जोधपुर

सुबह का भूला 27 साल बाद घर लौटा तो झूम उठे उसके परिजन, इस वजह से छोड़ा था घर

सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। यह कहावत अक्सर हम सबने पढ़ी और सुनी होगी, लेकिन अगर सुबह का भूला पूरे 27 साल बाद घर लौटे तो सोचो उसके परिजनों की खुशियां और इस पल का अहसास कितना सुखद होगा।

जोधपुरMar 07, 2024 / 06:53 pm

Kamlesh Sharma

सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। यह कहावत अक्सर हम सबने पढ़ी और सुनी होगी, लेकिन अगर सुबह का भूला पूरे 27 साल बाद घर लौटे तो सोचो उसके परिजनों की खुशियां और इस पल का अहसास कितना सुखद होगा।

भोपालगढ़। सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। यह कहावत अक्सर हम सबने पढ़ी और सुनी होगी, लेकिन अगर सुबह का भूला पूरे 27 साल बाद घर लौटे तो सोचो उसके परिजनों की खुशियां और इस पल का अहसास कितना सुखद होगा। कुछ ऐसा ही एक मामला सामने आया है भोपालगढ़ क्षेत्र के गोदावास गांव में। जहां करीब 27 साल पहले घर से निकला तब का 17 वर्षीय युवक आज अधेड़ उम्र में वापिस घर आया, तो उसके परिजनों की खुशियों का कोई ठिकाना ही नहीं रहा और उसे देखने व मिलने के लिए घर पर भी बड़ी संख्या में गांव के लोगों, महिलाओं व बच्चों की भीड़ सी लग गई। साथ ही हर कोई उसकी अब तक की जिंदगी के बारे में जानने को बेताब नजर आया।

दरअसल परिवार के बिछुड़ने, घर से चले जाने और मेलों आदि में लापता होने जैसी घटनाओं की फिल्मों व सीरियलों आदि में कई कहानियां हम सभी ने देखी और सुनी है। लेकिन जोधपुर जिले के भोपालगढ़ क्षेत्र के गोदावास गांव निवासी इस युवक की सारी कहानी एकदम हकीकत की है। महज 17 साल की उम्र में घर से निकलने के करीब 27 साल बाद 44 साल की उम्र में जब वह घर लौटा तो परिवार, पड़ोसियों व रिश्तेदारों में खुशियों की बहार सी आ गई। साथ ही इतने लंबे समय बाद गांव में पहुंचने पर सब ग्रामीण बहक अचंभित हो गए। यह अजीबोगरीब कहानी है भोपालगढ़ उपखण्ड क्षेत्र के गोदावास गांव निवासी भागीरथ सिंगड़ की, जो कि करीब 27 घर से दूर रहने के बाद ’’अपना घर आश्रम जोधपुर’’ की मदद से घर लौट पाया है। गोदावास निवासी पटवारी खेराजराम सिंगड़ व ग्राम सेवा सहकारी समिति अध्यक्ष लुम्बाराम सिंगड़ ने बताया कि गोदावास निवासी अणदाराम सिंगड़ के इकलौते बेटे भागीरथ की मां का बचपन में ही निधन हो गया था और उसे पिता ने बड़े ही लाड़-प्यार से पालकर बड़ा किया था, ताकि बड़ा होकर वह उनका सहारा बन सके। लेकिन वर्ष 1996-97 में करीब 17-18 वर्ष की आयु में एक दिन किसी बात को लेकर वह नाराज हो गया और बिना किसी को बताए ही वह घर से निकल गया।

पूरा परिवार लेने गया
भागीरथ के जोधपुर स्थित अपना घर आश्रम में होने की सूचना मिलने पर परिजनों में खुशी की लहर सी दौड़ गई और चूंकि उसके माता-पिता व सगे भाई वगैरह नहीं है, तो उसके सभी निकट रिश्तेदार एवं गांव के मौजीज लोग मंगलवार को जोधपुर स्थित अपना घर आश्रम गए और भागीरथ को गोदावास स्थित अपने घर लेकर आए। इस दौरान उसके सभी निकट रिश्तेदारों व परिजनों में खुशी का आलम छा गया। यहां तक कि परिजन तो उसके वापस आने की सारी उम्मीदें ही खो चुके थे, लेकिन जब उसे जिंदा सामने देखा, तो पूरा परिवार भावुक हो गया। साथ ही स्थानीय ग्रामीणों में भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

अपना घर आश्रम ने बताया घर
जोधपुर पहुंचने के बाद भी भागीरथ अपने गांव आने की हिम्मत नहीं जुटा पाया, तो वह परेशान सा रहने लगा और जोधपुर में ही इधर-उधर डोलता रहा। इस बीच कुछ दिन पहले जोधपुर के जालोरी गेट चौराहे पर वह ’’अपना घर आश्रम’’ की टीम के संपर्क में आया और टीम उसे आश्रम ले गई। जहां भोपालगढ़ क्षेत्र के ही एक कांस्टेबल ने उससे संयोगवश उसके नाम-पटे आदि के बारे में जानकारी पूछी। तो पुलिस की वर्दी के डर से उसने अपना नाम, पिता का नाम व गांव आदि के बारे में सही-सही जानकारी बता दी। जिस पर पुलिसकर्मी ने गोदावास गांव में अपने मिलने वालों से भागीरथ के बारे में पता किया और इस बारे में पुख्ता होने पर उसके निकट रिश्तेदारों को भी सूचित किया।

इतने वर्षों तक घर से दूर रहकर मेहनत-मजदूरी कर रहे भागीरथ के सामने वर्तमान समय में कुछ तकनीकी दिक्कतें आने लगी। चूंकि वह पेट-भराई के लिए होटल-ढाबों पर छोटा-मोटा काम करता रहता था। लेकिन पिछले कुछ समय से जब वह कहीं पर भी काम मांगने के लिए जाता, तो सभी लोग उसकी पहचान सुनिश्चित करने के लिए आधार कार्ड की मांग करने लगे और इसके बिना उसे काम मिलना ही बंद हो गया। जिस पर वह कुछ दिन पहले जोधपुर आ गया, लेकिन यहां आने के बाद भी उसकी अपने गांव गोदावास आने की हिम्मत नहीं हुई।

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