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कानपुर

इस मंदिर में जरूर दर्शन करें, जहां जीवित कन्या स्वयं स्थापित हो गयी, अजीब है इसकी कहाँनी

नवरात्रि के महापर्व पर इस देवी के दर्शन जरूर करें, जहाँ एक 9 वर्ष की कन्या स्वयं साक्षात विराजमान हो गयी। यह प्राचीन चमत्कारिक मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है।

कानपुरOct 11, 2018 / 03:38 pm

आलोक पाण्डेय

prema devi

इस मंदिर में जरूर दर्शन करें, जहां जीवित कन्या स्वयं स्थापित हो गयी, अजीब है इसकी कहाँनी

अरविंद वर्मा

कानपुर देहात-जिले के रूरा नगर के पास कारी कलवारी ग्राम में एक ऐसा आस्था का केंद्र है, जहां 36 वर्ष पूर्व स्वयं एक 9 वर्ष की कन्या गौरी देवी का रूप लेकर विराजमान हो गयी। इसके बाद से लगातार इस स्थान पर दूर दराज से लोग आते है। बताया जाता है कि गौरी एक गरीब परिवार में जन्मी थी। बचपन से ही पूजा पाठ में उसकी लगन थी। आये दिन वह साक्षात चमत्कार किया करती थी। बहुत सारे चमत्कारों के साथ एक दिन उसने देवी रूप धारण किया, जो आज प्रेमा देवी के नाम से जानी जाती हैं। आस्था के इस धाम में 7 अक्टूबर को बहुत ही दूर दूर से लोग आते हैं और एक विशाल भंडारे व धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता आ रहा है। मंदिर की देखरेख प्रेमा देवी के भाई पुजारी अर्जुन बाबा बड़े लगन और निष्ठा से करते आ रहे हैं।
बचपन से उसकी पूजा पाठ में लगन थी

लोगो का कहना है कि वर्षों पूर्व जिले के रूरा क्षेत्र के ग्राम कारी कलवारी में एक बहुत ही गरीब सुरजन सिंह गौर का परिवार रहता है। सुरजन गौर के परिवार में पाँच बेटे और तीन बेटियां हैं। बेटियों में सबसे छोटी पुत्री का नाम गौरी था। गौरी जब तीन वर्ष की थी, तभी से वह पढ़ाई लिखाई में कम पूजा पाठ में अधिक रुचि रखने लगीं थी। गौरी एक दिन अपनी मांं पार्वती के साथ गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित परहुल देवी के मंदिर दर्शन के लिये जा रहीं थी। तभी रास्ते मे गौरी के पैर में कांच का टुकड़ा चुभ गया। डॉक्टरों ने जब कांच का टुकड़ा निकालना चाहा तो कांच का टुकड़ा नहीं निकल पाया और दर्द बढ़ता गया। तब गौरी की मॉ ने गुस्से में बेटी को भला बुरा कह दिया। तब गौरी ने मां को बताया कि मैं देवी हूँ लेेेकिन मां ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
गौरी ने किए कई चमत्कार

उसी दिन से गौरी तरह तरह के चमत्कार करने लगीं। एक दिन अचानक गौरी ने अपनी दोनों हथेलियों को रगड़कर अग्नि उत्पन्न कर दी, जिससे घर का सारा सामान जलकर राख हो गया। वह 7 अक्टूबर 1982 का दिन था। उसी रात करीब बारह बजे गौरी घर से एक किलोमीटर दूर जंगल में जाकर बैठ गई। तब से इस स्थान का नाम प्रेमा धाम पड़ गया। उस समय से अभी तक प्रत्येक वर्ष इस ग्राम में 7 अक्टूबर को विशाल भंडारा, मेला और जगह जगह धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता चला आ रहा है, जिसमे भारी संख्या में भक्त कई जिलों सेे दर्शन के लिये आते हैं। स्थानीय लोगो के मुताबिक प्रेमा देवी के भाई पुजारी अर्जुन सिंह (बाबा) मन्दिर में रहते हैं और उसी मन्दिर में दिन-रात सेवा किया करते हैं।

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