यहां गिरा था मां सती का हाथ
सैंकड़ों साल से शीतलाधाम कड़ापीठ शक्ति उपासकों का केन्द्र रहा है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव की भार्या सती ने जब अपने पिता दक्ष के अपमान को सहन न कर पाने की स्थिति में यज्ञ कुण्ड में कूदकर प्राण त्याग दिया तो उनके वियोग से आक्रोशित भगवान शिव सती का शव लेकर सभी लोकों में भ्रमण करने लगे। उनके क्रोधित रूप को देखकर तीनों लोकों में हलचल मच गई। देव मनुष्य सभी प्राणी भयभीत हो गए। तब शिव के क्रोध से बचने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। सती के शव के ये टुकड़े जहां भी गिरे वहीं एक शक्तिपीठ स्थापित कर दिया गया। कराकोटम जंगल में जिस स्थान पर सती का हाथ गिरा उस स्थान का नाम करा रख दिया गया जो बाद में अपभ्रंश होकर कड़ा हो गया। अब इसे कड़ा धाम के नाम से पूरे देश में जाना जाता है। माना जाता है कि द्वापर युग में पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर अपने वनवास समय में कड़ा धाम देवी दर्शन के लिए आए। यहां उन्होंने गंगा के किनारे शीतलादेवी का मंदिर बनवाया और महाकालेश्वर शिवलिंग की स्थापना की। वर्तमान में मां शीतला देवी का मंदिर भव्य स्वरूप ले चुका है। मंदिर में स्थित शीतला देवी की मूर्ति में माता गर्दभ पर बैठी हुई है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र माह में कृष्णपक्ष के अष्टमी पर यदि देवी शीतला की पूजा की जाए तो बुरी शक्तियों से पीछा छुटाया जा सकता है। यह मंदिर 1000 ई. में बनाया गया था।
सैंकड़ों साल से शीतलाधाम कड़ापीठ शक्ति उपासकों का केन्द्र रहा है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव की भार्या सती ने जब अपने पिता दक्ष के अपमान को सहन न कर पाने की स्थिति में यज्ञ कुण्ड में कूदकर प्राण त्याग दिया तो उनके वियोग से आक्रोशित भगवान शिव सती का शव लेकर सभी लोकों में भ्रमण करने लगे। उनके क्रोधित रूप को देखकर तीनों लोकों में हलचल मच गई। देव मनुष्य सभी प्राणी भयभीत हो गए। तब शिव के क्रोध से बचने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। सती के शव के ये टुकड़े जहां भी गिरे वहीं एक शक्तिपीठ स्थापित कर दिया गया। कराकोटम जंगल में जिस स्थान पर सती का हाथ गिरा उस स्थान का नाम करा रख दिया गया जो बाद में अपभ्रंश होकर कड़ा हो गया। अब इसे कड़ा धाम के नाम से पूरे देश में जाना जाता है। माना जाता है कि द्वापर युग में पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर अपने वनवास समय में कड़ा धाम देवी दर्शन के लिए आए। यहां उन्होंने गंगा के किनारे शीतलादेवी का मंदिर बनवाया और महाकालेश्वर शिवलिंग की स्थापना की। वर्तमान में मां शीतला देवी का मंदिर भव्य स्वरूप ले चुका है। मंदिर में स्थित शीतला देवी की मूर्ति में माता गर्दभ पर बैठी हुई है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र माह में कृष्णपक्ष के अष्टमी पर यदि देवी शीतला की पूजा की जाए तो बुरी शक्तियों से पीछा छुटाया जा सकता है। यह मंदिर 1000 ई. में बनाया गया था।
कड़ा प्रसिद्ध संत मलुखदास (1631 – 1739 ए.डि.) का जन्म स्थान भी है। संत का आश्रम और समाधि भी है। वह देवी कड़ा का अनुयायी भी थे, प्रसिद्ध गुरु गुरु तेग बहादुर सेंट मलुखदास के साथ विभिन्न विषयों पर व्याख्यान के लिए कारा आये थे।
कैसे पहुंचे
कड़ा धाम शीतला माता का मंदिर रेल मार्ग से जुड़ा है। सिराथू यहां का मुख्य रेलवे स्टेशन है, जहां से मंदिर की दूरी 10 किलोमीटर है। इसके अलावा यूपी के कई शहरों से बस से सीधे यहां पहुंच सकते हैं। बस से सैनी पहुंचना होता है, जहां से मंदिर की दूरी 8 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन और सैनी से टैक्सी या ऑटो लेकर वहां पहुंचा जा सकता है। प्रयागराज यहां का नजदीकी हवाई अड्डा है जो देश के कई शहरों से कनेक्ट है । प्रयागराज से यहां की दूरी करीब 70 किलोमीटर है।
कड़ा धाम शीतला माता का मंदिर रेल मार्ग से जुड़ा है। सिराथू यहां का मुख्य रेलवे स्टेशन है, जहां से मंदिर की दूरी 10 किलोमीटर है। इसके अलावा यूपी के कई शहरों से बस से सीधे यहां पहुंच सकते हैं। बस से सैनी पहुंचना होता है, जहां से मंदिर की दूरी 8 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन और सैनी से टैक्सी या ऑटो लेकर वहां पहुंचा जा सकता है। प्रयागराज यहां का नजदीकी हवाई अड्डा है जो देश के कई शहरों से कनेक्ट है । प्रयागराज से यहां की दूरी करीब 70 किलोमीटर है।
कहां रूकें मंदिर के आसपास रहने के लिये कई लॉज हैं, इसके अलावा सैनी और सिराथू रेलवे स्टेशन के पास कई होटल हैं, जहां आप रूक सकते हैं ।