कानपुर

फाइलों से निकलकर उम्मीदों के ट्रैक पर दौड़ी मेट्रो

कम हुए कानपुर मेट्रो स्टेशन, कोच की संख्या भी घटी, खर्च घटाने के लिए नहीं होगा निजी जमीनों का अधिग्रहण, ट्रेन के फेरे भी सीमित होंगे, रूट की लंबाई भी घटाई गई

कानपुरMar 01, 2019 / 10:24 am

आलोक पाण्डेय

फाइलों से निकलकर उम्मीदों के ट्रैक पर दौड़ी मेट्रो

कानपुर . अंतत: अड़चनें दूर हुईं, अब अगले पांच बरस में कानपुर में मेट्रो में सफर करने का सपना पूरा होगा। केंद्र सरकार ने कानपुर में मेट्रो परियोजना की संशोधित डीपीआर को मंजूर करते हुए बजट का इंतजाम कर दिया है। शहर में मेट्रो के दो रुट बनाए जाएंगे, अलबत्ता कुछ स्टेशन और मेट्रो की संख्या में कटौती हुई है। लागत को कम रखने के लिए मेट्रो परियोजना में निजी जमीन का न्यूनतम अधिग्रहण करने का फैसला भी किया गया है। कानपुर मेट्रो परियोजना पर करीब ग्यारह हजार करोड़ का खर्च आएगा। केंद्र सरकार ने कानपुर के साथ ही आगरा शहर के लिए भी मेट्रो परियोजना को मंजूर किया है। आगरा में मेट्रो परियोजना पर 8379.62 करोड़ रुपए की लागत आएगी।

शहर में होंगे दो रूट, 14 स्टेशन होंगे भूमिगत

केंद्र सरकार द्वारा मंजूर डीपीआर के मुताबिक, कानपुर मेट्रो परियोजना में 22 स्टेशन होंगे, जिसमें 14 स्टेशन भूमिगत होंगे, जबकि आठ स्टेशन जमीन से ऊपर बनाए जाएंगे। मेट्रो परियोजना को दो चरणों में पूरा किया जाएगा। पहला कॉरिडोर आईआईटी से नौबस्ता तक होगा। इस रूट की लंबाई 23.78 किमी होगी। दूसरा कोरीडोर चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय से बर्रा-8 तक होगा, जिसकी लंबाई 8.60 किलोमीटर होगी। प्रारंभिक डीपीआर में आईआईटी-नौबस्ता कॉरिडोर में आईआईटी, कल्याणपुर, एसपीएम अस्पताल, यूनिवर्सिटी, गुरुदेव पैलेस, गीतानगर, रावतपुर, हैलट, मोतीझील चुन्नीगंज, नवीन मार्केट, बड़ा चौराहा, फूलबाग, नयागंज, सेंट्रल स्टेशन, झकरकटी, टीपीनगर, बारादेवी, किदवईनगर, बसंती विहार, बौद्धनगर और नौबस्ता में स्टेशन तय थे। संशोधित डीपीआर में गीतानगर, मोतीझील, नयागंज, एसपीएम में स्टेशन नहीं बनाए जाएंगे।

अगस्त तक दिखने लगेगा काम, मोदी करेंगे शिलान्यास

संशोधित डीपीआर को केंद्रीय मंजूरी के बाद उम्मीद है कि 8 मार्च को प्रस्तावित कानपुर दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेट्रो परियोजना का शिलान्यास करेंगे। इसके साथ ही लखनऊ मेट्रो रेल कारपोरेशन (एलएमआरसी) ने टेंडर की प्रक्रिया को तेज कर दिया है। ऐसे में अगस्त-सितंबर तक जमीन पर काम नजर आने लगेगा। यूं समझिए कि यदि एक सप्ताह में टेंडर निकलता है तो टेक्निकल और फाइनेंशियल बिड की प्रक्रिया पूरी होने में तीन-चार महीने लगेंगे। यानी जुलाई तक टेंडर प्रक्रिया पूरी हुई तो अगस्त-सितंबर में कानपुर मेट्रो का काम धरातल पर दिखने लगेगा।

फंडिंग के लिए मशक्कत, केंद्र-राज्य देंगे 20-20 फीसदी

डीपीआर मंजूरी के बाद अब मेट्रो परियोजना के लिए फंड के लिए मशक्कत करनी होगी। केंद्र और राज्य सरकार 20-20 फीसदी धनराशि देंगी, जबकि 60 फीसदी धनराशि के लिए अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग एजेंसी से करार करना होगा। कानपुर मेट्रो के लिए यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक के साथ-साथ जापान की सरकारी कंपनी जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन भी कर्ज देने को इच्छुक है। फिलहाल यूपी सरकार ने अपने 20 फीसदी अंशदान का इंतजाम कर दिया है। अब केंद्र सरकार को अपनी हिस्सेदार देनी है।

संशोधित डीपीआर में कम हुई लागत और कोच की संख्या

कानपुर मेट्रो परियोजना की प्रारंभिक डीपीआर में 18308 करोड़ की लागत का अनुमान था, जबकि संशोधित डीपीआर में 11076.48 करोड़ रुपए लागत का अनुमान है। लागत में कमी की वजह रूट की लंबाई घटाने और मेट्रो स्टेशन तथा कोच की संख्या कम करने से हुई है। इसी के साथ निजी जमीनों के न्यूनतम अधिग्रहण के फैसले से भी मेट्रो परियोजना की लागत कम हुई है। पहले कानपुर मेट्रो रूट की लंबाई 32.4 किमी तय थी, जोकि अब 32 किमी रह गई है। इसी के साथ छह मेट्रो स्टेशन भी कम कर दिए गए हैं। संशोधित डीपीआर के मुताबिक, कानपुर मेट्रो की लागत को कम करने के लिए ट्रेनों के फेरे लगभग आधे कर दिए गए हैं। इसके साथ ही मेट्रो के कोच की संख्या भी कम कर दी गई। पहले 26 ट्रेनें हर घंटे दोनों रूटों पर प्रस्तावित की गई थीं, जबकि अब केवल 16 ट्रेने दोनों रूटों पर प्रति घंटे चला करेंगी। इसी तरह पहले मेट्रो में कोच की संख्या दोनों रूट मिलाकर 156 थी जबकि अब प्रोजेक्ट में केवल 100 कोच ही शामिल हैं। इसी के साथ एलएमआरसी ने फिलहाल निजी जमीनों का इस्तेमाल न करने का फैसला लिया है, जहां बहुत जरूरी होगा और दूसरा रास्ता नहीं निकलेगा, वहीं पर निजी जमीन का अधिग्रहण किया जा सकता है। कोशिश है कि अगर आईआईटी से नौबस्ता रूट पर 249 करोड़ और सीएसए से बर्रा वाले रूट पर 98 करोड़ की सरकारी जमीन परियोजना के लिए मुफ्त में मिल जाए तो कुल 348 करोड़ रुपए की लागत और कम हो जाएगी। मेट्रो के दोनों रूटों पर करीब 487 करोड़ की निजी जमीन का इस्तेमाल परियोजना में होना था। अगर इन जमीनों का अधिग्रहण होता तो भूस्वामियों को यह राशि भुगतान में देनी पड़ती, लेकिन इसमें बहुत जगह निर्माण अब नहीं किया जाएगा, जिससे वह जमीन अधिग्रहीत नहीं करनी पड़ेगी।

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