कासगंज

छैमार गैंग के थे कासगंज डकैती के मारे गये बदमाश, बेहद खतरनाक है ये गैंग, जानिए कैसे बनाता है घरों को अपना निशाना…

छैमार गैंग का आपराधिक इतिहास पता करना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि ये घूमन्तू होते हैं। जहां जाते हैं, वहां एक नई पहचान बना लेते हैं।

कासगंजMay 19, 2018 / 01:34 pm

suchita mishra

gang

अलीगढ़। देर रात थाना दोदों क्षेत्र के सीकरी गांव के जंगलों में मुठभेड़ में मारे गए तीनों बदमाश के बारे में पुलिस ने बड़ा खुलासा किया है। ये तीनों बदमाश कासगंज में डकैती और हत्या में शामिल रहे थे। इनका पूरा गैंग है, जो दिन में घरों की रेकी करता है और रात में घटना को अंजाम देता है। इस गैंग को छैमार गैंग के नाम से जाना जाता है। मरने वालों में दो बदमाश 25-25 हजार के इनामी हैं। इनके नाम आदित्य उर्फ अब्दुल रहमान शामली जिले के कैराना इलाके का है। जबकि अहसान उर्फ जीशान संभल जिले के थाना सिरसी इलाके का है। तीसरा बदमाश इनका सहयोगी वसीम उर्फ सोहेल शामली जिले के थाना कैराना का रहने वाला है।
वसीम का पुराना पता राजस्थान के हनुमानगढ़ इलाके के छप्पीवाड़ा स्थान से भी है। संभल के ही मोहल्ला चिनियावली मड़इया निवासी भीका उर्फ अब्दुल करीम पुत्र रसीद, शेख मियां पुत्र बाकिर व भीका का दोस्त भाग जाने में सफल रहे हैं। इनकी तलाश में पुलिस टीम जंगलों में कॉम्बिंग कर रही है। कासगंज में अमांपुर व सहावर थाना क्षेत्र में डकैती व चार लोगों की हत्या की घटना के बाद इनकी सरगर्मी से तलाश की जा रही थी।
बेहद खतरनाक है छैमार गैंग
मारे गया एक बदमाश राजस्थान के बताये जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि इनका अपना कोई पता ठिकाना नहीं है। आसानी से इनकी क्रिमनल हिस्ट्री नहीं पता की जा सकती है। इनका कोई परमानेंट नाम नहीं है। ये जहां रुकते है प्रधान से सांठ गांठ करके आधार कार्ड बनवा लेते हैं। फर्जी आधार कार्ड के आधार पर कुछ समय के लिए अपनी पहचान बना लेते थे। बताया जा रहा है कि कंजड़, बंजारा, हाबूड़ा, बावरिया जैसी क्रिमिनल ट्राइब की संख्या कम हो गई है। अब इन लोगों ने मिल कर आपराधिक गिरोह बना लिया है। जिसे छैमार गैंग के नाम से जाना जाता है। अब ये जनजातियां बहुत कम बची है। सामान्य जीवन से ये जनजातियां नहीं जुड़ी है। इनका अपना पता ठिकाना नहीं होता। ये घुमन्तू होते है।
मारने के लिए डंडे का इस्तेमाल
इस गैंग में शामिल लोग दिन में जगह जगह पर खेल तमाशा दिखाते हैं और इसी बीच ये घरों की रेकी कर लेते हैं। ये अपने साथ हथियार लेकर नहीं चलते हैं। मारने के लिए डंडे की इस्तेमाल करते हैं। तमंचे या गोली से घटना को अंजाम देते वक्त नहीं मारते है, गोली मारने में साउंड आती है जिससे पड़ोसियों व आसपास लोगों को पता चल जाता है। केवल डंडों से ही पीट पीट कर मौत के मुंहाने तक पहुंचा देते हैं। ये छोटे बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग व्यक्ति को भी मारने से नहीं हिचकिचाते। ताकि एफआईआर होने के बाद कोई पैरवी नहीं कर सके।
सोते समय करते हैं टारगेट
छैमार गैंग में शामिल लोग रात के वक्त घरों को टारगेट करते हैं। जब व्यक्ति घर में सो जाता है, तो सोते समय घर में घुस कर हमला कर देते हैं। कासगंज के सहावर व अमांपुर में डकैती के दौरान इसी तरीके से हमला किया गया। महिलाओं और बच्चों को डंडों से पीट पीट कर अधमरा कर दिया गया। ये दुर्दांत बदमाश घर में अलमारी को तोड़कर केवल गोल्ड और कैश ही उठाते थे। बाकी सामानों को नहीं छूते हैं। इनके बारे में खास बात ये है कि मरते मरते मर जाएंगे लेकिन अपना असली नाम और पता नहीं बताते है। इनका वास्तविक जीवन के बारे में कुछ पता नहीं चल पाता है। पुलिस अपनी आधुनिक तकनीक के जरिए इनका पता ठिकाने तक पहुंचती है।
 

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