बिना कोचिंग स्वअध्ययन के बूते तीन प्रतिष्ठित पदों पर हुए चयनित
करौली। बीते एक वर्ष से करौली में पदस्थापित कलक्टर सिद्धार्थ सिहाग की सफलता की कहानी न केवल हैरत भरी है बल्कि युवा वर्ग के लिए प्रेरणादायी भी। सामान्य तौर पर एक परीक्षा में चयनित होना ही मुश्किल भरा होता है जबकि सिद्धार्थ सिहाग ऐसे बिरले अफसर हैं, जो अपने स्तर पर पढ़ाई करके न्यायिक और पुलिस सेवा में चयन के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा में आए हैं।
सिद्धार्थ सिहाग ने वर्ष 2012 में मात्र 25 साल की आयु में देश में 42वीं रैंक के साथ आईएएस बनने की सफलता हासिल की थी। इससे पहले की परीक्षा में सिहाग की 142 वीं रैंक आई थी और उन्हें आईपीएस कैडर मिला था। इस कैडर से सिहाग नाखुश हुए फिर भी अनमने मन से प्रशिक्षण लेने हैदराबाद चले गए। उनकी दिली तमन्ना आईएएस बनने की थी। इसके लिए उन्होंने फिर से तैयारी करके आईपीएस प्रशिक्षण के दौरान दुबारा आईएएस परीक्षा दी। इस बार उन्होंने 42 वीं रैंक पाकर अपनी आईएएस बनने की लालसा को पूरा किया। यानी देश की प्रतिष्ठापूर्ण आईएएस परीक्षा में वे लगातार दो बार अच्छी रैकिंग से चयनित हुए।
हरियाणा राज्य के हिसार जिले में अग्रोहा ब्लॉक के सिवान बोलन गांव में 20 जनवरी 1987 को जन्मे सिद्धार्थ शुरू से मेधावी छात्र रहे। विधि स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे दिल्ली न्यायिक सेवा में चयनित हुए और दिल्ली में मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट की उनको नियुक्ति मिल गई। लेकिन उनकी सोच लोगों के बीच काम करने की थी। इस कारण न्यायिक सेवा की ट्रेनिंग के साथ वे आईएएस की तैयारी में जुट गए थे।
करौली। बीते एक वर्ष से करौली में पदस्थापित कलक्टर सिद्धार्थ सिहाग की सफलता की कहानी न केवल हैरत भरी है बल्कि युवा वर्ग के लिए प्रेरणादायी भी। सामान्य तौर पर एक परीक्षा में चयनित होना ही मुश्किल भरा होता है जबकि सिद्धार्थ सिहाग ऐसे बिरले अफसर हैं, जो अपने स्तर पर पढ़ाई करके न्यायिक और पुलिस सेवा में चयन के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा में आए हैं।
सिद्धार्थ सिहाग ने वर्ष 2012 में मात्र 25 साल की आयु में देश में 42वीं रैंक के साथ आईएएस बनने की सफलता हासिल की थी। इससे पहले की परीक्षा में सिहाग की 142 वीं रैंक आई थी और उन्हें आईपीएस कैडर मिला था। इस कैडर से सिहाग नाखुश हुए फिर भी अनमने मन से प्रशिक्षण लेने हैदराबाद चले गए। उनकी दिली तमन्ना आईएएस बनने की थी। इसके लिए उन्होंने फिर से तैयारी करके आईपीएस प्रशिक्षण के दौरान दुबारा आईएएस परीक्षा दी। इस बार उन्होंने 42 वीं रैंक पाकर अपनी आईएएस बनने की लालसा को पूरा किया। यानी देश की प्रतिष्ठापूर्ण आईएएस परीक्षा में वे लगातार दो बार अच्छी रैकिंग से चयनित हुए।
हरियाणा राज्य के हिसार जिले में अग्रोहा ब्लॉक के सिवान बोलन गांव में 20 जनवरी 1987 को जन्मे सिद्धार्थ शुरू से मेधावी छात्र रहे। विधि स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे दिल्ली न्यायिक सेवा में चयनित हुए और दिल्ली में मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट की उनको नियुक्ति मिल गई। लेकिन उनकी सोच लोगों के बीच काम करने की थी। इस कारण न्यायिक सेवा की ट्रेनिंग के साथ वे आईएएस की तैयारी में जुट गए थे।
बिना कोचिंग के 10 घंटे पढ़ाई खास बात यह है कि तीन विशिष्ट सेवाओं में चयन के दौरान उन्होंने किसी तरह की कोई कोचिंग नहीं की। इंटरनेट की मदद से अपने बूते पर तैयारी की। उन्होंने चयनित अधिकारियों से मार्गदर्शन और शिक्षण सामग्री की मदद अवश्य ली। सिहाग के अनुसार उन्होंने प्रतिदिन 10 घंटे पढ़ाई की। एक के बाद एक उनकी सफलताएं युवाओं को प्रेरित करती हैं कि लक्ष्य तय हो और आत्मबल मजबूत हो तो कठिन साधना से मनचाही सफलता पाई जा सकती है।
पत्नी इनसे भी अव्वल सिद्धार्थ सिहाग की पत्नी रुक्मणी सिहाग इनसे भी अधिक प्रतिभाशाली हैं और वे भी युवाओं के लिए मिसाल हैं। वे 6वीं कक्षा में फेल हुई थी। इसके बाद पढ़ाई में ऐसी जुटी कि उन्होंने भी बिना किसी कोचिंग के वर्ष 2011 में आईएएस परीक्षा में देश में दूसरी रैंक हासिल की। बूंदी कलक्टर पद के बाद से वे लम्बे अवकाश पर हैं। उनके पिता दिलबाग सिंह सिहाग, हरियाणा में चीफ टाउन प्लानर अफसर के पद से रिटायर हुए हैं। जबकि भाई सिद्धांत दिल्ली में जज हैं।
र्निविवाद अधिकारी की छवि एक वर्ष से करौली में पदस्थापित सिहाग की छवि अभी तक र्निविवाद अधिकारी के रूप में है। वर्तमान राजनीतिक माहौल में अमूमन अधिकारी राजनीतिक खेमेबंदी में उलझ कर आरोप-प्रत्यारोप के घेरे में आ जाते हैं। जबकि सिहाग ऐसे अधिकारी हैं, जिनसे खेमों में बंटे सत्ताधारी दल के विधायक हों या भाजपा के सांसद या पदाधिकारी सभी उनसे संतुष्ट नजर आते हैं। कोरोना की दूसरी लहर में जिले में उनके चिकित्सकीय प्रबंधन की हर तरफ सराहना हुई है। कोरोना की तेज रफ्तार के बीच उन्होंने हर दिन करौली-हिण्डौन के चिकित्सालयों में कोविड वार्ड के दौरे करके न केवल चिकित्साकर्मियों का मनोबल बढ़ाया बल्कि मरीजों के लिए भी सम्बल प्रदान किया। चिकित्सकीय सुविधाओं व संसाधनों के प्रबंध करने में भी वे संवेदनशील रहे। समस्याओं के त्वरित निस्तारण और सकारात्मक सोच की कार्यशैली उनकी खासीयत है।
उल्लेखनीय है कि करौली से पहले वे झालाबाड़ में भी डेढ़ वर्ष कलक्टर रह चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि करौली से पहले वे झालाबाड़ में भी डेढ़ वर्ष कलक्टर रह चुके हैं।