कानपुर

राजस्थानी कलाकृतियों से परिपूर्ण है 160 वर्ष प्राचीन राधाकृष्ण मंदिर, भीखदेव कहिंजरी के मंदिर का है ये ख़ास नियम

-भीखदेव कहिंजरी का राधाकृष्ण मंदिर राजस्थानी कला का प्रतीक-जन्माष्टमी पर होता है भगवान कृष्ण के वामन अवतार का आकर्षक कार्यक्रम

कानपुरAug 28, 2021 / 03:19 pm

Arvind Kumar Verma

राजस्थानी कलाकृतियों से परिपूर्ण है 160 वर्ष प्राचीन राधाकृष्ण मंदिर, भीखदेव कहिंजरी के मंदिर का है ये ख़ास नियम

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
कानपुर देहात. जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) का पर्व हो और कहिंजरी के राधाकृष्ण मंदिर (Radhakrishna Temple Kahinjari) का जिक्र न हो ऐसा कभी नही हुआ। कानपुर देहात के कहिंजरी स्थित भीखदेव बाजार में बना करीब 160 वर्ष पुराना यह मंदिर कृष्ण भक्ति की आस्था का केंद्र है। इस प्राचीन मंदिर (Radhakrishna Temple Kanpur Dehat) का निर्माण सेठ रामनारायण ने करवाया था, इसे मनईयां सेठ के मंदिर के नाम से लोग जानते हैं। उन्होंने इस मंदिर को बनवाने में काफी पैसे खर्च किया। या यूं कहें तो उन्होंने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था। खास बात यह है कि यह मंदिर राजस्थानी कलाकृतियों से परिपूर्ण है। मंदिर की दीवारों में उस दौर में पक्षियों की सुंदर नक्कासी आकर्षित करती है।
राजस्थानी कलाकृतियों में लिप्त है मंदिर

ऐसी इमारतें खासतौर पर राजस्थान में ही देखे जाते हैं। जन्माष्टमी पर मंदिर में दूर दराज से श्रद्धालु आते हैं, लेकिन मंदिर की प्रतिमा को कोई कैमरे में कैद नही कर सकता है। इसके लिए यहां जगह जगह लिखा हुआ है। साथ ही तस्वीरें लेने के लिए पूर्णतया वर्जित किया गया है। 18वीं शताब्दी के इस मंदिर की दीवारों में रजवाड़े की झलक दिखती है। यहां जन्माष्टमी पर्व के अलावा भी लोग दर्शन के लिए समय समय पर आते हैं। जन्माष्टमी की खासबात यह है कि सात दिन कार्यक्रम समारोह होता है। इसमें मंदिर परिसर से लेकर मुख्य मार्ग भव्य सजाया जाता है। वामन डोला व भगवान की नौका जल विहार देखने लोग जुटते हैं।
इस बार प्रोटोकॉल के तहत होगा आयोजन

मंदिर में जन्माष्टमी को संगीत एवं लीला का विशेष आयोजन होता था। करीब पंद्रह दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में लोग शिरकत करने आते थे। हालांकि दो वर्षों से कोरोना संकट के चलते समारोह मनमुताबिक नहीं हो सका, लेकिन इसबार लोग कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए जन्माष्टमी को मनाने की बात कह रहे हैं। यहां के बुजुर्गों के मुताबिक सेठ रामनारायण के बाद उनके पुत्र लक्ष्मीनारायण ने मंदिर की देखरेख की।
मंदिर की प्रतिमा की फोटो लेना है मना

वर्तमान में मंदिर की देखरेख सुब्रत गुप्ता कर रहे हैं। वो कहते हैं कि मंदिर की मूर्ति का चित्र आज तक किसी ने कैमरे या मोबाइल से कभी नहीं लिया है। यह यहां का पुराना नियम रहा है। बताया कि जन्माष्टमी पर भगवान का वामन का डोला उठता है और राम तलैया में जाकर वह नौका से जल विहार करते हैं। तीन दिनों तक चलने वाला यह कार्यक्रम कोरोना काल के चलते इधर नहीं हुआ लेकिन इस बार सादे समारोह में यह संपन्न होगा।

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