बालमीक पांडेय @ कटनी. देश में कृषि के माध्यम से आद्यौगिक क्रांति लाने व जीडीपी बढ़ाने को लेकर मीडिया साइकोलॉजी और लिट्रेचर में मास्टर डिग्री के बाद ब्रिटिश काउंसिल में काम, इंडिया और यूके के संबंध पर रिसर्च और डिप्लोमैटिक रिलेशन पर काम, हिमांचल में दराई लांबा के साथ सामाजिक क्षेत्र में काम, इस काम से हर माह लाखों रुपये की कमाई, लेकिन मन में कौंध रही अन्नदाता की समस्या ने नौकरी छोडऩे को विवश कर दिया और अब कृषि क्षेत्र में देवांशी की देशवासियों को गंभीर बीमारी ‘शुगर’ से मुक्ति दिलाने पहल रंग ला रही है। 40 एकड़ क्षेत्र में स्टीविया, फूल, लेमन ग्रास, स्ट्रावेरी सहित औषधि पौधों की खेती शुरू की है। देवांशी ने कॉन्टेक्ट फॉर्मिंग के माध्यम से स्टीविया (मीठी तुलसी) का पौधारोपण व खेत तैयार कराया है। खास बात यह है कि देश का यह पहला ऐसा प्लांट तैयार हुआ है जो लोगों को शक्कर के स्थान पर स्टीविया से शुगर मुक्त कर रही है। देवांशी मीठी तुलसी का मदर प्लान्ट तैयार कर जिला, प्रदेश व अन्य प्रदेश के किसानों को पौधे बेचकर लाखों रुपये कमा रही हैं। बता दें कि देवांशी ने चार एकड़ में स्टीविया की खेती किए हुए हैं। आने वाले समय में खेती को एक इंडस्ट्री का रूप देने पहल कर रही हैं। स्टीविया के प्लाटिंग मैटेरियल आसाम भेजा जा रहा है। पांच एकड़ में पौधे तैयार किए हैं। इनके पत्ती की सप्लाई दिल्ली, मुंबई, कर्नाटका, बैंगलोर, वेस्ट बंगाल में हो रही है। 50 रुपये से 100 रुपये तक प्रति किलोग्राम के भाव से पत्ती बिक रही है। देवांशी ने बताया कि स्टीविया में प्रति एकड़ में एक लाख की आमदनी हो रही है। स्टीविया पांच साल की फसल है। इसमें प्रति एकड़ 60 हजार रुपये खर्च आया है। दूसरे साल से बगैर लागत के चार साल तक बेहतर मुनाफा मिलेगा।
कैमोइल फ्लावर की खेती
खेत में देवांशी ने कैमोइल फ्लावर तैयार किया है। यह खास प्रजाति का फ्लावर है जिसका उपयोग दवा के साथ-साथ कास्मेटिक उत्पादों में होता है। चाय में इसका उपयोग किया जाता है। खास बात यह है कि यह 30 हजार रुपये प्रति लीटर इसका ऑयल बिकता है। तीन टन से एक लीटर उत्पादन हो रहा है। डेढ़ एकड़ में इसको तैयार किया है। इसका एरिया बढ़ाने की पहल भी कृषक द्वारा की जा रही है।
खेत में लहलहा रही स्ट्रावेरी
देवांशी ने खेत में स्ट्रावेरी की फसल भी लगाई है जो अब लहलहाने के साथ उत्पादन भी शुरू हो गया है। स्ट्रावेरी आधे एकड़ में लगाया है। इसमें 3 रुपये प्रति पौधे के किसाब से लागत आई है। हिमांचल की तर्ज पर किए गया यहां प्रयोग में 40 हजार रुपये खर्च आया है। एक प्लांट में 500 ग्राम से एक किलोग्राम तक स्ट्रावेरी का उत्पादन शुरू हो गया है। बता दें कि बाजार में स्ट्रावेरी की कीमत 150 रुपये प्रतिकिलो है। कटनी, जबलपुर व नागपुर इसकी सप्लाई शुरू हो गई है। हालांकि इस खेती को प्रयोग के तौर पर शुरू किया है, बेहतर उत्पादन पर एरिया बढ़ाया जाएगा। इसके साथ ही देवांशी ने पपीता, खरबूजा की खेती शुरू की है, नर्सरी तैयार हो गई है। 5 एकड़ में इसे लगाने की योजना बनाई है।
