छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से कांकेर जिले के कुरना और चारामा समुदाय, भानुप्रतापपुर के लोग, अंतग्रह, पखांजूर, कोंडागांव, नारायणपुर और बस्तर की जनजातियाँ मड़ई मेला के त्यौहार को मनाती हैं।
रिश्तेदार और दोस्त भी होते हैं शामिल
इस मड़ई मेला के त्यौहार पर विभिन्न जनजातियों के लोग अपने घरों से बाहर एक बड़े खुले मैदान में इकट्ठे होते हैं। इन मेलों में दूर दराज से व्यापारी आते हैं और सस्ते दरों में लोगों को अपने सामान बेचते हैं। इन मड़ई मेला में बहुत सारी दुकानें लगती हैं- बच्चे और बड़ों के लिए झूले, मिठाइयों की दुकानें, कपड़ों और जूते चप्पलों की दुकाने इत्यादि खुलती हैं। ग्रामीणों के रिश्तेदार और दोस्त भी देश के विभिन्न हिस्सों से उनसे मिलने आते हैं। वे एक साथ अनुष्ठान करते हैं, अपने भोजन के साथ-साथ इस उत्सव के उत्साह के हर एक क्षणों का आनंद लेते हैं।
ये है मड़ई महोत्सव का इतिहास
इस त्योहार की शुरुआत प्राचीन भारत में हुई थी। आज भी यह उत्सव विभिन्न जगहों में परम्परागत तरीके से मनाया जाता है। यह क्षेत्र के आदिवासी लोगों द्वारा शुरू किया गया था, जिसे आदिवासी या भारत के प्राचीन निवासियों के रूप में भी जाना जाता है। आदिवासियों की यह संस्कृति कई शताब्दियों की है। उनकी प्राचीन परंपराएँ उनकी उत्कृष्ट वेशभूषा और अद्भुत नृत्यों में झलकती हैं। मड़ई महोत्सव केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि भारत के भी सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है।
ये हैं मड़ई महोत्सव के मुख्य आकर्षण
1. देवता पूजा – स्थानीय जनजातियों और समुदायों के बीच मड़ई महोत्सव का त्यौहार बहुत आनद उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार के दौरान स्थानीय जनजाति के लोग पीठासीन देवता की पूजा करते हैं। त्यौहार के शुरुआत में, छत्तीसगढ़ के आदिवासी लोग एक खुले मैदान में एक जुलूस की शुरुआत करते हैं। इस जुलूस को देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्त और सामान्य पर्यटक एकत्रित होते हैं। जब मड़ई मेला की शुरुआत होती है तो समारोह देखने आए राहगीर और आने-जाने वाले लोग, देवताओं को अपनी प्रार्थना अर्पित करते हैं।
2 . पशु की बलि – मडई महोत्सव त्यौहार में अन्य त्योहारों की तरह ही जानवर की बलि चढ़ाई जाती है। आमतौर पर, इस त्यौहार में एक बकरे की बलि दी जाती है।
3 . गाना और डांस – जब मड़ई का जुलूस समाप्त हो जाता है, तो इसके बाद शाम को कई सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इनमें लोक नृत्य, नाटक और गाने शामिल हैं। इन कार्यक्रमों का लुत्फ़ उठाने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण और स्थानीय लोग एकत्रित होते हैं।
4. यात्रा महोत्सव – यह महोत्सव भारत देश के उन त्योहारों में से एक है जहां एक स्थान पर मनाया जाने वाला त्योहार किसी अन्य जगह पर ले जाया जाता है। एक समय पर छत्तीसगढ़ के बस्तर आदिवासी क्षेत्र में इसकी शुरुआत होती है उसके बाद यह मड़ई महोत्सव कांकेर जिले में चला जाता है। इस जगह के बाद यह भानुप्रतापपुर चला जाता है, जहां क्रमशः नारायणपुर और अंतागढ़ में रुकता है। इसके बाद यह त्यौहार केशकाल, भोपालपट्टनम और फिर आख़िर में मार्च में कोंडागांव पहुँचता है। यहाँ यह समाप्त हो जाता है।
कांकेर जिले के सुरही गांव में रहने वाले तिहारु राम मरकाम ने बताया कि मड़ई मेला का त्यौहार आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला एक मुख्या त्यौहार है। यह मुख्यतः दो दिनों का होता है। कई जगहों पर इसे दो से अधिक दिनों तक भी मनाया जाता है। पहले देवी देवताओं की पूजा की जाती है। इसके उपरांत ही जुलूस का शुभारम्भ होता है। गांव में लोगों के रिश्तेदार और दोस्त भी मड़ई देखने पहुँचते हैं।