आईआईटी के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर के मुताबिक किट जल प्रदूषण से निपटने और ई कोलाई की उपस्थिति का पता लगाने में फायदेमंद साबित होगी। इस कार्यप्रणाली में ई कोलाई बैक्टीरिया के माध्यम से उत्पादित मार्कर एंजाइम का पता लगाती है। एंजाइम-सब्सट्रेट परस्पर क्रिया से रंग परिवर्तन कर पीने के पानी में जीवाणु संबंधी संदूषण की उपस्थिति या अनुपस्थिति को भी बताया गया है। परीक्षण किट की रिपोर्ट डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है। यह पूरी तरह से मेक इन इंडिया तकनीक होगी। जल्द ही जेम पोर्टल के अलावा ऑनलाइन वेबसाइट पर भी उपलब्ध होगी।
यह भी पढ़े – यूपी के विवि ने शुरू की पोर्टेबल डिग्री, छात्रो के लिए बड़ी राहत, कहीं से भी कर सकेंगे पढ़ाई पीने के पानी की बताएगी शुद्धता संस्थान के पृथ्वी विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक प्रो. इंद्रशेखर सेन ने जांच के लिए ई-कोलाई जल परीक्षण किट विकसित की है। वैज्ञानिक प्रो. सेन ने एंजाइम सब्सट्रेट बेस्ड ई कोलाई किट विकसित की है। जल परीक्षण किट अत्यधिक संवेदनशील है और पीने के पानी में ई कोलाई की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाती है। इसका ओडिशा में फील्ड परीक्षण सफलतापूर्वक किया गया है। किट का उपयोग करना आसान है और कम लागत के साथ इसके परीक्षण से गलत परिणाम मिलना दुर्लभ है।
राजमार्गों के लिए हुआ समझौता राष्ट्रीय राजमार्ग की तकनीक को अब आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक अत्याधुनिक करेंगे। इसको लेकर आईआईटी और राष्ट्रीय राजमार्ग अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड के बीच एक एमओयू हुआ है। वैज्ञानिक राजमार्ग इंजीनियरिंग और अन्य बुनियादी ढांचा कार्यों में काम करेंगे। राष्ट्रीय राजमार्ग के एमडी चंचल कुमार और संस्थान के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर के बीच समझौता हुआ है। इसके तहत आईआईटी कानपुर के विज्ञान, इंजीनियरिंग, डिजाइन, प्रबंधन व मानविकी के विभिन्न नवाचारों को राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ साझा किया जाएगा। ये दोनों संगठन सड़क अवसंरचना और राजमार्ग इंजीनियरिंग परियोजनाओं पर साथ काम करेंगे।