लखनऊ. Shamshan Ghat in UP: उत्तर प्रदेश में बढ़ते कोरोना संक्रमण की वजह से अस्पताल से लेकर श्मशान घाट तक के हालात बद से बदतर हो गए हैं। अस्पतालों में जहां मरीजों को भर्ती करने की जगह नहीं मिल रही वहीं श्मशान घाटों पर अंतिम संस्कार के लिए भी आठ से दस घंटे की वेटिंग चल रही है। कई जगहों से शवों को जलाने के लिए लकड़ी खत्म होने की खबर है तो कहीं अंतिम क्रिया के लिए सिफारिश और जुगाड़ लगाना पड़ रहा है। इससे मरीजों के परिजनों में आक्रोश है। पत्रिका ने उप्र के प्रमुख शहरों के कुछ प्रमुख शहरों के श्मशान घाटों का जायजा लिया तो रूह कंपा देने वाली बातें सामने आयीं। पेश है रिपेार्ट-
लखनऊ के साथ कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। यहां के ज्यादातर श्मशान घाटों में शवों को जलाने के लिए जगह कम पड़ रही है। लखनऊ के दो श्मशान घाटों-गुलाला श्मशान घाट और बैकुंठ धाम में शुक्रवार को अंतिम संस्कार के लिए रात्रि आठ बजे तक 206 शव लाए गए थे। दर्जनों परिवार अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए तपती दोपहर में इंतजार करते-करते आधी रात को घर लौटेे। यहां लगभग हर घंटे, एक नया शव दाह संस्कार के लिए आ रहा है। स्थिति यह है चिता जलाने के लिए घाट के कर्मचारी पहले ही चिता सजा कर तैयार कर दिए हैं। कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने कभी इस तरह की स्थिति नहीं देखी। बैकुंठ धाम लखनऊ के सबसे बड़े श्मशान घाटों में से एक है। यहां लकडिय़ां कम पड़ गयीं तो नगर निगम को सरकारी स्टाल लगाना पड़ा। श्मशान घाट के चारों ओर अस्थाई टीन लगवा दिए गए हैं। ताकि बाहर से कुछ दिखाई ना दे। कमोबेश यही हाल गुलाला घाट का भी है। गुलाला घाट के पार्क में भ शवों को जलाया जाने लगा है।
गंगा किनारे कतारों में जल रहे शव प्रयागराज में भी स्थिति भयावह है। फाफामऊ श्मशान घाट पर गंगा नदी के किनारे रोजाना कतार में चिताएं जल रही हैं। शहर के कोविड अस्पतालों से फाफामऊ घाट तक एंबुलेंस का भाड़ा पांच हजार रुपये वसूला जा रहा है। जबकि दूरी लगभग नौ किलोमीटर ही है। इसके अलावा कोरोना से मृत व्यक्ति का शव एंबुलेंस में रखने के लिए दो सहायकों का चार्ज भी अलग है। मृतकों के मजबूर परिजनों को फाफामऊ घाट पर भी अंतिम संस्कार के लिए चढ़ावा देना पड़ रहा है। एक हफते से यहां रात दिन चिताएं चल रही हैं।
मणिकर्णिका पर भयावह मंजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के प्रमुख शवदाह गृहों में भयावह मंजर देखने को मिल रहा है। हर घाट पर सिर्फ कोरोना के मरीजों के शव नजर आ रहे हंै। एक ही घर में दो-दो, तीन-तीन लोगों की मौतें हो रही हैं। हरिश्चंद्र घाट का मंजर इस विभीषिका को खुद बयां कर रहा है। घाट पर सुबह से शवों की लंबी कतार लग जाती हैं। यहां दर्जनों चिताएं एक साथ जलाई जा रही हैं, तो दर्जनों लाशें अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं। यहां शव जलाने के दो तरीके हैं, एक तो बिजली से और दूसरा लकड़ी से। लेकिन इन दोनों स्थानों पर लाशों की लंबी लाइन लगी हुई हैं। मणिकर्णिका घाट पर शव जलाने के लिए कम से कम 7 से 8 घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। हालत यह है कि कोरोना की डेड बॉडी को उनके परिजन जलाने का ठेका देकर घर चले जा रहे हैं।
कानपुर में देर रात तक अंतिम संस्कार कानपुर के बिठूर से जाजमऊ के सिद्धनाथ घाट में शवों को जलाने के लिए 35 नए अस्थाई प्लेटफॉर्म बनाए गए हैं, लेकिन यहां इतनी मौतें हो रही हैं कि विद्युत शवदाह गृह में रात 12 बजे तक शव जलाए जा रहे हैं। इसके लिए कर्मचारियों की दो पालियों में ड्यूटी लगायी गई है, हालांकि लकडिय़ों से होने वाले अंतिम संस्कार सूर्यास्त तक ही हो रहे हैं। दूसरी ओर बिठूर से सिद्धनाथ घाट तक असंक्रमित शवों की संख्या भी रोजाना औसतन 150 पहुंच चुकी है।