क्या है जगन्नाथ मंदिर का इतिहास कानपुर के भीतरगाँव विकासखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर पर बेंहटा गाँव में स्थित भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर के निर्माण काल के विषय में इतिहासकारों और पुरातत्वविदों में मतभेद है। गर्भगृह के भीतर और बाहर जो चित्रांकन किए गए हैं, उनके अनुसार इस मंदिर को दूसरी से चौथी शताब्दी का माना जाता है। मंदिर में कुछ ऐसे निशान मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि यह मंदिर सम्राट हर्षवर्धन के समय का है। हालाँकि इसके अलावा मंदिर में उपस्थित अयागपट्ट के आधार पर कई इतिहासकार इस मंदिर को लगभग 4,000 साल पुराना बताते हैं। हालाँकि मंदिर में आखिरी बार 11वीं शताब्दी में जीर्णोद्धार कराए जाने की जानकारी मिलती है।
यह भी पढ़े – कहीं श्रीलंका से तो नहीं आपका किस्मत कनेक्शन, जिंदगी बदलने वाले रत्नों का आयात बंद सूखे पत्थर आचानक से टपकने लगते जगन्नाथ मंदिर मानसून की भविष्यवाणी के लिए देशभर में जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के एक ऊपर एक ऐसा चमत्कारी पत्थर लगा हुआ है, जहाँ से जल की बूँदें टपकती हैं। पूरे साल सूखे रहने वाले इस पत्थर से मानसून आगमन के 7-15 दिन पहले बूँदों का रिसाव शुरू हो जाता है। आश्चर्य की बात है कि जब पूरा इलाका गर्मी से जूझ रहा होता है, तब मंदिर के इस पत्थर से जल की बूँदों का टपकना किसी रहस्य से कम नहीं है। हालाँकि मानसून शुरू होते ही बूँदों का रिसाव बंद हो जाता है।
यह भी पढ़े – सैनिक स्कूल से सेना में अफसर रैंक तक की नौकरियों में होती है आसानी, फीस भी कम, ये Admission प्रक्रिया बूंदों के आकार से पता चलती है मानसून की तीव्रता
इन बूँदों का आकार मानसून की तीव्रता के बारे में बताता है। अगर जल की बूँदे आकार में बड़ी रहीं तो मानसून के बेहतर रहने का अनुमान लगाया जाता है और छोटी बूँदें मानसून में कमी को बताती हैं। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि मानसून के विषय में इस मंदिर द्वारा की गई भविष्यवाणी कभी गलत हुई हो। प्रदेश के लाखों किसानों को मौसम विभाग से ज्यादा इस मंदिर पर भरोसा है। अब इस मंदिर को देखने के लिए विदेशों से भई लोग पहुंचे हैं।
क्या कहते हैं ग्रामीण कानपुर के इस मानसून मंदिर के निर्माण के विषय में ग्रामीणों का मत है कि इसका निर्माण कई सहस्त्राब्दियों पहले महाराजा दधीचि ने कराया था और इस मंदिर के सरोवर के किनारे में भगवान राम ने अपने पिता महाराजा दशरथ का पिंडदान भी किया था, जिसके बाद से यह सरोवर रामकुंड कहा जाने लगा।