देशभर की मान्यताओं से विपरीत प्राचीन काल से चली आ रही इस परम्परा को आज भी शहर के लोग उसी ढंग से मानते आ रहे हैं। दरअसल, रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त था। इस कारण रावण के साथ ही यहां कुंभकरण-मेघनाद के पुतलों का दहन भी नहीं किया जाता। यह परंपरा क्षेत्र में प्राचीन समय से चली आ रही है। इसे सभी लोग निभाते आ रहे हैं।
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क्यों नहीं होता रावण दहन?
ओंकारेश्वर के पास स्थित ग्राम शिवकोठी गांव के युवाओं ने एक बार गांव में रावण का पुतला बनाकर दहन किया। उसके परिणाम स्वरूप पुरे गांव में रावण दहन पर भयानक आपसी विवाद छिड़ गया। कुछ ही दिनों में पूरा गांव दो धड़ों में बंट गया। कुछ साल के लिए यहां हालात ऐसे हो गए कि न तो यहां की महिलाएं एक-दूसरे से बातचीत करतीं और ना ही पुरुष एक-दूसरे से मेल मिलाप रखते। गांव के लोगों ने दोनों अलग-अलग धड़ों के लोगों के यहां धार्मिक कार्यक्रमों में तक आना-जाना बंद कर दिया। लगातार विवाद गहराता देख शिवकोठी गांव के बुर्जुगों ने मामले पर आपसी समझौता किया और प्रण लिया कि अब से इस गांव में कोई भी रावण दहन नहीं करेगा।10 कि.मी दायरे में कहीं दहन नहीं होता
ओंकारेश्वर मंदिर के प्रबंधक ट्रस्टी राव देवेंद्र सिंह का कहना है कि रावण दहन ओंकारेश्वर में नही होता। कुछ साल पहले लोगों ने कोशिश कि थी, पर उसपर विवाद शुरु हो गया, जिसके बाद से यहां रावण दहन को पूर्ण रूप से बंद करने का प्रण लिया गया। राव ने बताया कि प्राचीन काल से चली आ रही इस परम्परा को नगर में आज भी निर्वाह होता आ रहा है। शिवनगरी ओंकारेश्वर से 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले किसी भी गांव में इसी परम्परा के चलते आज भी रावण दहन नहीं होता। यह भी पढ़ें- NH-46 पर भीषण हादसा : खड़े कंटेनर में जा घुसी तेज रफ्तार यात्री बस, हादसे में 13 घायल 4 गंभीर