भारत सरकार की ओर से साक्षर भारत कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया है। साथ ही लोक शिक्षा केंद्रों में कार्यकत ७१४ प्रेरक और अनुदेशक की भी नौकरी समाप्त कर दी गई। ३० सितंबर तक यदि शासन की ओर से इस संबंध में कोई आदेश नहीं आता तो संविदा पद पर कार्यरत जिला समन्वयक, ब्लॉक समन्वयक और प्रेरक व अनुदेशक की नौकरी स्वत: ही समाप्त हो जाएगी। जिले में १४ वर्षों तक संचालित साक्षर भारत कार्यक्रम से क्या सच में गांवों की प्रौढ़ साक्षरता बढ़़ी, न के बराबर। बावजूद अधिकारियों ने इसे कागजों में साक्षर बना दिया।
साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत जिले में ३६७ लोक शिक्षा केंद्र स्थापित किए गए। इसमें एक प्रेरक और एक अनुदेशक द्वारा प्रौढ़ शिक्षा के तहत अनपढ़ ग्रामीणों को अक्षर ज्ञान देना था। लेकिन यह कार्यक्रम केवल परीक्षा तक सीमित हो चला।
जिले में कुल १२ बार महापरीक्षा अभियान आयोजित की गई। इसके अंतर्गत जिले से २ लाख ८ हजार २१९ लोगों को साक्षर बनाने का लक्ष्य रखा गया था। अंतिम बार २० अगस्त को ४५०० शिक्षार्थियों के परीक्षा दिलाने का लक्ष्य रखा गया। इसमें ३४७१ शिक्षार्थियों ने परीक्षा दिलाई। बावजूद विभाग के अनुसार इन सभी असाक्षर लोगों को साक्षर बनाया जा चुका है।
सालाना २.५ करोड़ रुपए खर्च
साक्षर भारत कार्यक्रम अंतर्गत ग्राम पंचायत में लोक शिक्षा केंद्र और गांव में साक्षरता केंद्र संचालित की गई। जिले में ३६८ लोक शिक्षा केंद्र संचालित हैं, जिसके लिए पूर्व में ७३१ प्रेरक और अनुदेशक नियुक्त किए गए थे। इन्हें २००० रुपए मासिक वेतन दिया जाता है। मतलब सालाना एक करोड़ ७५ लाख ४४ हजार रुपए पढ़ाने वालों पर खर्च होते हैं। इसके अलावा स्टेशनरी, कमरा किराया, बिजली बिल सहित अन्य खर्च व परीक्षा आयोजन में भी साल में दो बार लाखों रुपए खर्च हो जाते थे। मतलब सालाना ढ़ाई से अधिक की राशि खर्च की जा रही है।
साक्षर भारत कार्यक्रम अंतर्गत ग्राम पंचायत में लोक शिक्षा केंद्र और गांव में साक्षरता केंद्र संचालित की गई। जिले में ३६८ लोक शिक्षा केंद्र संचालित हैं, जिसके लिए पूर्व में ७३१ प्रेरक और अनुदेशक नियुक्त किए गए थे। इन्हें २००० रुपए मासिक वेतन दिया जाता है। मतलब सालाना एक करोड़ ७५ लाख ४४ हजार रुपए पढ़ाने वालों पर खर्च होते हैं। इसके अलावा स्टेशनरी, कमरा किराया, बिजली बिल सहित अन्य खर्च व परीक्षा आयोजन में भी साल में दो बार लाखों रुपए खर्च हो जाते थे। मतलब सालाना ढ़ाई से अधिक की राशि खर्च की जा रही है।
नहीं बढ़ा सके साक्षरता
जनगणना २००१ में जिले की साक्षरता दर ५५.१५ फीसदी थी और २०११ में ६०.८५ प्रतिशत हुई। साक्षरता दर बढ़ाने के नाम पर शिक्षा विभाग से लेकर सर्व शिक्षा अभियान और साक्षर भारत कार्यक्रम तक करोड़ों रुपए फूंक दिए गए, लेकिन १० साल में साक्षरता केवल ५.७ प्रतिशत ही बढ़ पाई। इसमें पुरुषों की साक्षरता दर मात्र १.९८ प्रतिशत ही बढ़ पाई। १० साल में महिलाओं का साक्षर ३९.४७ की जगह ४८.७१ हो गई। बावजूद यह भी महज सरकारी आंकड़े हैं।
