स्कूल क्लास में छाता लगाकर पढ़ते हैं बच्चे, रस्सियों से बंधे हैं खिड़की-दरवाजे, सिस्टम की पोल खोल रही ये तस्वीरें
Katni News : शिक्षा विभाग के बड़े-बड़े दावों के बीच सिस्टम की पोल खोलती तस्वीरें सामने आई हैं। क्लास रूम में जगह-जगह छत से पानी टपकता है। टीचर्स हों या स्टूडेंट सभी को छाता लगाकर क्लास में आना पड़ता है। स्कूल प्रबंधन का दावा- 11 बार कर चुके लिखित शिकायत, पर सुन्ने को तौयार नहीं जुम्मेदार।
Katni News : स्कूल की टपक रही छत, छाता लगाकर पढ़ाई करते बच्चे, खतरे के साये में शिक्षा प्राप्त करते नौनिहाल…। सरकारी सिस्टम और शिक्षा विभाग की पोल खोलती ये तस्वीर मध्य प्रदेश के कटनी शहर से चंद किलोमीटर की दूरी पर स्थित सूफी संतनगर शासकीय प्राथमिक स्कूल गायत्री तपोभूमि कैलवारा खुर्द की है। जिले में एक ऐसा स्कूल है, जहां छाता क्लास संचालित हो रही है। शासकीय प्राथमिक शाला तपोभूमि स्कूल जहां कक्षा एक से पांचवीं तक के बच्चे पढ़ाई करते हैं, लेकिन कई सालों से स्कूल भवन जर्जर हालत में है।
लगातार बारिश से स्कूल भवन जर्जर होने के साथ ही छत से पानी कि धारा बहती रहती है। छोटे-छोटे मासूम बच्चे और शिक्षक छाता लगाकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। स्कूल शिक्षकों कि माने तो शिक्षा विभाग को अनेकों बार पत्राचार करके समस्या से अवगत कराया है, लेकिन अबतक किसी भी जिम्मेदार ने जर्जर हालत के इस स्कूल की सुध नहीं ली। बड़े हादसे की आशंका के बीच बच्चे अध्यन करने को मजबूर हैं। रोजाना स्कूल में 15 से 20 बच्चे पढ़ाई करने पहुंच रहे हैं जो लगातार बारिश से स्कूल में जल भराव के बीच बैठने और छाता लगाकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
अभिभावकों में आक्रोश, कई बच्चे पढ़ने नहीं आ रहे
जर्जर बिल्डिंग में स्कूल संचालन को लेकर परिजन में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। दूसरी कक्षा की छात्रा की मां श्यामकली बाई का कहना है कि बच्चे स्कूल में पढ़ाई के लिए छाता लेकर जाते हैं। यहां पर कभी भी हादसा हो सकता है। इसलिए अब बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे। यहां पर नई बिल्डिंग बनना चाहिए। बच्चों ने कहा कि छत से पानी टपक रहा है, इसलिए छाता लगाकर पढ़ाई करना पड़ती है। कई बार तो ये समझ नहीं आता कि हाथ में कलम पकड़ें या छाता। वहीं, कई छोट छोटे बच्चे तो पढ़ने के लिए ब्लेक बोर्ड देखने के बजाए पूरे टाइम टपकती छत देखकर ही घर चले जाते हैं।
प्रधानाध्यापिका द्वारा स्कूल की जर्जर हालत की स्थिति से 1 साल से विभागीय अफसरों को अवगत कराया जा रहा है। इनमें बीआरसी, डीपीसी, जिला शिक्षा अधिकारी को समस्या से अवगत करा चुके हैं। लेकिन अधिकारी हैं कि ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। बीआरसी को की शिकायत के अनुसार, स्कूल की दीवारें नीव छोड़ चुकी हैं। दीवारों में बड़ी बड़ी दरारें पड़ी हुई हैं, खिड़की और दरवाजों को रस्सी से बांधना पड़ा है। कुल मिलाकर पूरा स्कूल भवन जर्जर हो चुका है। यहां रसोई घर भी नहीं। यहां बच्चों और शिक्षकों दोनों की ही जान खतरे में है। इस पूर मामले से कई बार विभाग के अफसरों को अवगत कराया जा चुका है, बवाजूद इसके अधिकारी इसपर ध्यान नहीं दे रहे। प्रधानाध्यापिका शहनाज बेगम का कहना है कि उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी पी.पी सिंह को भी समस्या बताई, पर उन्होंने भी इस गंभीर मामले की अनदेखी ही की है।
भवन इतना जर्जर हो चुका है कि यहां आए दिन बच्चों और शिक्षकों पर छत का प्लास्टर गिरता है। हादसों में कई बार बच्चे और शिक्षक चोटिल हो चुके हैं।
भवन परिसर में झाड़-झांकड़ियां ऊगी हुई हैं, जिनमें आए दिन जहरीले जीव-जंतु दिखाई देते रहते हैं। काटने का डर बना रहता है।
इमारक इतनी जर्जर है कि कई अभिभावक बच्चों को पढ़ने नहीं भज रहे तो कुछ शिक्षक भी पढ़ाने नहीं आ रहे। जो शिक्षक और बच्चे स्कूल आ रहे हैं उन्हें क्लास में छाता लगाकर बैठना पड़ता है।
विभाग के साथ साथ स्कूल प्रबंधन की ओर से ग्राम पंचायत के सरपंच को भी समस्या बताई और बुलाकर दिखाई जा चुकी है, लेकिन वो भी आश्वासन देकर ही रह गए हैं। समाधान की गारंटी नहीं देते।
भवन कई जगहों से जमीन में धंस रहा है, जिसके चलते बाहरी दीवारें टेढ़ी हो गई हैं। ऐसे में यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
स्कूल प्रबंधन का दावा है कि वो बीते एक साल दौरान ही विभा के अफसरों से 11 बार पत्राचार कर चुके हैं, बावजूद इसके अबतक कोई जिम्मेदार भवन के हालात देखने तक नहीं आया।
बच्चों की पुकार- हमें बचाओ सरकार
इस तरह के जर्जर स्कूल में नौनिहाल अपना भविष्य गढ़ रहे रहे हैं। सूबे के रीवा में स्कूल के पास जर्जर दीवार गिरने से 4 मासूम बच्चों की मौत ने यहां पढ़ने वाले अभिभावकों में चिंता बढ़ा दी है। आलम ये है कि ये सिर्फ एक स्कूल की चिंता का विषय नहीं है, बल्कि सैकड़ा से अधिक स्कूल भवन इसी दुर्दशा से जूझ रहे हैं। बच्चों की यही पुकार है कि खतरे से तो बचाव सरकार। हैरानी की बात तो यह है कि संभागायुक्त, कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार, सीइओ, डीइओ, डीपीसी, बीआरसी आदि जिलों का दौरा कर रहे हैं, लेकिन कोई भी बच्चों की सुरक्षा से जुड़े इस गंभीर मामले में ध्यान देने को राजी नहीं है।
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