जोधपुर. संभाग के सबसे बड़े मथुरादास माथुर अस्पताल के ट्रोमा केयर सेंटर व इमरजेंसी में हर साल मरीजों का दबाव और इलाज के दौरान मौतों की संख्या बढ़ रही है। इसके बावजूद यहां जीवनरक्षा सम्बंधी व्यवस्थाएं बढ़ाने की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। यहां के हालात देखते हुए लग रहा है कि इस इमरजेंसी को भी अब ‘डोज’ की जरूरत है।
एमडीएमएच का ट्रोमा सेन्टर व इमरजेंसी पूरी तरह से रेजीडेंट के भरोसे है। अस्पताल प्रशासन भले ही दावा कर रहा है कि जरूरत होने पर ‘ऑन कॉलÓ वरिष्ठ विशेषज्ञ बुला लिया जाता है। लेकिन हकीकत इससे परे है। ओपीडी के बाद या रात के समय इमरजेंसी में किसी गंभीर मरीज के आने की स्थिति में ड्यूटी पर तैनात रेजीडेंट अपने सीनियर वरिष्ठ विशेषज्ञ को फोन कर इलाज पूछ लेते हैं और वरिष्ठ विशेषज्ञ अगले दिन वार्ड में मरीज को देखते हैं। रात को कोई भी वरिष्ठ विशेषज्ञ इमरजेंसी में नहीं आता।
जिले या संभाग के छोटे कस्बों की पीएचसी व सीएचसी में कनिष्ठ या वरिष्ठ विशेषज्ञ चिकित्सक (जो 5 से 10 साल के अनुभवी) बेसिक जांचें और इलाज के बाद किसी मरीज को इस उम्मीद के साथ रेफर करते हैं कि एमडीएमएच में उन्हें सुपर स्पेशलिस्ट की सेवा मिलेगी। लेकिन यहां भी मरीज या केस को सुपर स्पेशलिस्ट की सेवा नहीं मिलती। रेफर मरीजों को उनके जूनियर यानि रेजीडेंट ही देखते हैं।
यह कैसी इमरजेंंसी इमरजेंसी में किसी भी गंभीर मरीज या घायल की सीटी स्केन व सोनोग्राफी की जांच वरिष्ठ विशेषज्ञ की निगरानी में नहीं होती। जांच भी रेजीडेंट ही करते हैं और जांच की फिल्म भी रेजीडेंट ही देखते हैं। जांच की रिपोर्ट भी तत्काल नहीं मिलती। केवल फिल्म देखकर ही मरीज को इलाज शुरू कर दिया जाता है। दूसरे दिन मरीज के वार्ड में शिफ्ट में होने पर वरिष्ठ विशेषज्ञ उस रिपोर्ट को देखते हैं।
वर्ष भर्ती मरीज मौतें 2014 86096 638 2015 93912 645 2016 112840 642 2017 118860 651 2018 73501 435 (जुलाई तक)