याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रजाक खान हैदर और फोजाराम खोथ ने पैरवी करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की ग्रामीणों के प्रदर्शन में कोई भूमिका नहीं थी।
मौलिक अधिकारों का हनन
उनकी मंशा केवल जनहित में ग्रामीणों की समस्या पर स्थानीय प्रशासन का ध्यान आकर्षित करने की थी। निलम्बन आदेश विधिक प्रक्रिया अपनाए बिना जारी किया गया है, जो कि विधिविरुद्ध, मनमाना और याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का हनन कर रहा है।
प्रारम्भिक सुनवाई के बाद न्यायाधीश विनीत कुमार माथुर की एकलपीठ ने निलम्बन आदेश के प्रभाव एवं क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाते हुए पंचायतीराज विभाग के प्रमुख सचिव और
जोधपुर परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया।
अभिव्यक्ति की आजादी मौलिक अधिकार
याचिकाकर्ता ने निलम्बन आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। इसमें बताया कि व्यापक जनहित से जुड़ी किसी जनसमस्या पर शासन-प्रशासन का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से सोशल मीडिया पर टिप्पणी करना सेवा नियमों का कतई उल्लंघन नहीं है, बल्कि अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में प्रत्येक नागरिक को संविधान प्रदत्त गारंटीकृत मौलिक अधिकार है।
कर्मचारी संगठनों ने जताया था विरोध
गौरतलब है कि सोशल मीडिया पोस्ट के बाद 8 सितंबर को सहायक प्रशासनिक अधिकारी को निलम्बित करने पर कर्मचारी संगठनों ने आंदोलन का रुख किया था। पंचायतीराज मंत्रालयिक कर्मचारी जिला संगठन ने गत दिनों मुंह पर पट्टी बांधकर कार्य बहिष्कार किया। फिर आंदोलन तेज करते हुए सभी जिलों में ज्ञापन दिए गए। राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ ने भी महापड़ाव की चेतावनी दी थी।