मुकेश तिवारी @कटनी। शहर के लगभग 250 वर्ष पुराने मां जालपा के मंदिर से हजारों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। जहां प्रदेश भर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं और मातारानी उनकी झोली भरती हैं। माई का प्रकटन बांस के जंगल से हुआ था। यहां मां जालपा की प्रतिमा के साथ ही 50 वर्ष पूर्व समिति ने यहां पर जयपुर से मां जालपा, कालका, शारदा की प्रतिमाएं स्थापित की थीं और उसके अलावा चौसठ योगनियों की स्थापना की गई है। नवरात्र के अलावा साल भर यहां भक्तों की भीड़ लगती है।
मां ने रीवा से बुलाया कटनी
लगभग 250 वर्ष पूर्व रीवा जिले के छोटे से गांव से बिहारीलाल पंडा अचानक घर से कटनी आए थे। उस दौरान जालपा वार्ड में बांस का जंगल हुआ करता था। बताया जाता है कि मां ने उन्हें बुलाया था। जिसके बाद उन्होंने जंगल में वर्तमान मंदिर के स्थान पर सफाई प्रारंभ की तो एक सिल के रूप में मां जालपा की प्रतिमा मिली। जिसकी प्राण प्रतिष्ठा कराई गई और शुरुआत में छोटी सी मढिय़ा में मातारानी विराजित की गईं।
50 वर्ष पूर्व हुआ जीर्णोद्धार
धीरे-धीरे मंदिर को लेकर लोगों की आस्था बढ़ी और 50 वर्ष पूर्व मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। जयपुर से मातारानी के मां जालपा, मां कालका और मां शारदा स्वरूप की प्रतिमाएं स्थापित कराते हुए कृष्णानंद स्वामी महाराज के सान्निध्य में शतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया गया। 2012 में मंदिर में चौसठ योगिनी की स्थापना पट्टाभिरामाचार्य महाराज के सान्निध्य में हुई ।
पांचवी पीढ़ी कर रही सेवा
पंडा बिहारीलाल की पांचवी पीढ़ी के रूप में वर्तमान में लालजी पंडा मातारानी की सेवा कर रहे हैं। जिसमें सालभर मंदिर में विविध आयोजनों के साथ रोजाना सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और मातारानी उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। मान्यता पूरी होने पर शारदेय व चैत्र नवरात्र पर श्रद्धालु मन्नत के कलश व अखंड ज्योतियों की स्थापना करते हैं। जिनकी संख्या 500 के लगभग होती है। इसके अलावा नौ दिन महाआरती के साथ मां के अलग-अलग श्रंगार किए जाते हैं।