कानपुर। पूरे देश में आज होलिका दहन होगा और शुक्रवार को रंग खेला जाएगा, लेकिन कानपुर की होली कुछ अलग ही है। क्रांति कथा के पन्ने जब-जब पलटे जाएंगे, तब-तब कानपुर की होली का जिक्र इतिहास में मिलेगा। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह गणेश शंकर वि़द्यार्थी से लेकर हटिया बाजार के क्रांतिकारियों होली की कहानी पढ़ने को मिल जाएगी। 1928 में आजाद बनारस से कानपुर आए और स्वतंत्रता सेनानी वीरभद्र तिवारी के कहने पर उन्हें यहां जगह दी गई। तब कानपुर दो हिस्सों में था। नहर के इस पार वीरभद्र तिवारी और उस पार सद्गुरु शरण अवस्थी की देखरेख में आजाद यहां आया करते थे। यहां उनका कई लोगों से संपर्क था। तीन माह का वक्त आजाद ने रामचंद्र मुसद्दी जेलयात्री की भाभी
श्रीदेवी मुसद्दी के मेस्टन रोड स्थित घर में गुजारा था। इसी दौरान होली पर्व धूम-धाम के साथ मनाया जा रहा था, तभी पुलिस की सायरन की आवाज आजाद को सुनाई दी तो उन्होंने अपना तमंचा बाहर निकाल लिया। भाभी श्रीदेवी मुसद्दी ने यह देख उनका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि मैं ही चंद्रशेखर आजाद हूं। फिर क्या था भाभी ने आजाद को रंग से रंग दिया। आजाद ने भी भाभी को गुलाल लगाया।
मेस्टन रोड में तीन माह तक रूके थे आजादकानपुर की होली में जंग-ए-आजादी की खुशबी झलकती है। हटिया बाजार से निकलने वाला भैंसा ठेला और उसके साथ चलने वाले रंगबाजों को देखकर पूरा शहर ठहर जाता है। कानपुर के फीलखाना स्थित गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रेस में जमकर रंग खेला जाता था। भगत सिंह, राजगुरू और चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारियों को गुलाल लगाते तो मोहल्लेवाले उन्हें गुझियां और खीर खिलाते। मेस्टन रोड निवासी रामचंद्र मुसद्दी जेलयात्री की भाभी श्रीदेवी मुसद्दी की भतीजी कमल मुसद्दी के मुताबिक, ताईजी बताती थीं कि आजाद का नाम गिरधर शर्मा बताकर उन्हें घर में ठहराया था। मगर, एक बार जब रात में पुलिस का सायरन बजा तो वह दोनों तमंचे लेकर बैठ गए। यह देखने के बाद ही उनसे परिचय पूछा, तब उन्होंने बताया कि मैं ही चंद्रशेखर आजाद हूं। इसके बाद बहुत सहज भाव से घर में रहे। दो दिन के बाद होली पर्व आया तो आजाद को तायी जी ने रंग लगाया। उन्होंने ने भी कनपुरिया स्टाइल में ताई को रंग से सराबोर कर दिया।
आजाद ने खाया था खीर और कढ़ी कमल मुसद्दी ने बताया कि पंडित चंद्रशेखर आजाद होली पर्व पर पकवान के बजाए ं कढ़ी और खीर खाई थी। बताती हैं, आजाद शाम को मेस्टन रोड पर निकले और होली खेल रहे लोगों ने उन्हें रोक लिया। इसी दौरान वहां पुलिस आई गई। पुलिस को देखते ही आजाद रंग खेलने लगे और पूरा शरीर रंग से रंग गया। इतना ही नहीं आजाद ने अंग्रेज दरोगा के पास जाकर उससे हाथ मिलाया और उसके गालों में रंग और गुलाल लगाया। अंग्रेल दरोगा उन्हें पहचान नहीं पाया। इसके बाद वह सीधे घर आ गए और पूरा किस्सा तायी जी को बताया। कमल मुसद्दी ने बताया कि आजाद को मूलगंज के चौबे की दुकान से तेल की कचौड़ियां मंगाकर खाते थे। एकबार कचौड़ी के चलते वह अंग्रेज पुलिस के हाथ लगते-लगते बस गए। आजाद और निडर व्यक्ति थे। उन्हें मौत से कभी डर नहीं लगता था। नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी ओरल हिस्ट्री ट्रांसक्रिप्ट : रामचंद्र मुसद्दी ’जेलयात्री’ वह अधिकृत दस्तावेज है, जो आजाद और कानपुर से जुड़े किस्सों को बताता है। इसमें आजाद के कानपुर प्रवास का पूरा जिक्र है।
जमीन पर सिक्का रखकर लगाते थे निशाना कमल मुसद्दी ने बताया कि चंद्रशेखर आजाद जाजमऊ टीला पर निशाने का अभ्यास करने जाते थे। जमीन पर सिक्का रखकर उस पर निशाना लगाया करते थे। उन्होंने ही निशानेबाजी सीखने के लिए मुसद्दी, मन्नीलाल पांडेय और भौदत्त को ग्वालियर के पास स्थित सिपरी (शिवपुरी) भेजा था। अपने भरोसेमंद हो चुके रामचंद्र मुसद्दी को अपनी मिलिट्री में शामिल होने का प्रस्ताव भी आजाद ने दिया था। चंद्रशेखर आजाद कानपुर को अपनी जंग का महफूज ठिकाना समझते थे। यही वजह है कि उन्होंने दो बार बंगाली मोहाल में बम बनाने का कारखाना खोलना चाहा, लेकिन दोनों ही बार पुलिस को भनक लग गई। जेलयात्री के साक्षात्कार में यह भी उल्लेख है कि संभवतः आजाद का सीआइडी से यह समझौता था कि कानपुर में वह कोई िंहसात्मक गतिविधि नहीं करेंगे। साथ ही सीआइडी यहां उन्हें गिरफ्तार नहीं करेगी।