scriptपहली बार चौबीस तीर्थंकर रत्नजडि़त प्रतिमाओं का परिसर में उतार किया अभिषेक व शांतिधारा | Jain saint Acharya Pranam Sagar Maharaj preached in Khandwa | Patrika News
खंडवा

पहली बार चौबीस तीर्थंकर रत्नजडि़त प्रतिमाओं का परिसर में उतार किया अभिषेक व शांतिधारा

जैन संत आचार्य प्रणाम सागर महाराज ने खंडवा में प्रवचन, शहर की सुख-समृद्धि, खुशहाली और विकास के लिए धार्मिक अनुष्ठान

खंडवाMar 02, 2020 / 12:14 am

dharmendra diwan

Acharya Pranam Sagar Maharaj

पहली बार चौबीस तीर्थंकर रत्नजडि़त प्रतिमाओं का परिसर में उतार किया अभिषेक व शांतिधारा

खंडवा. संत किसी समाज से बंधा नहीं रहता, सर्व कल्याण की भावना से प्रवचनों के माध्यम से धर्म प्रभावना करता है। खंडवा से मेरा लगाव रहा है और मैं इसे अपनी कर्मभूमि भी मानता हूं। खंडवा की सुख-समृद्धि एवं विकास के लिए समाजजनों के सहयोग से अनुष्ठान संपन्न हुआ। यह बात घासपुरा महावीर जैन मंदिर परिसर में जैन संत डॉ. प्रणाम सागर महाराज ने कही। पहली बार मंदिर भक्ताम्बर मंडल विधान की संगीतमय पूजा के साथ यज्ञ हुआ। इंद्र-इंद्राणियों के साथ श्रद्धालुओं ने खंडवा की सुख-समृद्धि एवं अपने कल्याणार्थ श्रीफल के साथ अघ्र्य चढ़ाए। मंदिर के ऊपरी तल पर शिखरजी की रचना में विराजमान चौबीसों तीर्थंकरों की रत्नजडि़त मूर्तियों को नीचे लाकर पूजा अर्चना के साथ श्रद्धालुओं द्वारा अभिषेक करते हुए सामूहिक शांतिधारा की गई। सुबह 6 से दोपहर 1.30 तक अनुष्ठान कार्यक्रम हुआ। आचार्य के मंत्रोच्चार, प्रवचनों का लाभ एवं आशीर्वाद सांसद नंदकुमार सिंह चौहान, विधायक देवेंद्र वर्मा सहित अनेक श्रद्धालुओं ने प्राप्त किया। समाज के अध्यक्ष दिलीप पहाडिय़ा के साथ सभी ट्रस्टियों व महिला मंडलों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मनुष्य कर्म से महान बनता है
आचार्य प्रणाम सागर ने कहा मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। जन्म के बाद महान बनने के लिए शिक्षा की शुरूआत की जाती है। बिना शिक्षा के मानव का जीवन पशु के समान होता है। जिसने मानव जन्म पाकर जिसने न विद्या अध्ययन किया, न तप, न धार्मिक शिक्षा ग्रहण की न दान दिया है। ऐसा जीवन इस पृथ्वी लोक पर भार स्वरूप है। हमारा जन्म उच्च कुल में सम्राट के घर में हो जाए, लेकिन जब तक शिक्षा व ज्ञान का पूर्ण अभ्यास जीवन में न हो जाए। तब वह राज्य के कार्यभार को संभाल कर सम्राट नहीं हो सकता।

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