आपको बता दें कि, जिले के अंतर्गत आने वाले बहोरीबंद में स्थित शासकीय प्राथमिक शाला सोमाकला में आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल तो है, लेकिन जर्जर हालत होने के कारण करीब तीन साल पहले उसे तोड़ दिया गया है। हैरानी की बात तो ये है कि इन तीन सालों में स्कूल के पुनर्निर्माण के लिए एक ईंट तक नहीं लगाई गई है और यहां पढ़ने आ रहे स्कूल के छोटे-छोटे आदिवासी बच्चे पिछले तीन सालों से कड़ाके की ठंड हो या भीषण गर्मी या फिर आंधी बारिश इसी सरकारी स्कूल के मलबे के ढेर पर खुले आसामान के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं।
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‘जिम्मेदार नहीं ले रहे मासूमों की सुध’
शासकीय प्राथमिक शाला सोमाकाला के अध्यापक महेश प्रसाद यादव का कहना है कि इस संबंध में बीते तीन सालों के भीतर कई बार लिखित सूचना तक दी जा चुकी है। बावजूद इसके स्थानीय पंचायत से लेकर जिला प्रशासन तक अब तक इस स्कूल या मासूम बच्चों की सुध लेने को तैयार नहीं है। शिक्षक महेश प्रसाद यादव ने बताया कि हम अपने स्तर पर बच्चों को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन, जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते अन्य मूलभूत सुविधाएं तो छोड़िए, यहां बच्चों को छत तक नसीब नहीं हो रही है।