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कानपुर

कातिल का कत्ल और वादियों के बाद अब वकील की मौत पर जिंदा रहेगी तारीख

1981 में फूलन देवी ने बेहमई गांव में 20 क्षत्रीय समाज के लोगों का कर दिया था कत्ल, 38 साल से बदस्तूर कोर्ट में चल रहा मुकदमा, अधिकतर वादी, आरोपियों की हो चुकी है मौत।

कानपुरMay 08, 2019 / 02:58 pm

Vinod Nigam

full story of behmai massacre case by phoolan devi gang in kanpur

कातिल का कत्ल और वादियों के बाद अब वकील की मौत पर जिंदा रहेगी तारीख

कानपुर। 1981 में फूलन देवी ने बेहमई गांव में 20 क्षत्रीय समाज के लोगों का कर दिया था कत्ल, 38 साल से बदस्तूर कोर्ट में चल रहा मुकदमा, अधिकतर वादी, आरोपियों की हो चुकी है मौत।बीहड़ के खुंखर डकैत फूलन देवी ने 1981 में कानपुर देहात के बेहमई गांव में एक ही समाज के 20 लोगों को गोलियों से भूल डाला था। इस हत्याकांड की आवाज देश ही नहीं सात समंदर पार विदेशों में भी गूंजी थी। मृतकों के परिजनों की तहरीर पर पुलिस ने डकैत फूलनदेवी समेत 30-35 अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। जिनमें से कातिल का कत्ल तो कई डकैत इनकाउंटर में मारे जाने के साथ ही अधिकतर वादियों की मौत हो चुकी है। आरोपियों को सजा दिलाने के लिए कानपुर के जाने-माने वकील विजय नारायण सिंह सेंगर ने बिना पैसा के कोर्ट में पिछले 38 सालों से बहस करते आ रहे थे, पर देरशाम हार्टअटैक पड़ने से उनका निधन हो गया। इसकी जानकारी जैसे बेहमई में पहुंची गांव में सन्नाटा पसर गया। वकील के दाहसंस्कार में पहुंचे राम सिंह ने बताया कि बाबू जी के गुजर जाने के बाद भी मुकदमा व तारीख जिंदा रहेगी।

बिना पैसे के लड़ा मुकदमा
वरिष्ठ वकील विजय नारायण सिंह सेंगर का मंगलवार को हार्ट अटैक पड़ने से निधन हो गया। बेहमई कांड के मामले में विजय नारायण पीड़ित पक्ष के साथ खड़े होकर चर्चित हुए थे। उन्होंने फूलनदेवी के खिलाफ पीड़ितों के मुकदमे की पैरवी आखरी सांस तक की। बेहमई निवासी राम सिंह ने बताया कि बाबू जी ने बिना एक रूपया लिए मुकमदा लड़ा। उनके निधन के बाद तारीख जिंदा रहेगी और जब तक इंसाफ नहीं मिलता तक तक कोर्ट में हमारी जंग जारी रहेगी। कहते हैं, हमारे परिजनों के खून से लाल हुई वहां की जमीन आज भी न्याय को बेकरार है। इस हत्याकांड के मुख्य कातिल फूलेन का कत्ल हो चुका है, दर्जनों गवाहों की मौत हो गई। बावजूद इसके मुकदमा खत्म नहीं हुआ।

35 से ज्यादा पर दर्ज है मुकदमा
14 फरवरी 1981 को दस्यु सुंदरी फूलनदेवी और उसके गैंग ने बेहमई में खून की होली खेली थी। बैंडिड क्वीन ने गांव के अंदर बनें कुए के पास 20 बेकसूर लोगों को लाइन में खड़ा कर बंदूक से दनादन फयार कर उन्हें दर्दनाक मौत दी थी। डकैत फूलनदेवी समेत 30-35 अन्य लोग नामजद किए गए थे। फूलन देवी के सरेंडर के बाद ये मुकदमा पिछले 38 सालों से चल रहा है। अधिकतर वादियों के साथ हत्या के आरोपियों की मौत हो चुकी है। हर माह कोर्ट में सुनवाई होती है पर फैसला अभी भी अटका हुआ है।

4 अभियुक्तों पर जारी है सुनवाई
नरसंहार के 31 साल बाद 25 अगस्त 2०12 को कानपुर देहात की अदालत में अभियुक्तों पर चार्ज तय हुए। मुकदमा शुरू हुआ, लेकिन मुख्य अभियुक्त फूलनदेवी अब दुनिया में नहीं थी। अदालत ने बेहमई कांड के लिए दस लोगों के नाम बतौर अभियुक्त तय किए। फूलन की मौत के बाद शेष नौ में पांच हाजिर थे, जबकि चार फरार थे। एक अभियुक्त को अदालत ने घटना के वक्त नाबालिग करार देकर किशोर न्यायालय में मुकदमा स्थानांतरित कर दिया। शेष चार अभियुक्त- कोसा, भीखाराम, रामसिह और श्यामबाबू के खिलाफ सुनवाई जारी रही।

निर्दोषों को फूलन ने मारा था
राम सिंह कहते हैं, 14 फरवरी 1981 की तारीख नहीं भूलती है। वह एक शुभ मुहुर्त था, जब गांव के राम सिह की बिटिया की बारात आई थी, लेकिन यह मुहुर्त बेहमई के लिए दुर्भाग्य बनकर आया था। उस वक्त के खूंखार डकैत श्रीराम-लालाराम की बेहमई में बंधक बनी फूलनदेवी अपने साथ कुछ दिन पहले हुए सामूहिक बलात्कार का बदला लेने के लिए गैंग के साथ गांव पहुंच चुकी थी। खबर थी कि शादी में शामिल होने के लिए श्रीराम भी आया था, लेकिन वह भाग निकला। खुन्नस में फूलन ने शनिवार की शाम ठाकुर परिवारों के बीस लोगों को एक लाइन में खड़ा करने के बाद गोलियों से भून डाला।

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