरम स्थान पर है। यह स्थान प्राचीन काल से ही तीर्थस्थल के रूप में प्रख्यात है। ऐसी मान्यता है कि ओंकारेश्वर में स्थापित लिंग स्वयं-भू अर्थात प्राकृतिक रूप से तैयार शिवलिंह है। मंदिर में ओंकार शिव लिंग के साथ ही पार्वती जी व गणेश की मूर्तियां हैं।
शिवलिंग चारों ओर हमेशा जल से भरा रहता है। ओंकारेश्वर मंदिर पूर्वी निमाड़ (खंडवा) जिले में नर्मदा के दाहिने तट पर स्थित है जबकि बाएं तट पर ममलेश्वर है, जिसे कुछ लोग असली प्राचीन ज्योतिर्लिंग भी कहते हैं।
चौपड़ पासे खेलते हैं शिव-पार्वतीइसके बारे में कहा जाता है कि रात को शंकर, पार्वती व अन्य देवता यहां चौपड-पासे खेलने आते हैं। इसे अपनी आंखों से देखने के लिए स्वतन्त्रता के पहले भगवान शिव व पार्वती को देखने के लिए अंग्रेज यहां छुप गया था, लेकिन सुबह को वो यहां पर मरा हुआ मिला था। यह भी कहा जाता है कि शिवलिंग के नीचे हर समय नर्मदा का जल बहता है।
ओंकार पर्वत
इस कथा के अनुसार यहां स्थापित हुए थे शिवओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार एक बार नारद ऋषि विंध्य पर्वत पहुंचे। विंध्य पर्वत अपनी अभिमान से भरी बातें नारद को सुनाने लगा। तभी नारद ने विंध्याचल को बताया कि तुम्हारे पास सब कुछ है, लेकिन में पर्वत तुमसे बहुत ऊंचा है। यह बात सुनकर विंध्य पर्वत को बहुत दुख हुआ।
विंध्य पर्वत को इस बात से जलन थी कि वह मेरू पर्वत से ऊंचा क्यों नहीं है। वह भगवान शंकर जी की शरण में चला गया जहां पर साक्षात ओंकार विद्यमान हैं। उस स्थान पर पहुंचकर उसने प्रसन्नता और प्रेमपूवज़्क शिव की पाथिज़्व मूतिज़् (मिट्टी की शिवलिंग) बनाई और छ: महीने तक लगातार उसके पूजन में तन्मय रहा।
उसकी कठोर तपस्या को देखकर भगवान शंकर उससे प्रसन्न हो गए। उन्होंने विन्ध्य को अपना दिव्य स्वरूप प्रकट कर दिखाया, जिसका दर्शन बड़े-बड़े योगियों के लिए भी अत्यन्त दुर्लभ होता है। भगवान शिव ने विंध्य को कार्य की सिद्धि करने वाली वह अभीष्ट बुद्धि प्रदान की और कहा कि तुम जिस प्रकार का काम करना चाहो, वैसा कर सकते हो।
मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। भगवान शिव ने जब विन्ध्य को उत्तम वर दे दिया, उसी समय देवगण व शुद्ध बुद्धि और निर्मल चित्त वाले कुछ ऋषिगण भी वहां आ गए। उन्होंने भी भगवान शंकर की विधिवत पूजा की और उनकी स्तुति करने के बाद उनसे कहा – ‘प्रभु! आप हमेशा के लिए यहां स्थिर होकर निवास करें।
देवताओं की बात से महेश्वर भगवान शिव को बड़ी प्रसन्नता हुई। लोकों को सुख पहुंचाने वाले परमेश्वर शिव ने उन ऋषियों व देवताओं की बात को प्रसन्नता पूर्वत स्वीकार कर लिया। वहां स्थित एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो गया। प्रणव के अंतर्गत जो सदाशिव विद्यमान हुए, उन्हें ‘ओंकार’ नाम से जाना जाता है।
इसी प्रकार पार्थिव मूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, वह ‘परमेश्वर लिंगÓ के नाम से विख्यात हुई। परमेश्वर लिंग को ही ‘अमलेश्वर’ भी कहा जाता है।
मंदिर के अंदर स्थापित स्वयंभू भगवान ओंकारेश्वर शिवलिंग
… और भी हैं कई प्रमुख मंदिरअगर आप ओंकारेश्वर जा रहे हैं तो आपको अंधकेश्वर, झुमेश्वर, नवग्रहेश्वर नाम से भी बहुत से शिवलिंगों के दर्शनों का अवसर मिलेगा। यहां अविमुक्तेश्वर, महात्मा दरियाईनाथ की गद्दी, बटुकभैरव, मंगलेश्वर, नागचंद्रेश्वर, दत्तात्रेय व काले-गोरे भैरव भी प्रमुख दर्शन स्थल हैं।
ऐसे पहुंच सकते हैं यहांअगर आप हवाई यात्रा से ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो ओंकारेश्वर से 77 किलोमीटर की दूरी इंदौर हवाई अड्डा है। यहां से आप बस या टैक्सी के जरिए मंदिर तक पहुंच सकते हैं। वैसे इंदौर के अलावा 133 किलोमीटर की दूरी पर उज्जैन हवाई अड्डा भी है। आप यहां से भी असानी से ओंकारेश्वर मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।
अगर आप रेल से इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करना चाहते हैं तो यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन रतलाम-इंदौर-खंडवा लाइन पर स्थित ओंकारेश्वर रोड रेलवे स्टेशन है । जहां से मंदिर की दूरी मात्र 12 किमी की है। वैसे सड़क मार्ग से भी आप ओंकारेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं। राज्य परिवहन निगम की बसें यहां तक चलाई जाती हैं।