दरअसल, शिल्पा शेट्टी की तरफ से एडवोकेट प्रशांत पाटिल ने जोधपुर हाईकोर्ट में पक्ष रखा। हाईकोर्ट ने फैसले में FIR रद्द करते हुए कहा कि बिना सेक्शन और इंक्वायरी के SC-ST मामले में FIR दर्ज नहीं की जा सकती।
एकलपीठ ने मामले को लेकर क्या कहा?
न्यायाधीश अरुण मोंगा की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप कानूनी रूप से अपराध साबित करने के लिए आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करते। कोर्ट ने तीन साल से अधिक की देरी से दर्ज एफआईआर पर सवाल उठाते हुए कहा कि एफआईआर में असाधारण देरी से आरोपों की सच्चाई पर गंभीर संदेह होता है और यह अक्सर बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का नतीजा होती है, जिससे मामले की विश्वसनीयता कमजोर हो जाती है। पीठ ने यह भी कहा कि एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1) (र) और 3 (1) (यू) को 2016 में कानून में जोड़ा गया था, जबकि यह कथित घटना 2013 की है। इसलिए इन धाराओं के तहत शिल्पा राज कुंद्रा पर मामला चलाना कानूनी रूप से गलत है। कोर्ट ने कहा कि विवादित शब्द का इस्तेमाल, जैसा कि आरोप लगाया गया है, किसी को अपमानित करने या वाल्मीकि समुदाय को नुकसान पहुंचाने के इरादे से नहीं किया गया था।
यह भी पढ़ें
SDM थप्पड़ कांड: समरावता पहुंचे किरोड़ी लाल मीणा का गांव वालों ने किया विरोध, नरेश मीणा के समर्थन में लगे नारे
शिल्पा शेट्टी के वकील ने दी ये दलील
वहीं, कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिल्पा शेट्टी के वकील प्रशांत पाटिल ने दलील दी कि इस FIR में कोई सबूत नहीं है जिससे किसी समाज की भावना को ठेस पहुंची हो और न ही कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा है। उन्होंने भंगी शब्द की उत्पत्ति की जानकारी देते हुए बताया कि इसकी उत्पत्ति संस्कृत में भंगा से हुई, जिसका अर्थ अछुत जाति से संबंधित होने के अलावा टूटा हुआ और खंडित भी होता है। वहीं, ऑक्सफोर्ड हिंदी टू इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार- भंगी भांग पीने वालों को भी कहा जाता है।‘टाइगर जिंदा है’ फिल्म के समय का मामला
गौरतलब है कि ‘टाइगर जिंदा है’ फिल्म के रिलीज के समय एक टीवी इन्टरव्यू के दौरान सलमान खान और शिल्पा शेट्टी द्वारा वाल्मिकी समाज के खिलाफ की गई अपमानजनक टिप्पणी के बाद दिवसबंर 2017 में यह केस दर्ज हुआ था। इस बयान से आक्रोशित वाल्मिकी समाज के लोगों ने चूरू कोतवाली थाने पहुंचकर दोनों के खिलाफ FIR दर्ज करवाई थी। यह भी पढ़ें