राष्ट्रीय पशु बाघ के मौत मामले में केंद्रीय जांच इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि जिले में पूर्व तक एक बाघ और एक बाघिन का शिकार किया जा चुका है। पहला मामला वर्ष 2010 का है। अमनिया के जंगल में बाघ को जहर देकर मार दिया गया। वहीं दूसरा मामला वर्ष 2011 में भोरमदेव अभयारण्य के जामुनपानी में हथियार से बाघिन की हत्या हुई। दांत, नाखून व मूंछ के बाल निकाल लिए गए। अब एक और बाघ की मौत हुई वह भी भोरमदेव अभयारण्य क्षेत्र में।
वनमंडलाधिकारी दिलराज प्रभाकर ने घटना के दूसरे दिन शाम को मीडिया को बताया था कि शार्ट पीएम रिपोर्ट में बाघ की सामान्य मौत होना पाया गया। बाघ की उम्र करीब 14 से 16 साल की रही, जिसके हिसाब से उसकी जीवन यात्रा लगभग पूरी हो गई थी। हालांकि मौके पर दो बाघों में संघर्ष के साक्ष्य मिले हैं। मृत बाघ के शरीर में चोट के पंजे के निशान भी है, जिससे ये प्रतीत होता है कि दो बाघ के बीच आपस में लड़ाई हुई होगी, जिससे बाघ घायल हुआ होगा।
जिले में केवल बाघ ही नहीं तेंदुए का भी शिकार किया जाता है। तीन वर्षों से लगातार तीन तेंदुओं की मौत हो चुकी है। मई 2020 में सहसपुर लोहारा वन परिक्षेत्र के बीट क्रमांक 291 में कर्रानाला डूबान क्षेत्र में मादा तेंदुए का शव मिला। मार्च 2019 में पंडरिया ब्लॉक के नेऊर अंतर्गत बीट क्रमांक 478 के जंगल में शिकारियों ने 11केव्ही तार में कच्चा तार के जरिए तेंदुआ का शिकार किया। इसमें दो मवेशी के मौत हुई थी। वहीं अक्टूबर 2018 में भोरमदेव अभयारण्य के बफर एरिया में झलमला से जामुनपानी के बीच शीतलपानी के पास पानी से भरे एक स्टॉपडैम नुमा डबरी में तेंदुए का शव झाडिय़ों में फंसा मिला था।