हालांकि, कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री शेखावत के संबंध में स्पष्ट किया कि चूंकि याचिकाकर्ता एक मौजूदा सांसद और सार्वजनिक व्यक्ति हैं, जिनकी कई पेशेवर प्रतिबद्धताएं हो सकती हैं, ऐसे में यदि उन्हें तलब किया जाना है तो कम से कम 20 दिन पहले नोटिस देना होगा। याचिकाकर्ता शेखावत की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता वीआर बाजवा ने कहा कि संजीवनी मामला गैर-विनियमित जमा पर प्रतिबंध अधिनियम, 2019 के दायरे में आता है, जिसकी जांच राज्य पुलिस नहीं कर सकती।
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याचिकाकर्ता को राजनीतिक द्वेष के आधार पर वर्तमान मामले में फंसाया गया है। राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरिन रावल ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि अपराध की व्यापकता को देखते हुए याचिकाकर्ता को राहत नहीं दी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में निहित कानूनी बिंदुओं को विस्तार से सुना जाना आवश्यक है और समयाभाव के चलते सुनवाई 8 जनवरी को मुकर्रर की। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि एसओजी की जांच पर कोई प्रतिबंध नहीं रहेगा। एजेंसी जांच करने के लिए स्वतंत्र रहेगी और उचित समझे जाने पर केंद्रीय मंत्री को कम से कम 20 दिन का नोटिस देकर तलब किया जा सकेगा।
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