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कानपुर

जब डाकू ‘नेता जी’ ने मुलायम सिंह को उन्हीं के गढ़ में दी थी चुनौती

मैनपुरी के इस डकैत ने एक दशक तक बीहड़ में किया राज, 1982 में पुलिस एनकाउंटर में हुआ था डेर।

कानपुरOct 12, 2019 / 01:26 am

Vinod Nigam

जब डाकू ‘नेता जी’ ने मुलायम सिंह को उन्हीं के गढ़ में दी थी चुनौती

जब डाकू ‘नेता जी’ ने मुलायम सिंह को उन्हीं के गढ़ में दी थी चुनौती

कानपुर। बीहड़ और पाठा के जंगलों में अनगिनत डकैतों ने जन्म लिया और बंदूक के बल पर वोट डलवाए और नोट कमाएं। पर हम आपको ऐसे डकैत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी तूती समाजवादी पार्टी के संयोजक मुलायम सिंह यादव के गढ़ में बोलती थी। वह दस्यू छविराम उर्फ नेता जी था। जिसका नाम लेने से इटावा, मैनपुरी और कानपुर के अलावा तीन अन्य राज्यों के ग्रामीण खौफ खाते थे। मुलायम सिंह के अलावा उनके समर्थकों के लिए डकैत सिरदर्द बन चुका था। तंग आकर मुलायम सिंह ने सूबे के तत्यकालीन सीएम वीवी सिंह से गुहार लगाई और आखिरकार 3 मार्च 1982 को करीब 20 घंटे की मुठभेड़ के बाद एक लाख के इनामी डाकू के आतंक से लोगों को मुक्ति मिली।

कौन था डकैत छविराम
मुलायम सिंह के पैतृक जिला मैनपुरी के औछा में छविराम का जन्म हुआ था। महज 20 साल की उम्र में छविराम बागी हो गया और बंदूक उठा ली। 1970 से लेकर 1982 तक छविराम की तूती उत्तर प्रदेश में बोलती थी। नेहरूनगर निवासी राजेंद्र सिंह जो रिटायर्ड रोडवेज कंडेक्टर बताते हैं कि हमारा मूल निवास मैनपुरी है। नौकरी के बाद कानपुर आ गए। बताते हैं, छविराम लोगों को लूटने में माहिर था, वो हमेशा अपने दिमाग के बल पर लोगों के घरों में डकैती किया करता था और भाग जाया करता था। छविराम को गैंग के अन्य सदस्य नेता जी के नाम से पुकारते थे। ग्रामीण भी डकैत को नेता जी ही कहते थे।

एनकाउंटर का दिया आदेश
डकैत छविराम मैनपुरी में आतंक बहुत ज्यादा था। वह मुलायम सिंह यादव के लिए सिरदर्द बन गया था। बताते हैं, उस 1982 के दौर था और मुलायम सिंह बीकेडी पार्टी में थे। छविराम मुलायम सिंह के कार्यकर्ताओं को धमकी देने के साथ ग्रामीणों को शिकार बनाता। इसी के चलते मुलायम सिंह ने डकैत के खात्में के लिए तत्यकालीन सीएम वीवी सिंह से गुहार लगाई। यूपी सरकार ने उसे किसी भी कीमत पर जिंदा या मुर्दा पकड़ने के आदेश दिए।

पुलिस को दी चुनौती
1982 में छविराम ने एटा के अलीगंज तहसील के तत्कालीन सीओ को पकड़ कर यूपी सरकार को चुनौती दी। हालांकि छविराम ने 1 दिन बाद ही सीओ को छोड़ दिया, लेकिन इस घटना से प्रदेश सरकार की खूब बेइज्जती हुई और छविराम की हिम्मत और ज्यादा बढ़ी। देश की तत्कालील पीएम इंदिरा गांधी ने यूपी के सीएम को छविराम के एनकाउंटर का आदेश दिया। उसके बाद वीपी सिंह ने प्रदेश की पुलिस को छविराम के पीछे लगा दिया और उसे किसी भी कीमत पर जिंदा या मुर्दा सामने पेश करने के लिए कहा।

इस एसपी ने किया था ढेर
राजेंद्र सिंह बताते हैं वीपी सिंह ने तत्कालीन एसपी कर्मवीर सिंह को छविराम के खात्में की जिम्मेदारी दी। एसपी व उनकी टीम ने छविराम और उसके गिरोह को बरनाहल ब्लाक के पास सेंगर नदी की तलहटी पर घेर लिया। पुलिस के साथ कुछ जवानों ने छविराम और उसके गिरोह को घेर लिया और लगभग 20 घंटों तक मुठभेड़ चली। छविराम के साथ-साथ 8 डकैतों को मौत के घाट उतार दिया गया। जैसे ही यूपी के सीएम वीपी सिंह को छविराम के एनकाउंटर के बारे में पता चला तो वो सीधे मैनपुरी पहंचे और पुलिस की पीठ थपथपाई।

पेड़ पर लटकाए गए थे शव
राजेंद्र सिंह बताते हैं कि एनकाउंटर के बाद छविराम समेत उसके गैंग के आठ अन्य डकैतों के शवों को बैलगाड़ी के जरिए जंगल से मैनपुरी स्थित कोतवाली लाया गया। ठीक सामने क्रिश्चियन मैदान में छबिराम के साथ 8 डाकुओं की लाशें लकड़ी पर लटकाई गई थीं। राजेंद्र बताते हैं छविराम के गैंग के सभी सदस्य मार दिए गए। लेकिन डकैत पुलिस की गोलियों के बीच से बच कर नदी की तलहटी में छिप गया था और एलएमजी के जरिए करीब पांच घंटे तक पुलिस के साथ लड़ा रहा। लेकिन पुलिस की घेराबंदी से वह बच नहीं पाया और मारा गया।

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