कवर्धा

CG News: वनांचल में लोगों का कब्जा, विलुप्त हो रही बेशकीमती और दुर्लभ जड़ी-बूटियां

CG News: कम होते जंगल: दो दशक पहले बोड़ला, चिल्फी और पंडरिया के घने जंगलों में थी वनौषधि, वनांचल में लोगों का कब्जा, उत्खनन होने के साथ ही खत्म होते गए वन औषधि। जिले के वनांचल इलाकों में मिलने वाली वनौषधियां अब विलुप्त होते जा रहे हैं।

कवर्धाDec 05, 2022 / 03:48 pm

CG Desk

file photo

CG News: कवर्धा जिले में कंद, बेल, वृक्ष, पौधे, पत्ते और जड़ के रूप में सैकड़ों वनौषधि थी, जो अब घटकर गिनती के रह चुके हैं। जितने बचे हुए हैं वह भी अब मुश्किल से ही मिल पाते हैं। जंगलों में लोगों की आबादी बढ़ने के वन और वनौषधि घटती जा रही है। यहां के अमूल्य और दुर्लभ वन औषधि का उपयोग बैगा व आदिवासी बीमारियों से दूर रहने के लिए करते थे। वन विभाग के वरिष्ठ कर्मचारियों के अनुसार जिले के वनांचल क्षेत्र रानीदहरा, बंजारी, दलदली, भोरमदेव के जंगल, तरेगांव जंगल, रेंगाखार, खारा, कुकदूर के जंगल में सभी प्रकार के वनौषधि पाए जाते थे, लेकिन अब नहीं।

अब अंदर जंगल में यह वनौषधि बड़ी ही मुश्किल से गिनते के मिल पाते हैं। इन जंगलों में कल्ली झारी, चिरायता, कालमेघ, आंवला, हर्रा, बहेड़ा, चार, जामुन, अश्वगंधा, सबल झाड़, पड़हिन, रतनगीलाल, लाली ओदार, केवांच, बेल, सफेद मूसली, काला मूसली बड़ी संख्या में पाए जाते थे, लेकिन अब इनकी संख्या न के बराबर हो चुकी है।

नहीं हो पा रही सुरक्षा
गलत दोहन के कारण विलुप्ति: 80 वर्ष पार कर चुके सुकलाल बैगा ने बताया कि बहुमूल्य औषधियों का उपयोग जंगलों तक सीमित न रहकर शहरों की ओर चला गया, जिसके कारण इनकी कीमत बढ़ गई और गलत दोहन के कारण ये आज लगभग विलुप्ति ही हो चुके हैं। वनौषधि से अनेक प्रकार के रोगाें को दूर किया जाता था, लेकिन इनकी सुरक्षा नहीं होने के कारण यह खत्म हो रहे हैं। इन औषधियों की सुरक्षा के लिए समिति भी है, लेकिन सुरक्षा नहीं हो पा रही है।

कई बीमारियों के लिए रामबाण इलाज
जानकारों के अनुसार बुखार और मलेरिया के लिए रामबाण दवाई कही जाने वाली औषधि चिरायता की संख्या नाममात्र की रह गई है। डायबिटीज के लिए सबसे असरदार दवा के रूप में जामुन माना जाता है कि लेकिन जिले में यह न के बराबर हो चुकी है। इसी तरह कई पेड़, पौधे, पत्ते, बेल, कंद, जड़, फूल और फल है, जो मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, पथरी, अल्सर, अतिसार अनेक प्रकार की बीमारियों से छुटकारा मिलता था, अब इनकी कमी होने की वजह से केमिकलयुक्त दवाइयों का उपयोग किया जाने लगा है।

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