खजुराहो.खजुराहो आज विश्व धरोहर है। यहां भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की नायाब मिसाल देखने को मिलती है। हर साल इसे निहारने हजारों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं और भव्य प्रतिमाओं को अपने कैमरों में कैद करते हैं। उनके बारे में जानकारियां लेते हैं और निकल जाते हैं, लेकिन चंदेल राजाओं द्वारा मंदिरों में बनवाई गईं कामुक प्रतिमाओं का रहस्य आज भी बरकरार है। आखिर क्या वजह थी कि मंदिरों में आध्यात्म, रतिक्रीड़ा, नृत्य मुद्राओं और प्रेम रस की प्रतिमाओं को उकेरा गया? इसे लेकर जानकारों के अलग-अलग मत हैं।
वजह 01
खजुराहो के मंदिर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सिद्धांत का हिस्सा हैं। ये प्रतिमाएं भक्तों के संयम की परीक्षा लेने का माध्यम हैं। ऐसा कहा जाता है जब व्यक्ति मंदिर जाता है तो उसका मन दुनियादारी की तमाम चीजों में लगा रहता है। वह न तो भगवान के प्रति समर्पित हो पाता है और न ही अपने मन में उमड़-घुमड़ रहे उन विचारों पर एकाग्र हो पाता है। लेकिन जब वह खजुराहो पहुंचता है और यहां शिल्पकला का नायाब नमूना देखता है तो उसे अनन्य शांति मिलती है।
वजह 02
किताबों में मिलता है कि चंदेल काल में इस क्षेत्र में तांत्रिक समुदाय की वाममार्गी शाखा थी। ये योग और भोग दोनों को मोक्ष का साधन मानते थे। ये मूर्तियां उनकी कामक्रीड़ा की ही देन हैं। शास्त्रों के अनुसार संभोग भी मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन हो सकता है, लेकिन यह बात सिर्फ उन लोगों पर लागू होती है, जो सच में ही मुमुक्षु हैं। वात्स्यायन के कामसूत्र का आधार भी प्राचीन कामशास्त्र और तंत्रसूत्र ही है।
वजह 03
मंदिर निर्माण के कारणों में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि तब बौद्ध धर्म के प्रभाव के चलते गृहस्थ धर्म से विमुख होकर अधिकतर युवा ब्रह्मचर्य और सन्यास की ओर अग्रसर हो रहे थे। उन्हें पुन: गृहस्थ धर्म में रुचि पैदा करने के लिए ही देशभर में इस तरह के मंदिरों का निर्माण किया गया था और उनके माध्यम से यह दर्शाया गया कि गृहस्थ रहकर भी मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। इसका प्रमाण यह है कि खजुराहो में ऐसी ढेरों प्रतिमाएं हैं जो बौद्ध धर्म को दर्शाती हैं।
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