खस की भी शुरू की खेती
देवांशी ने खेती में एक नया प्रयोग भी शुरू किया है। गर्मी में लोगों को शीतलता व खास खुशबू बिखेने के लिए कूलर में उपयोग की जाने वाली देशी खस का खेती भी शुरू की है। इससे वे परफ्यूम तैयार करेंगी और मार्केट में सीधे खस को बेचेंगी। खस की नर्सरी तैयार हो गइ है। धान वाले खेतों में इसकी रोपाई होगी। फरवरी और मार्च में इसका उत्पादन शुरू हो जाएगा, जो 70 से लेकर 100 रुपये प्रतिकिलोग्राम तक बिका। देवांशी ने बताया कि प्रति एकड़ एक से दो टन उत्पादन होगा। इसको दो एकड़ में तैयार किया है। जिसमें सफलता मिलेगी तो आगे बढ़ाने की योजना है। अभी 15 एकड़ में खस तैयार करने की भी योजना है।
लेमन ग्रास से शुरू हुआ मुनाफा
किसान देवांशी ने 10 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती है। खास बात यह है कि खेत में जो एरिया अनुपजाऊ पड़ा था उसका बेहतर तरीके से उपयोग शुरू किया है। मेड़ की जमीन पर लेमन ग्रास की खेती की है। इसका उत्पादन शुरू हो गया है। क्रॉप कटिंग के बाद इसको बेचा जा रहा है। ऑयल बनाने के लिए यूनिट भी शुरू कर रही हैं। दो माह पहले लेमन ग्रास दो एकड़ ही था जिसे बढ़ा दिया है। खास बात यह है कि बहुत कम लागत में इसकी खेती से पांच साल तक लाखों रुपये का मुनाफा मिलना शुरू हो गया है।
लागत निकालने अंतरवर्ती खेती
किसान ने खेत में एक से बढ़कर प्रयोग शुरू किए हैं, जिसमें सफलता भी मिल रही है। लागत निकालने के लिए स्टीविया के साथ मैरीगोल्ड की खेती भी 3 एकड़ में की है। एक एकड़ में 30 हजार रुपये की लागत लगाई है। मार्केट में फूल बिकने लगा है। इसकी सप्लाई कासमेटिक आइटम के लिए भी शुरू किया है। मैरीगोल्ड से किसान को 30 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम भाव मिलने लगा है।
इस सोच ने बना दिया किसान
देवांशी ने पत्रिका से चर्चा के दौरान कहा कि उन्होंने खेती के बारे में पहले तो अध्ययन किया, कई प्रदेशों में खेती को जाना, लेकिन देखा कि अधिकांश जगह सिर्फ रुपये कमाने के लिए लोगों की सेहत से खिलवाड़ किया जा रहा है। रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक सहित अन्य पेस्टिसाइट जो मानव जीवन के लिए घातक है उसका उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने ठाना कि मध्यप्रदेश में खेती को एक नया आयाम देंगी और 50 एकड़ में पहल शुरू की। खास बात यह है कि कम लागत में बेहतर खेती कर किसानों को और सशक्त बनाना है। परंपरागत खेती को आधुनिक तकनीक से करके न सिर्फ मुनाफा कमाने के ध्येय से आगे बढ़ रही हैं बल्कि खेती में देश कि दिशा-दशा बदलने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रही हैं।
जैविक खेती को ही बढ़ावा
