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भोरमदेव अभयारण्य में राष्ट्रीय पशु बाघ की संदिग्ध मौत पर वन विभाग ने साधी चुप्पी, केंद्रीय जांच से किया किनारा

मिली जानकारी के अनुसार मृत बाघ के शरीर का अधिकतर हिस्सा खा लिया गया था, जबकि वन विभाग के अधिकारी केवल कुछ हिस्सा नोंचने की बात कह रहे हैं।

कवर्धाNov 21, 2020 / 04:41 pm

Dakshi Sahu

भोरमदेव अभयारण्य में राष्ट्रीय पशु बाघ की संदिग्ध मौत पर वन विभाग ने साधी चुप्पी, केंद्रीय जांच से किया किनारा

कवर्धा. भोरमदेव अभयारण्य में राष्ट्रीय पशु बाघ की हुई मौत पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। राष्ट्रीय पशु बाघ की संदिग्ध अवस्था में शव मिला, इसलिए जांच भी केंद्रीय स्तर पर आवश्यक हो चुका था। कबीरधाम जिले के भोरमदेव अभयारण्य क्षेत्र के चिल्फी रेंज के ग्राम तुरैयाबाहरा के जंगल में 12 नवंबर को गश्त के दौरान वनरक्षकों को एक बाघिन का शव मिला। शव कुछ दिन पुराना बताया गया। वन विभाग की टीम ने इसे सीधे-सीधे इसे दो बाघों के बीच खूनी संघर्ष करार दे दिया गया, जिससे एक उम्रदराज बाघ की मौत हो गई। सवाल यही से खड़ा होता है कि क्या दो बाघों के बीच संघर्ष में एक बाघ दूसरे बाघ को मार देता है। क्या उसका मांस भी खा जाता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मृत बाघ के शरीर का अधिकतर हिस्सा खा लिया गया था, जबकि वन विभाग के अधिकारी केवल कुछ हिस्सा नोंचने की बात कह रहे हैं। मतलब मामले में कुछ छिपाया जा रहा है। संभवत: इसके चलते ही इस बार मृत बाघ के शरीर का फोटो और विडियो जारी नहीं किया गया। बाघ की मौत कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से लगे भोरमदेव अभयारण्य में हुई, इसके चलते ही दो राज्य की टीम इसमेंं निरीक्षण के लिए पहुंचे थे। कान्हा के एक्सपर्ट डॉक्टरों की टीम ने बाघ का पीएम किया। मौके पर जांच के लिए डॉग स्कॉयड भी बुलाया गया था, लेकिन इसमें विभाग ने क्या जांच किया इसकी कोई जानकारी नहीं दी जा रही।
पूर्व में दो राष्ट्रीय पशु का शिकार
राष्ट्रीय पशु बाघ के मौत मामले में केंद्रीय जांच इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि जिले में पूर्व तक एक बाघ और एक बाघिन का शिकार किया जा चुका है। पहला मामला वर्ष 2010 का है। अमनिया के जंगल में बाघ को जहर देकर मार दिया गया। वहीं दूसरा मामला वर्ष 2011 में भोरमदेव अभयारण्य के जामुनपानी में हथियार से बाघिन की हत्या हुई। दांत, नाखून व मूंछ के बाल निकाल लिए गए। अब एक और बाघ की मौत हुई वह भी भोरमदेव अभयारण्य क्षेत्र में।
भोरमदेव अभयारण्य में राष्ट्रीय पशु बाघ के संदिग्ध अवस्था में मौत के मामले में वन विभाग की टीम ने मीडिया से दूरी ही बनाए रखा। मामला संदिग्ध इसलिए भी है क्योंकि न तो मृत बाघ का फोटो जारी किया गया न ही वीडियो। इसके अलावा घटना की जानकारी मिलने पर जब दूसरे दिन स्थानीय मीडियाकर्मी जंगल पहुंचे तो उन्हें घटना स्थल के पहले ही रोक दिया गया। घटना स्थल पर जाने और बाघ को देखने तक नहीं दिया गया। वहीं पोस्टमार्टम कराकर शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
डीएफओ का कथन
वनमंडलाधिकारी दिलराज प्रभाकर ने घटना के दूसरे दिन शाम को मीडिया को बताया था कि शार्ट पीएम रिपोर्ट में बाघ की सामान्य मौत होना पाया गया। बाघ की उम्र करीब 14 से 16 साल की रही, जिसके हिसाब से उसकी जीवन यात्रा लगभग पूरी हो गई थी। हालांकि मौके पर दो बाघों में संघर्ष के साक्ष्य मिले हैं। मृत बाघ के शरीर में चोट के पंजे के निशान भी है, जिससे ये प्रतीत होता है कि दो बाघ के बीच आपस में लड़ाई हुई होगी, जिससे बाघ घायल हुआ होगा।
बाघ ही नहीं तेंदुए का भी किया जा चुका है शिकार
जिले में केवल बाघ ही नहीं तेंदुए का भी शिकार किया जाता है। तीन वर्षों से लगातार तीन तेंदुओं की मौत हो चुकी है। मई 2020 में सहसपुर लोहारा वन परिक्षेत्र के बीट क्रमांक 291 में कर्रानाला डूबान क्षेत्र में मादा तेंदुए का शव मिला। मार्च 2019 में पंडरिया ब्लॉक के नेऊर अंतर्गत बीट क्रमांक 478 के जंगल में शिकारियों ने 11केव्ही तार में कच्चा तार के जरिए तेंदुआ का शिकार किया। इसमें दो मवेशी के मौत हुई थी। वहीं अक्टूबर 2018 में भोरमदेव अभयारण्य के बफर एरिया में झलमला से जामुनपानी के बीच शीतलपानी के पास पानी से भरे एक स्टॉपडैम नुमा डबरी में तेंदुए का शव झाडिय़ों में फंसा मिला था।

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