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जोधपुर में भगवती दीक्षा ले संत बने थे रूप मुनि, कुरीतियों पर अंकुश और जीव दया का दे गए थे संदेश

लोकमान्य संत ने जोधपुर में किए थे तीन ऐतिहासिक चातुर्मास
 

जोधपुरAug 19, 2018 / 11:01 am

Harshwardhan bhati

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नंदकिशोर सारस्वत/जोधपुर. वद्र्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ के प्रवर्तक और लोकसंत रूप मुनि ने विक्रम संवत् 1999 में माघ शुक्ल त्रयोदशी को जोधपुर में भगवती दीक्षा अंगीकार की थी। जोधपुर से उनका विशेष जुड़ाव रहा। यहां उन्होंने तीन बार चातुर्मास किए और सभी ऐतिहासिक रहे। पिछले वर्ष जोधपुर में चातुर्मास के दौरान उन्होंने कुरीतियों पर अंकुश और परोपकार, करुणा और जीव दया का संदेश दिया। संत की मंगल प्रेरणा से श्रावकों ने 225 रूप रजत मरुधर केसरी गोशालाओं के लिए मुक्त हस्त से दान किया।
संत रूपमुनि ने जोधपुर में पहला चातुर्मास वर्ष 1984 में किया। इसके बाद 1996 और अंतिम चातुर्मास 2017 में किया था। वे दो बार गुरु के साथ भी चातुर्मास में शामिल हुए थे। रूप सुकन चातुर्मास व्यवस्था समिति और वद्र्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ जोधपुर के तत्वावधान में 3 जुलाई 2017 से महावीर कॉम्पलेक्स में आयोजित उनके चातुर्मास को लेकर समूचे मारवाड़ के जैन समाज में उत्साह की लहर रही।
संत रूप मुनि 27 जून 2017 को झालामंड स्थित रावला हाउस में 14 शिष्यों के साथ चातुर्मास के लिए पहुंचे तो सभी कौम के लोगों ने स्वागत किया। उन्होंने सरस्वती नगर, भगत की कोठी, राइका बाग क्षेत्रों में श्रावकों के यहां प्रवास करते हुए 3 जुलाई को तारघर के निकट महावीर कॉम्पलेक्स में चातुर्मास के लिए गाजे-बाजों के साथ मंगलप्रवेश किया था। चातुर्मास कार्यक्रम में देश के विभिन्न जगहों से बड़ी संख्या में श्रावकों ने भाग लिया। रूपमुनि का चार माह का प्रवास और वैरागी वरूण मुनि की दीक्षा का आयोजन जोधपुर के लिए ऐतिहासिक और अविस्मरणीय बन गया।
धर्म की समानताएं उजागर होंगी तभी मिटेंगे मतभेद

लोकमान्य संत, वरिष्ठ प्रवर्तक रूप मुनि ने जोधपुर में अपने तीसरे चातुर्मास के मंगलप्रवेश पर 27 जून को झालामंड स्थित रावला हाउस में ‘पत्रिका से विशेष बातचीत की थी। उन्होंने कहा था कि वर्तमान युग विषमता का युग है। धर्म की समानताएं उजागर होंगी तभी मतभेद मिटेंगे। जीव दया का लक्ष्य लेकर होने वाले चातुर्मास आराधना, उपासना, जप, आत्म अनुष्ठान के लिए हैं। हर साल चातुर्मास में प्रवचन श्रवण के बाद भी लोगों में कोई खास बदलाव नहीं दिखाई देने के सवाल पर संत ने इसका कारण कर्मों की गति को बताया। संत का कहना था कि जिसको सद्मार्ग पर चलकर जीवन को सफल बनाने में रुचि होती है उस पर असर जरूर होता है। लेकिन जो कुसंग और पापकर्मों में लीन रहता है उसका इलाज तो संतों के पास भी नहीं है। उनका कहना था कि चातुर्मास सत्संग श्रवण से धर्म के प्रति जुड़ाव होता है। कोई गीता, रामायण तो कोई भागवत कथा सुनते हैं। जो सत्संग सुनेगा उसे सद्मार्ग पर चलने का ज्ञान आएगा। सुणिया सेठी जानिए पुण्य पाप की बात, अनसुणियां आंधा व्हे दिन धोळे ही रात।

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