जोधपुर . अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई में वतनपरस्तों के कैदखाने के तौर उनके जंगी हौसलों के गवाह रहा माचिया किला स्वतंत्रता सेनानियों के लिए काले पानी की सजा से कम नहीं था। कायलाना झील के पास माचिया वनखंड की सुरम्य पहाड़ी पर किले में दिसम्बर 1942 से अगस्त 1943 तक करीब 8 माह तक करीब 31 स्वतंत्रता सेनानियों को नजरबंद रखा गया था। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख सिपाहियों और उनके साथियों को कमजोर बनाने की नीति के तहत जोधपुर जेल से चुनिंदा लोगों को भयंकर यातना देने के मकसद से समूह के रूप में माचिया किला भिजवाना आरंभ किया था। तत्कालीन सरकार ने यह कदम राज बंदियों और उनके नेताओं की ओर से जेल में चलाए जा रहे आंदोलन से परेशान होकर उठाया था। दिसम्बर की भीषण सर्दी में जंगली सुअरो और वन्यजीवों के बीच किले में रखना किसी भयानक यातना से कम नहीं था। लेकिन जंगे आजादी के परवानों ने यह कष्ट हंसते-हंसते झेल लिया। बदत्तर खाना देने के विरोध में की थी भूख हड़ताल स्वतंत्रता सेनानियों को काला पानी की सजा माने जाने वाले माचिया किले में कैद जंगे आजादी के सिपाहियों को जानवरों से बदत्तर खाना देने के विरोध में सभी बंदियों ने सात दिन तक भूख हड़ताल की जिसे जयनारायण व्यास के हस्तक्षेप से समाप्त कराया गया। अगस्त 1943 में भारी वर्षा के कारण किले की चहार दीवारी ढहने के बाद सभी बंदियों को बिजोलाई महल शिफ्ट किया गया। उस समय अंग्रेज सरकार के प्रतिनिधि के रूप में डोनाल्ड फील्ड अधिकारी थे। इतिहास के पन्नों में तख्तगढ़ किला माचिया किला जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह ने जंगली सुअरों और हिंसक वन्यजीवों के शिकार के लिए बनवाया था। कभी राजा महाराजाओं का ऐशगाह रहा माचिया किला स्वतंत्रता सेनानियों के लिए यातनागाह बना दिया गया था। इतिहास के पन्नों में माचिया किला तख्तगढ़ किले के नाम से दर्ज है।
स्वर्ण जयंती पर बना था कीर्ति स्तंभ आजादी के स्वर्ण जयंती वर्ष के दौरान 15 अप्रेल 1999 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कीर्ति स्तंभ का अनावरण किया। स्तंभ के दांए-बांए और पीछे की तरफ तीस लोगों के नाम उत्कीर्ण है जिन्हें करीब आठ माह तक बंदी रखा गया था। किले तक पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण तो हो चुका है। हाल ही में राÓय सरकार ने बजट में किले के जीर्णोद्धार के लिए बजट की घोषणा की लेकिन अभी तक कुछ भी कार्य नहीं हो सका है। स्वतंत्रता सेनानियों के समक्ष रखी थी ये शर्ते सरकार ने सजा काटकर घर जाने वाले आंदोलनकारियों को पुन: आंदोलन में कूदने की समस्या से निपटने के लिए तय किया कि सजा काट चुके उसी बंदी को रिहा जाएगा जो लिखित में बयान दे कि वह जेल से छूटने के बाद ब्रिट्रिश सरकार व अन्य रियासती सरकारों के खिलाफ परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से कोई कार्रवाई नहीं करेगा और ना ही इसमें सहायक बनेगा। ऐसा नहीं लिखकर देने वालों को जेल से बाहर निकलते ही गिरफ्तार कर जोधपुर के नजरबंद कैम्प माचिया किले में भेज दिया गया।
यह थे माचिया किले में नजरबंद स्वतंत्रता सेनानी रणछोड़दास गट्टानी, राधाकृष्ण बोहरा तात, भंवरलाल सर्राफ, तारकप्रसाद व्यास, शांति प्रसाद व्यास , गणेशचन्द्र जोशी, मौलाना अतहर मोहम्मद, बालकृष्ण व्यास, पुरुषोत्तमदास नैयर, नरसिंगदास लूंकड़, हुकमराज मेहता, द्वारकादास पुरोहित, माधोप्रसाद व्यास, कालूराम मूंदड़ा, गोपाल मराठा, पुरुषोत्तम जोशी, मूलराज घेरवानी, गंगादास व्यास, हरिन्द्र कुमार शास्त्री, इन्द्रमल फोफलिया, छगनलाल पुरोहित, श्रीकृष्ण कल्ला, तुलसीदास राठी,(सभी जोधपुर ) शिवलाल दवे नागौर, देवकृष्ण थानवी, गोपाल प्रसाद पुरोहित, संपतलाल लूंकड़,सभी फलोदी, भंवरलाल सेवग पीपाड़, हरिभाई किंकर, मीठालाल त्रिवेदी सोजत, शांति प्रसाद व्यास, अचलेश्वर प्रसाद शर्मा मामा, बालमुकुंद बिस्सा, जोरावरमल बोड़ा, गिरिजा जोशी