15 फरवरी-2019 को पीएम नरेंद्र मोदी ने दिल्ली स्टेशन से इस ट्रेन को हरी झंडी दिखा रवाना किया था। सात लाख से अधिक किमी. की दूरी तय करने के बाद इसके कोचों का कायाकल्प और अधिक सुविधाजनक बनाया जा रहा है। इसका एलान रेल मंत्रालय ने कर भी दिया है। आरामदायक सीटें न होने पर यात्रियों ने सुझाव भी दिए थे। इसके मद्देनजर ही सीटों के साथ ही इस ट्रेन के कोचों की तकनीक भी अपग्रेड हो रही है।
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कटा सिर चला आया दिल्ली से झांसी तक, सब रहे बेखबर! पर अभी फुल स्पीड से नहीं चल पा रही वंदेभारत दिल्ली से कानपुर तक वंदेभारत एक्सप्रेस 130 किमी. की गति से चलती है, जबकि प्रयागराज से वाराणसी के बीच इसकी गति अधिकतम 110 किमी. की ही रहती है। इसकी वजह ट्रैक है। प्रयागराज से वाराणसी के ट्रैक के उच्चीकरण का काम हो रहा है। साल के अंत तक यह ट्रेन भी फुल स्पीड से दौड़ने लगेगी तो पौन घंटे तक का सफर कानपुर से दिल्ली के बीच का कम होगा।
स्वर्ण शताब्दी में 12 साल बाद बदले थे कोच दिल्ली से लखनऊ वाया कानपुर चल रही स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस वर्ष 1989 में चली थी। इस ट्रेन का तब नाम शताब्दी एक्सप्रेस था। मई-2001 में इस ट्रेन में जर्मन कोच लगे तो इस ट्रेन का नाम स्वर्ण शताब्दी कर दिया गया था। रेलवे ने आधुनिक कोच लगते ही किराया दस फीसदी बढ़ा लिया था। जर्मन कोच लगते ही ट्रेन की कपलिंग खुलने लगी थी तो बाद में स्वदेशी तकनीक की कपलिंग लगी तो समस्या का समाधान हुआ था।