कानपुर

भगत सिंह का साथ देने वाले इस क्रांतिकारी को शायद ही जानते होंगे आप

चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों को आज पूरा देश याद कर रहा है, लेकिन इन्ही में से एक क्रंतिकारी बटुकेश्वर दत्त को लोग शायद जानते भी न हो।

कानपुरJan 26, 2016 / 05:40 pm

Abhishek Gupta

कानपुर. भारत आज अपना 67वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। इस आजाद भारत में हर सरकारी व प्राइवेट, शासक और प्रशासक अपने-अपने तरीके से जश्न-ए-आजादी मना रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों को आज पूरा देश याद कर रहा है, लेकिन इन्ही में से एक क्रंतिकारी बटुकेश्वर दत्त को लोग कम ही से जानते हैं।

बटुकश्वर आजादी के लिए लड़ने वाले, भारत को पहला देशी बम बनाने वाले, उम्र कैद की सजा के बाद कालापानी जाने वाले एक महान क्रंतिकारी थे। बटुकेश्वर दत्त का कानपुर से गहरा नाता रहा है। दत्त ने कानपुर के पीपीएम कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की और भगत सिंह से इनकी मुलाकात बिठूर में हुई।

बटेकेश्वर दत्त नवंबर 1908 से जुलाई 1965 के बीच भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। उनको देश ने सबसे पहले 8 अप्रैल 1929 में जाना, जब वे भगत सिंह के साथ केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार किए गए। बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, जिला-नानी बेदवान ( बंगाल) में हुआ था। इनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खंडा और मौसु में बीता।

पीपीएन कॉलेज से की स्नातक की पढ़ाई-
बटूकेश्वर दत्त ने स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज कानपुर से की थी। सन् 1924 में कानपुर में इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में उन्होंने बम बनाना भी सीखा। 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया। बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।

बटुकेश्वर दत्त पहली बार हुए थे गिरफ्तार-

इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर ने षड़यंत्र का केस चलाया। साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी, वहीं बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया।

जेल में रहकर की थी भूख हड़ताल-
जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। 1937 में सेल्यूलर जेल से बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए। आजादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से शादी करने के बाद वे पटना में रहने लगे।

पहले क्रांतिकारी थे जो विधायक बने-

बटुकेश्वर दत्त एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बंदूक उठाई और आजादी के बाद उन्हें विधान परिषद ने 1963 में विधायक चुनकर भेजा गया था। श्री दत्त की मृत्यु 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई थी। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया। इनकी एक पुत्री भारती बागची पटना में रहती हैं।

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