किसान ने बताया कि वे सिर्फ और सिर्फ जैविक खेती को ही बढ़ावा दे रही हैं। प्रदेश और देशवासियों को नेचुरल मेडिसिल प्रोडक्ट व क्रॉप देने सहित किसानों को प्रेरित करने का काम रही हैं। आने वाले समस्य में कृषि को औद्योगिक रूप देने के लिए यह पहल शुरू की है। देवांशी खेत में सिर्फ और सिर्फ जैविक खाद का ही उपयोग कर रही हैं। वर्मी कम्पोस्ट, नीम स्प्रे, गौमूत्र, गोबर से गुड़ से अमृत स्प्रे सहित अन्य जैविक खाद व कीटनाशक बनाकर फसल को सुरक्षित रख रही हैं।
किसानों के लिए बनीं मिसाल
देवांशी जिले के किसानों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं। खास बात यह है कि दो साल से देवांशी खुद खेती में बेहतर आयाम स्थापित करने के साथ क्षेत्र व जिले के किसानों को बेहतर खेती के लिए प्रेरित कर रही हैं। क्षेत्र के कई किसान अब परंपरागत खेती को बॉय-बॉय करते हुए आधुनिक, उद्यानिकी व जैविक खेती की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। देवांशी किसानों के लिए आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में जाती हैं और उन्नत खेती करने के टिप्स भी दे रही हैं। खेत में पहुंचने वाले किसानों को भी बड़ी बारीकी से बेहतर खेती करने की सलाह दे रही हैं।
100 एकड़ का है लक्ष्य
देवांशी ने बताया कि मीठी तुलसी का प्लांट 100 एकड़ में करने का लक्ष्य रखा है, इसके साथ किसानों को हजारों एकड़ में कराना है। चार एकड़ में प्लांटेशन पूरी तरह तैयार है, दो-दो एकड़ क्षेत्र बढ़ाया जा रहा है। बता दें कि मीठी तुलसी एकदम नेचुरल तरीके से तैयार की जा रही है। शुगरफ्री पत्तियों से चीनी की तरह तैयार किया जा रहा है। इसमें जीरों कार्बोहाइडे्रट रहता है। यह पूरी तरह ये डायबिटिक फ्रेंडली है, शुगर मरीजों के लिए अमृत का काम करेगी।
किसानों की आय बढ़ाने विशेष प्रयास
देवांशी खुद स्टीविया का बड़ा प्लांट तैयार तो कर ही रहीं हैं साथ ही क्षेत्र और जिले के किसानों की आय को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही हैं। किसानों को प्रेरित कर स्टीविया की खेती करने प्रेरित कर रही हैं। अभी तक 50 किसान जुड़ चुके हैं। उद्यानिकी विभाग के माध्यम से भी किसानों को जोडऩे का काम कर रही हैं। देवांशी ने कहा कि पढ़ाई करने के बाद और हालातों को जानने के बाद यह आभाष हुआ कि खेती बहुत जरूरी है। किसानों की आय बहुत कम है, परंपरागत खेती में कम आमदनी हो रही है। उद्यानिकी से किसान और देश की तकदीर को बदला जा सकता है।
खास-खास:
– दो से तीन माह में फसल हो जाती है तैयार, फसल काटकर तैयार किया जा रहा स्टीविया।
– प्राकृतिक मिठाई के साथ वजन घटाने, एंटी बैक्टीरिया और एंटी इंफ्लेमेटरी सहित रक्तचाप को करती है कम।
– 10 साल के लिए गांव में किसानों से देवांशी ने ली है सिकमी में जमीन, खेत में ही तैयार कर रही स्टीविया की फैक्ट्री व ऑयल बनाने का प्लांस।
– डायजीशिन सिस्टम ठीक करने, हेल्थ सुधारने और किसानों की आय तीन गुना बढ़ाने का है ध्येय।