कवर्धा

भोरमदेव अभयारण्य में मिली दुर्लभ तितली की सबसे बड़ी प्रजाति, स्थल निरीक्षण के दौरान पड़ी अधिकारियों की नजर

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के बाद भोरमदेव अभयारण्य में देखी गई तितलियों की यह दुर्लभ प्रजातियां बस्तर में रिकॉर्डेड एंगल पेरोट और ओरिएंटल चेस्टनट एंगल तितलियों को बस्तर के अलावा भोरमदेव अभयारण्य में देखा गया है।

कवर्धाAug 30, 2020 / 01:39 pm

Dakshi Sahu

भोरमदेव अभयारण्य में मिली दुर्लभ तितली की सबसे बड़ी प्रजाति, स्थल निरीक्षण के दौरान पड़ी अधिकारियों की नजर

कवर्धा. भोरमदेव अभयारण्य में तितलियों की विभिन्न दुर्लभ और विलुप्त प्रजातियों का बसेरा है। वहीं वन विभाग द्वारा दावा किया जा रहा है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी आकार की तितली भी भोरमदेव अभयारण्य में मौजूद है। जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा भोरमदेव अभयारण्य में किए गए सर्वे रिपोर्ट में स्पॉटेड एंगल तितली का जिक्र रिकॉर्ड में नहीं है। छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के बाद भोरमदेव अभयारण्य में देखी गई तितलियों की यह दुर्लभ प्रजातियां बस्तर में रिकॉर्डेड एंगल पेरोट और ओरिएंटल चेस्टनट एंगल तितलियों को बस्तर के अलावा भोरमदेव अभयारण्य में देखा गया है।
वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार भारत की दूसरे नंबर की आकार में सबसे बड़ी तितली ब्लू मॉर्मोन नामक तितली भी भोरमदेव अभयारण्य में पाया गया है। अभयारण्य में शुरू होने वाले कार्यों के स्थल निरीक्षण में भ्रमण के दौरान वन अधिकारियों की टीम ने तितली की दुर्लभ प्रजाति स्पॉटेड एंगल की खोज की है।
अभयारण्य में 90 से अधिक प्रजाति के तितलियों की मौजूदगी
मैकल पर्वत श्रंृखला के मध्य 352 वर्ग किलोमीटर में फैले भोरमदेव अभयारण्य में अनेक वन्यजीवों, पक्षियों, सरीसृपों और दुर्लभ वनस्पतियों का प्राकृतिक आवास है। इस अभयारण्य में लगभग 90 से अधिक प्रजाति की तितलियों को देखा जा सकता है। वन मंडल अधिकारी दिलराज प्रभाकर ने बताय कि अभयारण्य में अपने प्राकृतिक रहवास में पाई जाने वाली इन तितलियों को संरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि लगातार घटते जंगलों व परभक्षियों से इन्हें बचाया जा सके।
परागण में तितलियों की मुख्य भूमिका
परागण पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण अंग है जो तितलियों के सहयोग से किया जाता है। लगभग 90 प्रतिशत फूलों के पौधे और 35 प्रतिशत फसलें, पशु परागण पर निर्भर करती हैं। इनके द्वारा मधुमक्खियों, मक्खियों और भृंग जैसे परागणकों को भी संवर्धन एवं विकास का अवसर मिलता है। तितलियां विलुप्त हो गईं तो चॉकलेट, सेब, कॉफी और अन्य खाद्य पदार्थों का आनंद नहीं ले सकेंगे। वहीं हमारे दैनिक अस्तित्व में जिसका महत्वपूर्ण असर पड़ेगा क्योंकि दुनियाभर में लगभग 75 प्रतिशत खाद्य फसलें इन परागणकर्ताओं पर निर्भर करती है।

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