ससुर के हाथ से छीनी लाठी
पिचौरा गांव निवासी सुनीता गुप्ता की शादी कुरेपुरा कनार के शिवदास के साथ हुई थी। आम महिलाओं की तरह वह भी जीवन जी रही थीं। पढ़ी-लिखी होने के चलते उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई। नौकरी के दौरान उन्हें आसपास गांव की महिलाएं मिलीं और उनका दुख देख कुछ करने का इच्छाशक्ति जागी। पति से बिना पूछ सुनीता ने नौकरी से रिजाइन कर ससुर के हाथ से लाठी छीन ली और संपत पाल की तरह महिला उत्पीड़न के खिलाफ सड़क से लेकर विधानसभा तक उनकी आवाज उठानें लगी। सुनीता गुप्ता ने बताया कि ग्रामप्रधान चुने जाने के बाद महिलाओं को रोजगार मिले, इसके लिए मनरेगा में उन्हें काम दिया। गांवों में महिलाओं ने 11 तलाबों को अपने हाथो से तैयार किया तो दो दर्जन कुओं का निर्माण किया। इससे उनकी आमदनी बढ़ी तो वहीं पेयजल समस्या से मुक्ति भी मिली।
आधुनिक गोशाला का निर्माण
सुनीता बताती हैं कि यूपी के अधिकतर जिलों में अवारा मवेश्सी सबसे बड़ी समस्या हैं। वह खेतों में खड़ी फसलों को बर्बाद कर रहे थे। मैं खुद डीएम से मिली और गोशाला निर्माण के लिए धनराधि आवंटित करने को कहा। डीएम के आदेश के बाद ग्रामपंचायत को गोशाला बनाए जाने के लिए पैसे मिल गए। महज एक माह के अंदर आधुनिक गोशाला खड़ी करवा दी। सौरऊर्जा से चलनें वाले पंखे लगवाए तो दुधारू गाय के लिए अच्छे भोजन की व्यवस्था करवाई। इसकी देखरेख के लिए गांव की दो विधवा महिलाओं को रखा। दूध के जरिए जो आमदनी होती है उससे वह अपने परिवार के साथ गोशाला में काम करने वाले मजदूरों का पेट भरती हैं।
हर घर में टॉयलेट
प्रधान सुनीता गुप्ता बताती हैं कि 2014 से पहले गांव में एक भी टॉयलेट नहीं थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घर-घर टॉयलेट की योजना शुरू की। जिलाप्रशासन के सहयोग से हर घर में टॉयलेट का निर्माण कराया और खुले में शौंच नहीं करने के लिए लोगों को जागरूक किया। लेकिन कुछ पुरूष और महिलाएं खेतों में शौंच के लिए जाती थीं। जिसके कारण प्रधान ने एक दर्जन महिलाओं का एक ग्रुप बनाया और उनकी ड्यूटी सुबह और शाम को लगा दी। महिलाएं सीटी और लाठी के साथ खेत में पहरा देने लगी। जैसे ही कोई खुले में शौंच करते दिखता सीटी बजाकर उन्हें पहले अर्लट करती फिर मौके पर दोबारा ऐसी लगती नहीं करने की संकल्प दिलवाती। जिसका नतीजा रहा कि आज पूरा गांव ख्ुले से शौंच मुक्त हो गया।
महिलाएं बनाती हैं जैविक खाद
सुनीता बताती हैं कि महिलाएं ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाएं और खुद के पैरों में मजबूती के साथ खड़ी रहें। इसके लिए गांव में 17 स्वयं सहायता समूहों का गठन करवाया। इनसे इस समय करीब 165 महिलाएं जुड़ी हैं। इन महिलाओं को जैविक खाद बनाने का तरीका सिखाया। जैविक खाद के माध्यम से महिलाओं को अच्छी-खासी आमदनी होने लगी है और इनकी बनाई खाद्य अब कानपुर के बाजारों में भी बिक रही है। सुनीता कहती हैं कि यदि प्रयास इमानदारी से किए जाएं तो महिलाएं सफलता के सोपान आसानी से चढ़ सकते हैं। इसके लिए उन्हें उपयुक्त अवसर दिए जाने की जरूरत है।