Price Hike: कीमतों पर नियंत्रण नहीं
Price Hike: वर्तमान में प्रति टिन तेल की कीमत में 300 रुपए तक की बढ़ोतरी हो गई है। महंगाई से पहले से ही लाल हो चुके उपभोक्ता 80 रुपए किलो में टमाटर खरीदकर और भी ज्यादा लाल हो गए हैं। काजू 600 से 880 रुपए किलो, मखाना 600 से 1100 रुपए किलो हो गया है। व्यापारियों के अनुसार महीनेभर तक किसी भी सामान के रेट में कमी की संभावना नहीं है। Vegetable Price Hike: कटौती कर मनाना होगा त्यौहार
Vegetable Price Hike: ऐसे में लोगों को कटौती कर त्यौहार मनाना होगा। नवरात्र के पूर्व तेल की कीमत लगभग 300 से 400 रुपए प्रति टिन कम थी। ठीक नवरात्र के समय रेट बढ़ने से जिन विक्रेताओं के पास अत्याधिक मात्रा में तेल स्टोर थे, उनकी तो दिवाली मन गई। नवरात्र में सबसे ज्यादा नारियल की खपत होती है। इसके चलते नारियल की कीमत नवरात्र में 25 रुपए प्रति नग पहुंच गया था।
Oil Price Hike: ज्योत, भोग सहित अनेक पकवान बनाने के लिए त्यौहारों में तेल की खपत बढ़ जाती है। इधर दाल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के बजाए 10 रुपए तक कम हुए हैं। बावजूद राहर 160 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। साल भर पहले की तुलना में दालों की कीमत में 20 से 25 प्रतिशत की वृद्धि र्हुई है।
Oil Price Hike: बिगड़ा घर का बजट
Price Hike for Ration: शहर में राहर दाल 160 रुपए, मूंगदाल 120 रुपए और चना दाल 100 रुपए प्रति किलो बिक रही है। जो लगातार बढ़ती महंगाई की ओर इशारा कर रहा है। महंगाई के चलते घरों में दाल गलना बंद हो चुका है। बेतहासा महंगाई देखकर लोगों के पसीने छूट रहे हैं। दाल खाने वाले लोगों को समझौता करना पड़ रहा है। बावजूद इसके सरकारी तंत्र खामोश है।
Price Hike for Ration: नहीं हो पा रही है कार्रवाई
इधर शासन द्वारा दालों के मूल्य तय करने के बाद भी सरकारी तंत्र खामोश बैठी है। खाद्य अधिकारियों और व्यापारियों को समझाईश देकर जिम्मेदारियों से इतिश्री कर ली गई है। अनाज गोदामों में छापेमारी नहीं होने के कारण व्यापारियों का मनोबल बढ़ा हुआ है। यही कारण है कि दाल व तेल की कीमतों में कोई कमी नहीं आई है और लगातार कीमत में बढ़ोत्तरी कर उपभोक्ताओं को लूट रहे हैं। जिले में तेल की धार पतली और दाल गलना बंद हो चुकी है। इसका मुख्य कारण कीमतों पर कोई नियंत्रण है। इससे लोगों की जेब हल्की होने लगी है। दाल की ऊंचे कीमतों को लेकर शहर के व्यापारियों का तर्क है कि थोक में खरीदी के बाद भी दाल की कीमत महंगी पड़ती है। ऐसे में चिल्हर बेचने पर दाल और भी महंगा हो जाता है। यदि थोक में खाद्य दालें सस्ती मिलें, तो चिल्हर में खुद-बखुद ही दाम घट जाएंगे।