शहर में गंगा किनारे भैरोघाट पर स्थित भैरव मंदिर में बाबा आठ स्वरूपों में विद्यमान हैं। भक्त प्रसाद के साथ उन्हें मदिरा भी प्रसाद रूप में चढ़ाते हैं। मान्यता है कि नियमित दर्शन करने से बाबा अपने भक्तों के सभी कष्ट हर लेते हैं। भैरव बाबा के दर्शन के साथ ही भक्त यहां द्वादश ज्योर्तिलिंग और राम दरबार के दर्शन कर धन्य होते हैं। प्रत्येक वर्ष 19 नवंबर को काल भैरव जयंती पर यहां उत्सव मनाया जाता है। शृंगार, हवन-पूजन, भंडारा और जागरण का आयोजन होता है।
रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। मुख्य मंदिर से लेकर अलग-अलग स्थान पर तुलसीदास जी ने बाबा के आठ स्वरूप स्थापित किए। इसमें सभी की अपनी महत्ता है। मंदिर में प्रवेश से पूर्व भक्तों को द्वारपाल भैरव के दर्शन होते हैं। इनसे अनुमति के बाद भी मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भक्त प्रवेश करते हैं। प्रवेश करते ही भक्तों को बटुक भैरव के दर्शन होते हैं। बटुक भैरव यहां बाल रूप में विराजमान हैं। मंदिर के प्रधान देव के रूप में इनकी पूजा अर्चना की जाती है। ठीक बगल में काल भैरव विद्यमान हैं। काल भैरव को ही भक्त मंदिरा का प्रसाद चढ़ाते हैं। रविवार के दिन मदिरा चढ़ाने के लिए यहां भक्तों को तांता लगता है।
मान्यता है कि मंदिर में स्थापित आनंद भैरव के दर्शन करने से भक्तों की सभी व्याधियां दूर होती हैं। श्मशान के राजा के रूप में मशान भैरव के नियमित दर्शन से बाधाएं दूर होती हैं। मंदिर से नीचे समी के पेड़ के नीचे रक्षक के रूप में क्षेत्रपाल भैरव विराजमान हैं। मुख्य पुजारी बताते हैं कि क्षेत्रपाल भैरव के दर्शन से घर से ही नहीं बल्कि क्षेत्र से भी व्याधियां दूर हो जाती हैं। कुछ दूर श्वेतांग भैरव का मंदिर है। मान्यता है कि रविवार के दिन देसी घी का लेप करने से सुख समृद्धि आती है। बाबा का आठवां रूप स्थान भैरव है। दीवार को फाडक़र निकली श्वानरूपी प्रतिमा के संरक्षण में यहां प्रत्येक रविवार को भंडारा होता है।
मुख्य पुजारी श्रीश्री 108 महंत सुमेर दास महाराज बताते हैं कि द्वादश ज्योर्तिलिंग के दर्शन कर वहां से भगवान शिव के ज्योर्तिलिंग लाकर मंदिर में स्थापित किया। 25 अगस्त 2018 को द्वादश ज्योर्तिलिंग की स्थापना की। मंदिर में महाकालेश्वर, पंचमुखी, शनिदेव, गणपति महाराज, दक्षिणेश्वर हनुमान, उत्तरी हनुमान, मां दुर्गा और राधाकृष्ण के मंदिर भी हैं।