जनगणना २००१ में जिले की साक्षरता दर ५५.१५ फीसदी थी और २०११ में ६०.८५ प्रतिशत हुई। साक्षरता दर बढ़ाने के नाम पर शिक्षा विभाग से लेकर सर्व शिक्षा अभियान और साक्षर भारत कार्यक्रम तक करोड़ों रुपए फूंक दिए गए, लेकिन १० साल में साक्षरता केवल ५.७ प्रतिशत ही बढ़ पाई। इसमें पुरुषों की साक्षरता दर मात्र १.९८ प्रतिशत ही बढ़ पाई। १० साल में महिलाओं का साक्षर ३९.४७ की जगह ४८.७१ हो गई। बावजूद यह भी महज सरकारी आंकड़े हैं।
केंद्रों में कभी नहीं हुई पढ़ाई
सालभर शिक्षार्थियों को कुछ पढ़ाया न लिखाया लक्ष्य पूरा करने के लिए सीधे परीक्षा में बिठाया जाता था। जबकि साक्षरता दर बढ़ाने के लिए लोक शिक्षा केंद्रों में छह-छह माह का कोर्स भी कराया जाना का लक्ष्य रहता था। लोक शिक्षा केंद्र व साक्षरता केंद्र के माध्यम से शिक्षार्थियों को प्रेरकों द्वारा ३०० घंटे पढ़ाई का लक्ष्य रहता है। लेकिन जिले के २० फीसदी केंद्रों में इसका पालन होता ही नहीं हुआ। इसके चलते ही अधिकतर गांवों की स्थिति आज भी अंगूठा छाप ही है।
सालभर शिक्षार्थियों को कुछ पढ़ाया न लिखाया लक्ष्य पूरा करने के लिए सीधे परीक्षा में बिठाया जाता था। जबकि साक्षरता दर बढ़ाने के लिए लोक शिक्षा केंद्रों में छह-छह माह का कोर्स भी कराया जाना का लक्ष्य रहता था। लोक शिक्षा केंद्र व साक्षरता केंद्र के माध्यम से शिक्षार्थियों को प्रेरकों द्वारा ३०० घंटे पढ़ाई का लक्ष्य रहता है। लेकिन जिले के २० फीसदी केंद्रों में इसका पालन होता ही नहीं हुआ। इसके चलते ही अधिकतर गांवों की स्थिति आज भी अंगूठा छाप ही है।
चुनाव में खुलती साक्षरता की पोल
साक्षरता की पोल इस परीक्षा से नहीं बल्कि पंचायत चुनाव के समय दिखाई दिया। पंचायत चुनाव के दौरान ८० फीसदी ग्रामीणों ने मतदान के दौरान अपना नाम लिखने या फिर हस्ताक्षर करने के बजाए अंगूठा लगा लगाए। यदि साक्षर भारत कार्यक्रम का क्रियांवयन उचित ढंग से होता और लोक शिक्षा केंद्रों में अनपढ़ महिला-पुरुषों को पढ़ाया जाता तो चुनाव के दौरान गांवों में भी मतदाता अंगूठा नहीं हस्ताक्षर करते।
साक्षरता की पोल इस परीक्षा से नहीं बल्कि पंचायत चुनाव के समय दिखाई दिया। पंचायत चुनाव के दौरान ८० फीसदी ग्रामीणों ने मतदान के दौरान अपना नाम लिखने या फिर हस्ताक्षर करने के बजाए अंगूठा लगा लगाए। यदि साक्षर भारत कार्यक्रम का क्रियांवयन उचित ढंग से होता और लोक शिक्षा केंद्रों में अनपढ़ महिला-पुरुषों को पढ़ाया जाता तो चुनाव के दौरान गांवों में भी मतदाता अंगूठा नहीं हस्ताक्षर करते।
साक्षर भारत का जो लक्ष्य था वह पूर्ण कर लिया गया है। इससे मान सकते हैं जिला साक्षर हो गया। शासन की ओर पत्र आया कि ३० सिंतबर तक ही साक्षर भारत कार्यक्रम संचालित रहेगा। ऐसे में यदि कोई आदेश नहीं आता तो कार्यक्रम बंद है। वहीं प्रेरकों की नौकरी भी समाप्त मानी जाएगी।
चंद्रकांत कौशिक, प्रभारी अधिकारी, साक्षर भारत कार्यक्रम, कबीरधाम
चंद्रकांत कौशिक, प्रभारी अधिकारी, साक्षर भारत कार्यक्रम, कबीरधाम