कानपुर. मं पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।। ऊं एं ह्रीं क्लीं || मंत्र जो भी भक्त नवरात्र के तीसरे यानि आज के दिन करेगा, माता रानी उसके सारे बिगड़े काम बना देंगी। प्रोफेसर पंड़ित बलराम तिवारी ने बताया कि आज नवरात्र का तीसरा दिन है। आम तौर पर तीसरे दिन मां भगवती के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा देवी की पूजा अर्चना होती है, लेकिन इस बार की नवरात्र में तृतीया तिथि का क्षय है।
जिसकी वजह से तृतीय व चतुर्थी तिथि के देवियों के एक साथ पूजा अर्चना होगी। इसलिए आज चंद्रघंटा देवी और कूष्मांडा देवी दोनों की अराधना होगी। पंडित बलराम तिवारी ने बताया कि तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। इनकी उपासना से वीरता एवं विनम्रता का विकास होता है। कहा, देवी का स्वरूप शांतिदायक और कल्याणकारी है।
मखाने का भोग,स्फटिक की माला चढ़ाएं
देवी का स्वरूप चंद्रमा सदृश है। इसलिए इनको खीर और पंचमेवा, विशेषकर मखाने का भोग पसंद है। कोई भी सफेद सात्विक भोग इनको लगाया जा सकता है। स्फटिक की माला करें। श्रीदुर्गा सप्तशती का पांचवा अध्याय पढ़ें । वीरता, बुद्धि, विवेक देने की देवी से कामना करें। जिन जातकों का चंद्रमा कमजोर है। उनके लिए इनकी पूजा विशेष लाभकारी है।
आज कुष्मांडा देवी के मंदिर पर उमड़ेगा आस्था का सैलाब
मां दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कुष्मांडा है। अपनी मंद मुस्कान द्वारा अर्थात ब्राम्हाड़ को उत्पन्य करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। माता कुष्मांडा की कहानी शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था। लेकिन शंकर भगवान को निमंत्रण नहीं दिया गया था। माता सती भगवान शंकर की मर्जी के खिलाफ उस यज्ञ में शामिल हो गईं। माता सती के पिता ने भगवान शंकर को भला-बुरा कहा था, जिससे अक्रोसित होकर माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। माता सती के अलग-अलग स्थानों में नौ अंश गिरे थे। माना जाता है कि चौथा अंश घाटमपुर में गिरा था। तब से ही यहां माता कुष्मांडा विराजमान हैं।
मां के चरणों का जल ग्रहण करतें हैं भक्त
शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर तहसील में मां कुष्मांडा देवी का लगभग 1000 साल पुराना मंदिर है। लेकिन इस की नीव 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी। जिसमें एक चबूतरे में मां की मूर्ति लेटी थी।1890 में घाटमपुर के कारोबारी चंदीदीन भुर्जी ने मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर मां दुर्गा की चौथी स्वरूप मां कुष्मांडा देवी इस प्राचीन मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में हैं। एक पिंड के रूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता रहता है और जो भक्त जल ग्रहण कर लेता है, उसका जटिल से जटिल रोग दूर हो जाता है।
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