कहां से शुरू हुआ सिलसिला गांव के बुजुर्गों की मानें तो 1970 में सरियापुर गांव की राजरानी का ब्याह जगम्मनपुर गांव के सांवरे कठेरिया से हुआ। सांवरे ससुराल में ही रहने लगे। उन्हे रहने के लिए गांव में ही जगह दे दी गई। हालांकि वह अब दुनिया में नहीं हैं, पर उनके द्वारा शुरू किया गया सिलसिला आज भी जारी है। उनके बाद जुरैया घाटमपुर के विश्वनाथ, झबैया अकबरपुर के भरोसे, अंडवा बरौर के रामप्रसाद जैसे लोगों ने सरियापुर की बेटियों से शादी की और इसी ऊसर में घर बना कर रहने लगे।
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पार्लर से सज संवर कर झूले पर विराजेंगे लड्डू गोपाल, मैन्यूक्योर के साथ फेशियल भी ऐसी बढ़ी दमादनपुरवा की परंपरा अब तीसरी पीढ़ी में भी दामादों ने यहां बसना शुरू कर दिया है। 2005 आते-आते यहां 40 दामादों के घर बन चुके थे। लोग इसे दमादनपुरवा कहने लगे। लेकिन सरकारी दस्तावेजों में इसे नाम नहीं मिला। दो साल बाद गांव में स्कूल बना और उस पर दमादनपुरवा दर्ज हुआ। उधर, परंपरा बढ़ती रही। दामाद बसते रहे। यह मजरा दमादनपुरवा नाम से दर्ज हुआ। प्रधान, प्रीति श्रीवास्तव ने कहा कि दमादनपुरवा की करीब 500 आबादी है और करीब 270 वोटर हैं। लोग दमादनपुरवा के बोर्ड पढ़ते हैं तो मुस्कुराते हैं।
गांव राम सबसे बुजुर्ग दामाद
गांव के सबसे बुजुर्ग दामाद रामप्रसाद की उम्र करीब 78 साल है। वह 45 साल पहले ससुराल आकर बसे थे। वहीं सबसे नए दामादों में अवधेश अपनी पत्नी शशि के साथ यहां बसे हैं।